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सोमवार, 7 नवंबर 2011

कभी किया है त्रिवेणी मे स्नान?

मोहब्बत इक कर्ज़ है ऐसा जो चुकाये बने ना उठाये बने

तेरी याद इक दर्द है ऐसा जो दबाये बने ना 
दिखाये बने


कभी किया है त्रिवेणी मे स्नान?







यादों के संगम पर अब नही मिलते दोनो वक्त

त्रिवेणी के लिये दर्द का दरिया उधार कौन दे





ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा 

ना जाने क्यूँ

फिर भी रिश्ता चटक गया







रिश्तों को भी जलना आ गया

शायद हमे भी जीना आ गया






दर्द भी होता है

टीस भी उठ्ती है

मगर अश्क नही बहते



जल बिन मछली का तडपना देखा है कभी?







दीप तले ही अंधेरा था

शायद मेरा नीड ही अकेला था


अब उम्र की बाती कौन बनाये?








जीवन की कश्ती मे अश्कों का पानी

हाय रे! क्या से क्या हुई ज़िन्दगानी


बचपन के दर्पण मे ज़िन्दगी नही मिलती











दोस्तों 


पिछली पोस्ट में आप सब वो पोस्ट नहीं पढ़ पाए क्यूंकि लिंक नहीं खुल 


रहा था मगर मेरे यहाँ खुल रहा था कोई बात नहीं मैंने अब वो आलेख 


वहीँ लगा दिया है आप सब चाहें तो वहां उसे पढ़ सकते हैं ........बस 


पत्रिका में थोडा एडिट हुआ है .



39 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

खूबसूरती से व्यक्त किया ..मन का दर्द ...
सुंदर रचना ...

M VERMA ने कहा…

ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया

शायद धूप में रहा होगा

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत रचनाएँ ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरे भावों को सहजता से व्यक्त किया है।

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

विभूति" ने कहा…

bhaut acchi rachna...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें

नीरज

Human ने कहा…

बेहद अच्छे तरह से भावों को शब्द की आवाज़ बख्शी है आपने !

मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर

rashmi ravija ने कहा…

छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरे भाव

Gyan Darpan ने कहा…

बढ़िया अभिव्यक्ति

shikha varshney ने कहा…

मानसिक वेदना का सुन्दर प्रस्तुतीकरण.

Pallavi saxena ने कहा…

सारगर्भित एवं सुंदर अभिव्यक्ति ...

रजनीश तिवारी ने कहा…

khubsurat abhivyakti ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! सूचनार्थ!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यादों के संगम पर अब नही मिलते दोनो वक्त
त्रिवेणी के लिये दर्द का दरिया उधार कौन दे
... mumkin nahi...

अजय कुमार ने कहा…

"जल बिन मछली का----"

दर्द की अनुभूति--

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

खूबसूरत रचना ... प्रेम का नया संगम ..

मनोज कुमार ने कहा…

आत्मचिंतन से उपजी मार्मिक कविता है।

Atul Shrivastava ने कहा…

खूबसूरत प्रस्‍तुति।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

sundar rachna!!

Nirantar ने कहा…

khoobsoorat rachnaa
ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दर्द की अभिव्यक्ति है ...
सहेज लिया है दर्द इन शब्दों में ... बहुत लाजवाब ...

Urmi ने कहा…

गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मोहब्बत इक कर्ज़ है ऐसा जो चुकाये बने ना उठाये बने
तेरी याद इक दर्द है ऐसा जो दबाये बने ना दिखाये बने

ये रोग नहीं आसां .....:))

बेनामी ने कहा…

कुछ अलग हटके था इस बार............कुछ अच्छी लगी..........कुछ ठीक लगी.......

Anita ने कहा…

बहुत खूब! सभी पंक्तियाँ मन के द्वन्द्व को व्यक्त करती हैं... धूप में रिश्ता चटक गया होगा वर्मा जी ने भी क्या खूब कहा.

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर और गहरे भाव..

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

ना कुछ चाहा ना कुछ मांगा
ना जाने क्यूँ
फिर भी रिश्ता चटक गया.सुन्दर अभिव्यक्ति.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

दर्द की बूंदें कहाँ-कहाँ छिटकी
कुछ यहाँ छिटकी तो कुछ वहाँ छिटकी.


हर बूँद हसीन.........

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर रचना है वंदना जी.

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

गहरे भाव और ज़बरदस्त अभिव्यक्ति.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अनूठी क्षणिकाएं।
जीवन-सूत्र छिपा है इनमें।

Rakesh Kumar ने कहा…

रिश्तों को भी जलना आ गया
शायद हमे भी जीना आ गया

न जाने क्यूँ मुझे ऐसा लग रहा है
कि जल जल कर जी रहीं है आप.

आप तो रचनाकार हैं,आपकी पहुँच
असीम है जी.बिना दर्द के भी दर्द
का अहसास करा देने में समर्थ हैं.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

शानदार अभिव्यक्ति,

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

हमेशा की त्सरह खूबसूरत कविता...