ये जग झूठा
नाता झूठा
खुद का भी
आपा है झूठा
फिर सत्य माने किसको
मन बंजारा
भटका फिरता
कोई ना यहाँ
अपना दिखता
फिर अपना बनाए किसको
कैसी मची है
आपाधापी
कोई नहीं
किसी का साथी
सब मुख देखे की लीला है
फिर दुखडा सुनायें किसको
जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको
39 टिप्पणियां:
सार्थक व सटीक लेखन ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको
सटीक कहा है ..बाड़ ही खेत खाने में लगी हुई है ..
वहाँ किससे बचाएं किसको
वंदना जी उदास मन से लिखी ..गहन अभिव्यक्ति है ....
आस-पास घटित होती हुई घटनाएँ चाह कर भी खुश होने भी तो नहीं देतीं ...
अपना घर हम किसके हवाले कर निश्चिन्त हो जायें हम।
मन बंजारा
भटका फिरता
कोई ना यहाँ
अपना दिखता
फिर अपना बनाए किसको
...prashn sukhe patte kee tarah idhar se udhar udta ja raha hai...
- बिलकुल दुरुस्त फ़र्माया है !
छोटी कविता और उसका बेहतर प्रस्तुतिकरण पसंद आया।
जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको
जो यह पूछ रहा है बस वही बचाने योग्य है बल्कि वह तो बचा ही हुआ है... बाकि तो सब खेल है..
यही तो समस्या है कैसे बचाएं सुंदर रचना ......
शानदार.....किसको कहें अपना........बहुत खूब|
कल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....
बहुत मुश्किल है ...
सटीक लेखन.
वाह!!! बहुत बहुत बधाई ||
प्रभावी कविता ||
सुन्दर प्रस्तुति ||
आपने समस्या तो गम्भीर बतायी है इसका उपाय है केवल अपने पे भरोसा करो।
brhtreen prstuti vandna ji......
जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको
बढ़िया अभिव्यक्ति
सामंजस्य बिठाओ
नहीं तो विद्रोह करो
या फिर सहन करो
मौजूदा समय में प्रासंगिक रचना।
सच बड़ी ही विकत स्थिति है!
कमाल की उपमा दी है आपने!
Sunder
Chand shabdo mein kaafi kuch keh diya.
Sunder...Sadhi huyi PAnktiyan...
Vandana ji bahut hi sunder rachna hamesha ki tarah..
जहाँ बाड खेत को
खुद है खाती
लुटेरों के हाथ में
तिजोरी की चाबी
वहाँ किससे बचाएं किसको ...
आम इंसान इसी दुविधा /चिंता से गुजरता रहता है!
आज मचाई मंच पर, कुछ लिंकों की धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।
छोटी किन्तु सशक्त बेहतरीन रचना
सुंदर पोस्ट,...
किसको कहें,अपना यहां,हर ओर यही अनिश्चितिता है.
अक्सर ही ऐसा ही लगता है.
"सब मुह देखे की लीला है"
सुन्दर रचना आदरणीय वंदना जी...
सादर बधाई...
सटीक......बहुत खूब
बहुत सारगर्भित और सटीक प्रस्तुति..बहुत सुंदर
सार्थक व सटीक रचना..सुन्दर..
आज कल की घटनाओं को शब्दों का बेहतरीन जामा पहनाया है आपने..
सार्थक, सामयिक, सराहनीय , आभार.
छोटी-छोटी पंक्तियों और प्रवाह ने रचना को ऊँचाइयों पर ला दिया.
mann hee sab se bada lutera hai!
sahi kaha ajkal ese hi halat hai
ये जग झूठा
नाता झूठा
खुद का भी
आपा है झूठा
फिर सत्य माने किसको
अब आपके हृदय में वैराग्य का संचार होता ही जा रहा है,तो जग झूंठा और नाता झूंठा लगना ही है न. शिव भी तो पार्वती से कहते हैं
'उमा कहूँ मैं अनुभव अपना
सत् हरि भजन जगत सब सपना'.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,वंदना जी.
nice Post Plz Visit:- http://hindi4tech.blogspot.com
कैसी मची है
आपाधापी
कोई नहीं
किसी का साथी
सब मुख देखे की लीला है
फिर दुखडा सुनायें किसको ...
सच कहा है ... ये दुनिया पता नहीं क्या से क्या होती जा रही है ... झूठा स्वप्न हो जैसे ...
एक टिप्पणी भेजें