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सोमवार, 12 दिसंबर 2011

कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं



दर्द ऐसे भी कभी छीजता है
ना टपकता है 
ना निकलता है
ना ठहरता है
बस अलाव सा सुलगता है

देखो उम्र की चिता सुलग रही है
और धुंआ भी दमघोटू बन गया है

याद रखना ………बुझी राख भी जला देती है
ठंडे शोले ही छाले बना देते हैं 
फिर चाहे हाथ पर पड़ें या रूह पर 
कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव
देख लो आज जी भर के
कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं 

33 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

देखो उम्र की चिता सुलग रही है ...वाह ...बहुत खूब कहा है ।

अनुपमा पाठक ने कहा…

मार्मिक!!!
जीवन और चिता अगर साथ साथ प्रयुक्त हो रहे हों... तो दर्द अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच कर ही शब्द रूप में ढल पाया है...!
कलम की पीड़ा शब्दों के माध्यम से हृदय तक पहुँच रही है!

विभूति" ने कहा…

गहन और यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....

अशोक सलूजा ने कहा…

चिंताओं की वेदना ! सटीक.....

Neeraj Kumar ने कहा…

कुछ चिताएँ उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं...

सच कहा है और
कुछ जीवन जिंदगी भर जीकर भी जिंदगी नहीं कहलाती...

Unknown ने कहा…

गहन और गहरे ह्रदय से लिखी गयी रचना सृजित की है वंदना जी आपने बधाई

Maheshwari kaneri ने कहा…

सच कहा उम्र्के साथ-साथ चिता भी सुलगती रहती है.जिसमें कभी -कभी घूँआ भी नहीं दिखाई पड़ता..बहुत मार्मिक वन्दना जी..

Anita ने कहा…

कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं...और वे चिंता की चिताएं होती हैं...इसलिए चिंता छोड़ चिंतन को अपना लें तो...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

जीवन की संवेदना का सार्थक शब्द-चित्र.!
आभार !

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धीरे धीरे सुलगती है यादों की लकड़ियों

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut gahan bhaav kuch chitaayen kabhi nahi bujhti ...bahut marmik bhaav.

ZEAL ने कहा…

Beautifully expressed Vandana ji. Badhaii.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन भाव लिए हुए .. उम्र भर भले ही न बुझें पर मृत्यु के पड़ाव पर बुझ जाना पड़ता है ..

सुरेश शर्मा . कार्टूनिस्ट ने कहा…

पहले की पांच पंक्तियाँ दिल की गहराइयो
को टच कर जाती है..वैसे पूरी प्रस्तुति
सुन्दर भावनात्मक है ..आभार ! सोचता
हूँ, आजतक इस ब्लॉग पर न आकर
हमने बहुत कुछ खोया है !

Mamta Bajpai ने कहा…

आज कल का तनाव झेलता जीवन ही आपकी रचना का उदाहरण है सत्य का दर्शन कराती भाव पूर्ण रचना आभार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव देख लो आज जी भर के कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं ... sach hai aur sulgan dikhaai bhi nahi deti

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

ठण्डे शोले ही छाले बना देते हैं
फिर चाहे हाथ पर पड़ें या रूह पर

बहुत खूब....

Atul Shrivastava ने कहा…

बेहतरीन रचना।
सच में कुछ आग हमेशा सुलगती रहती हैं

मदन शर्मा ने कहा…

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...आभार।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bahut hee badhiya

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति वंदना जी...

amrendra "amar" ने कहा…

sunder bhanbhheni prastuti ke liye hardik badhai

आशा बिष्ट ने कहा…

behad khoob

Amit Chandra ने कहा…

सत्य का आइना दिखाती बेहतरीन रचना.

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव
देख लो आज जी भर के
कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं

ati sundar abhivakti

मंजुला ने कहा…

bahut sundar vandana jee....

Nirantar ने कहा…

zakhm theek ho jate hein
nishaan rah jaate hein

Rajput ने कहा…

कुछ चिताएं उम्रभर जल कर भी नहीं भुझती ,
बहुत सुन्दर कविता

***Punam*** ने कहा…

"कुछ चिताएं उम्रभर जल कर भी नहीं बुझतीं"

बहुत खूब........!!

Jeevan Pushp ने कहा…

गहन विचार ...! बेहतरीन प्रस्तुति..!
मेरे ब्लॉग पे आकर उत्साहित करने के लिये
आपको दिल से शुक्रिया !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दर्द तो अक्सर सुलगता ही है ... जल कर धुँवा नहीं होता ... बहुत ही गहरे दर्द में डूब के लिखी रचना ...

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

दर्द.... बस अलाव सा सुलगता है.... सच..

बहुत सुन्दर !!