मोहब्बत इक कर्ज़ है ऐसा जो चुकाये बने ना उठाये बने
तेरी याद इक दर्द है ऐसा जो दबाये बने ना दिखाये बने
कभी किया है त्रिवेणी मे स्नान?
त्रिवेणी के लिये दर्द का दरिया उधार कौन दे
फिर भी रिश्ता चटक गया
शायद हमे भी जीना आ गया
टीस भी उठ्ती है
मगर अश्क नही बहते
जल बिन मछली का तडपना देखा है कभी?
शायद मेरा नीड ही अकेला था
अब उम्र की बाती कौन बनाये?
हाय रे! क्या से क्या हुई ज़िन्दगानी
बचपन के दर्पण मे ज़िन्दगी नही मिलती
दोस्तों
पिछली पोस्ट में आप सब वो पोस्ट नहीं पढ़ पाए क्यूंकि लिंक नहीं खुल
रहा था मगर मेरे यहाँ खुल रहा था कोई बात नहीं मैंने अब वो आलेख
वहीँ लगा दिया है आप सब चाहें तो वहां उसे पढ़ सकते हैं ........बस
पत्रिका में थोडा एडिट हुआ है .
तेरी याद इक दर्द है ऐसा जो दबाये बने ना दिखाये बने
कभी किया है त्रिवेणी मे स्नान?
यादों के संगम पर अब नही मिलते दोनो वक्त
त्रिवेणी के लिये दर्द का दरिया उधार कौन दे
ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया
रिश्तों को भी जलना आ गया
शायद हमे भी जीना आ गया
दर्द भी होता है
टीस भी उठ्ती है
मगर अश्क नही बहते
जल बिन मछली का तडपना देखा है कभी?
दीप तले ही अंधेरा था
शायद मेरा नीड ही अकेला था
अब उम्र की बाती कौन बनाये?
जीवन की कश्ती मे अश्कों का पानी
बचपन के दर्पण मे ज़िन्दगी नही मिलती
दोस्तों
पिछली पोस्ट में आप सब वो पोस्ट नहीं पढ़ पाए क्यूंकि लिंक नहीं खुल
रहा था मगर मेरे यहाँ खुल रहा था कोई बात नहीं मैंने अब वो आलेख
वहीँ लगा दिया है आप सब चाहें तो वहां उसे पढ़ सकते हैं ........बस
पत्रिका में थोडा एडिट हुआ है .
39 टिप्पणियां:
खूबसूरती से व्यक्त किया ..मन का दर्द ...
सुंदर रचना ...
ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया
शायद धूप में रहा होगा
खूबसूरत रचनाएँ ...
गहरे भावों को सहजता से व्यक्त किया है।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
bhaut acchi rachna...
बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
बेहद अच्छे तरह से भावों को शब्द की आवाज़ बख्शी है आपने !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
बहुत सुंदर
छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरे भाव
बढ़िया अभिव्यक्ति
मानसिक वेदना का सुन्दर प्रस्तुतीकरण.
सारगर्भित एवं सुंदर अभिव्यक्ति ...
khubsurat abhivyakti ....
बहुत उम्दा!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! सूचनार्थ!
यादों के संगम पर अब नही मिलते दोनो वक्त
त्रिवेणी के लिये दर्द का दरिया उधार कौन दे
... mumkin nahi...
"जल बिन मछली का----"
दर्द की अनुभूति--
खूबसूरत रचना ... प्रेम का नया संगम ..
आत्मचिंतन से उपजी मार्मिक कविता है।
खूबसूरत प्रस्तुति।
sundar rachna!!
khoobsoorat rachnaa
ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया
दर्द की अभिव्यक्ति है ...
सहेज लिया है दर्द इन शब्दों में ... बहुत लाजवाब ...
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
मोहब्बत इक कर्ज़ है ऐसा जो चुकाये बने ना उठाये बने
तेरी याद इक दर्द है ऐसा जो दबाये बने ना दिखाये बने
ये रोग नहीं आसां .....:))
कुछ अलग हटके था इस बार............कुछ अच्छी लगी..........कुछ ठीक लगी.......
बहुत खूब! सभी पंक्तियाँ मन के द्वन्द्व को व्यक्त करती हैं... धूप में रिश्ता चटक गया होगा वर्मा जी ने भी क्या खूब कहा.
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
सुन्दर और गहरे भाव..
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया.सुन्दर अभिव्यक्ति.
दर्द की बूंदें कहाँ-कहाँ छिटकी
कुछ यहाँ छिटकी तो कुछ वहाँ छिटकी.
हर बूँद हसीन.........
सुन्दर रचना है वंदना जी.
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|
गहरे भाव और ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.
अनूठी क्षणिकाएं।
जीवन-सूत्र छिपा है इनमें।
रिश्तों को भी जलना आ गया
शायद हमे भी जीना आ गया
न जाने क्यूँ मुझे ऐसा लग रहा है
कि जल जल कर जी रहीं है आप.
आप तो रचनाकार हैं,आपकी पहुँच
असीम है जी.बिना दर्द के भी दर्द
का अहसास करा देने में समर्थ हैं.
शानदार अभिव्यक्ति,
हमेशा की त्सरह खूबसूरत कविता...
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