दर्द ऐसे भी कभी छीजता है
ना टपकता है
ना निकलता है
ना ठहरता है
बस अलाव सा सुलगता है
देखो उम्र की चिता सुलग रही है
और धुंआ भी दमघोटू बन गया है
याद रखना ………बुझी राख भी जला देती है
ठंडे शोले ही छाले बना देते हैं
फिर चाहे हाथ पर पड़ें या रूह पर
कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव
देख लो आज जी भर के
कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं
33 टिप्पणियां:
देखो उम्र की चिता सुलग रही है ...वाह ...बहुत खूब कहा है ।
मार्मिक!!!
जीवन और चिता अगर साथ साथ प्रयुक्त हो रहे हों... तो दर्द अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच कर ही शब्द रूप में ढल पाया है...!
कलम की पीड़ा शब्दों के माध्यम से हृदय तक पहुँच रही है!
गहन और यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
चिंताओं की वेदना ! सटीक.....
कुछ चिताएँ उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं...
सच कहा है और
कुछ जीवन जिंदगी भर जीकर भी जिंदगी नहीं कहलाती...
गहन और गहरे ह्रदय से लिखी गयी रचना सृजित की है वंदना जी आपने बधाई
सच कहा उम्र्के साथ-साथ चिता भी सुलगती रहती है.जिसमें कभी -कभी घूँआ भी नहीं दिखाई पड़ता..बहुत मार्मिक वन्दना जी..
कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं...और वे चिंता की चिताएं होती हैं...इसलिए चिंता छोड़ चिंतन को अपना लें तो...
जीवन की संवेदना का सार्थक शब्द-चित्र.!
आभार !
बहुत सुन्दर |
धीरे धीरे सुलगती है यादों की लकड़ियों
bahut gahan bhaav kuch chitaayen kabhi nahi bujhti ...bahut marmik bhaav.
Beautifully expressed Vandana ji. Badhaii.
गहन भाव लिए हुए .. उम्र भर भले ही न बुझें पर मृत्यु के पड़ाव पर बुझ जाना पड़ता है ..
पहले की पांच पंक्तियाँ दिल की गहराइयो
को टच कर जाती है..वैसे पूरी प्रस्तुति
सुन्दर भावनात्मक है ..आभार ! सोचता
हूँ, आजतक इस ब्लॉग पर न आकर
हमने बहुत कुछ खोया है !
आज कल का तनाव झेलता जीवन ही आपकी रचना का उदाहरण है सत्य का दर्शन कराती भाव पूर्ण रचना आभार
कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव देख लो आज जी भर के कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं ... sach hai aur sulgan dikhaai bhi nahi deti
ठण्डे शोले ही छाले बना देते हैं
फिर चाहे हाथ पर पड़ें या रूह पर
बहुत खूब....
बेहतरीन रचना।
सच में कुछ आग हमेशा सुलगती रहती हैं
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...आभार।
bahut hee badhiya
बेहतरीन अभिव्यक्ति वंदना जी...
sunder bhanbhheni prastuti ke liye hardik badhai
behad khoob
सत्य का आइना दिखाती बेहतरीन रचना.
कभी देखा है जीवित चिता का मृत्यु पूर्व सुलगता तांडव
देख लो आज जी भर के
कुछ चिताएं उम्रभर जलकर भी नहीं बुझतीं
ati sundar abhivakti
bahut sundar vandana jee....
zakhm theek ho jate hein
nishaan rah jaate hein
कुछ चिताएं उम्रभर जल कर भी नहीं भुझती ,
बहुत सुन्दर कविता
"कुछ चिताएं उम्रभर जल कर भी नहीं बुझतीं"
बहुत खूब........!!
गहन विचार ...! बेहतरीन प्रस्तुति..!
मेरे ब्लॉग पे आकर उत्साहित करने के लिये
आपको दिल से शुक्रिया !
दर्द तो अक्सर सुलगता ही है ... जल कर धुँवा नहीं होता ... बहुत ही गहरे दर्द में डूब के लिखी रचना ...
दर्द.... बस अलाव सा सुलगता है.... सच..
बहुत सुन्दर !!
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