ई-बरिस्ता पर वंदना गुप्ता का आलेख = "सोशल साईट पर प्रतिबन्ध नहीं, उनकी उपयोगिता समझाने की आवश्यकता है"
E-BARISTAA: ई-बरिस्ता पर वंदना गुप्ता का आलेख = "सोशल
साईट पर प्रतिबन्ध नहीं, उनकी उपयोगिता समझाने क
साईट पर प्रतिबन्ध नहीं, उनकी उपयोगिता समझाने क
इस बार का विषय है >> ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’ और इस विषय पर पहला आलेख प्रस्तुत है प्रसिद्द ब्लॉगर वंदना गुप्ता जी का और इस आलेख का शीर्षक है "सोशल साईट पर प्रतिबन्ध नहीं उनकी उपयोगिता समझाने की आवश्यकता है"
इस लिंक को ओपन करके पढ़ सकते हैं
जो इस प्रकार है ............
आज वैचारिक क्रांति को सोशल साइट्स ने एक ऐसा मंच प्रदान किया है जिसने बौद्धिक जगत में एक तहलका मचा दिया है. कोई इन्सान, कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं है. सूचना और संचार का एक ऐसा साधन बन गया है जिसमे कहीं कोई प्रतीक्षा नहीं मिनटों में समाचार सारी दुनिया में इस तरह फैलता है कि हर खास-ओ-आम इससे जुड़ना चाहता है.
फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट या ब्लॉग सभी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है और अपना खास योगदान दिया है. आज जब इन सोशल साइट्स का दबदबा इतना बढ़ गया है तब हमारी सरकार इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहती है. ये तो इंसान के मौलिक अधिकारों का हनन है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाना तो गलत है ये तो ऐसा हुआ जैसे स्वतंत्रता को हथकड़ी पहना कर कटघरे में खड़ा करना. आखिर क्यों? ये प्रश्न उठना जायज है. इस सन्दर्भ में हमें इसके पक्ष और विपक्ष के दोनों पहलू देखने होंगे तभी हम सही आकलन कर पाएंगे.
आज जागरूकता के क्षेत्र में इन साइट्स ने एक ऐसा स्थान हासिल किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता. और इसका ताज़ा उदाहरण मिस्र हो या लीबिया या फिर हमारा देश भारत सब जगह क्रांति को परवान चढाने में इन साइट्स का खास योगदान रहा. सबने अपनी अपनी तरह से बदलाव लाने के लिए योगदान दिया. आज जैसे ही कोई भी नयी जानकारी हो या कोई राजनैतिक या सामाजिक हलचल उसके बारे में सबसे पहले यहाँ सूचना मिल जाती है. यहाँ तक कि कोई भी क्षेत्र हो चाहे सरकारी या गैर सरकारी सब इनसे जुड़े हैं इसका ताज़ा उदाहरण देखिये हमारी सरकार ने ही ट्रैफिक पुलिस द्वारा किये चालान हों या किसी ने कोई नियम भंग किया हो उसके बारे में ताज़ा अपडेट्स यहाँ डाले हैं ताकि कोई भी हो चाहे नेता,मंत्री या संत्री सबको एक समान आँका जाये और उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की जा सके और इसका असर भी देखने को मिला. पुलिस ने भी अपनी साईट बनाई है जिस पर जब चाहे कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है तो जब ये ऐसे उचित माध्यम हैं कि सबकी हर जरूरत को पूरा करते हैं तो फिर क्यों चाहती है सरकार कि इन पर प्रतिबन्ध लगे ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है.
इसके लिए हमें ये देखना होगा कि बेशक इन साइट्स ने लोकप्रियता हासिल कर ली है और खरी भी उतर रही हैं मगर जिस तरह सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं उसी तरह यहाँ भी हैं. हर अच्छाई के साथ बुराई का चोली दामन का साथ होता है. ऐसे में यहाँ कई बार अश्लील सामग्री मिल जाती है जिससे ख़राब असर होता है या कई बार कुछ नेताओं के बारे में आपत्ति जनक तथ्य डाल दिए जाते हैं या उन्हें अपमानित कर दिया जाता है तो इससे सरकार घबरा गयी है क्योंकि उनके खिलाफ इसका प्रयोग इस तरह हो गया कि ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था तो जब कोई और हल नहीं दिखा तो इन पर ही प्रतिबन्ध लगने का सोचने लगी. इसके अलावा एंटी सोशल एलिमंट्स सक्रिय हो जाते हैं जिससे सूचनाओं का गलत प्रयोग हो जाता है तब घबराहट बढ़ने लगती है मगर जब अंतरजाल के अथाह सागर में आप उतरे हैं तो छोटे- मोटे हिलोर तो आयेंगे ही और उनसे घबरा कर वापस मुड़ना एक तैराक के लिए तो संभव नहीं है वो तो हर हाल में उसे पार करना चाहेगा बस उसे अपना ध्यान अपने लक्ष्य की तरफ रखना होगा.
सरकार चाहती है अश्लीलता पर प्रतिबन्ध लगे ........ये बेशक सही बात है मगर क्या इतना करने से सब सही हो जायेगा? अंतर्जाल की दुनिया तो इन सबसे भरी पड़ी है और कहाँ तक आप किस किस को बचायेंगे और कैसे? सब काम ये साइट्स तो नहीं कर सकती ना. जिसने ऐसी साइट्स पर जाना होगा वो अंतर्जाल के माध्यम से जायेगा और जो कहना होगा वो कहेगा भी तो क्या फायदा सिर्फ इन साइट्स पर ही प्रतिबन्ध लगाने का. उचित है कि हम खुद में बदलाव लायें और समझें कि इन साइट्स की क्या उपयोगिता है और उन्हें सकारात्मक उद्देश्य से प्रयोग करें और अपने बच्चों और जानकारों को इनकी उपयोगिता के बारे में समझाएं ना कि इस तरह के प्रतिबन्ध लगायें क्यूँकि आने वाला वक्त इसी का है जहाँ ना जाने इससे आगे का कितना जहान बिखरा पड़ा है तो आखिर कब तक और कहाँ तक रोक लगायी जा सकेगी ........सामना तो करना ही पड़ेगा. वैसे भी इन साइट्स के संचालकों का कहना सही है यदि हमारे पास कोई सूचना आती है तो हम उस खाते को बंद कर देते हैं मगर पूरी तरह निगरानी करना तो संभव नहीं है. सोचिये जरा जब हम अपने २-३ बच्चों पर निगरानी नहीं रख पाते और उन्हें ऐसी साइट्स देखने से रोक नहीं पाते तो कैसे संभव है कि इस महासागर में कौन क्या लिख रहा है या क्या लगा रहा है कैसे पता लगाना संभव है?
आपसी समझ और सही दिशाबोध करके ही हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं. मगर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना किसी भी तरह उचित नहीं है क्यूँकि आने वाला कल इन्ही उपयोगिताओं का है जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता. बदलाव को स्वीकारना ही होगा मगर एक स्वस्थ सोच के साथ. आत्म-नियंत्रण और स्वस्थ मानसिकता ही एक स्वस्थ और उज्ज्वल समाज को बनाने में सहायक हो सकती है ना की आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध.
18 टिप्पणियां:
bahut achha aalekh ...
आपका आलेख पढ़कर एक बात मन में आयी कि कभी यह भी मांग आ सकती है कि भगवान को भी कहा जाये कि ऐसा व्यक्ति या ऐसा प्राणी उत्पन्न ही ना करो, जिससे समाज को आघात पहुंचता हो। कुछ नहीं होगा सेंसरशिप से। समाज की गन्दगी को निकलने दीजिए। लोगों को बहुत सस्ता प्लेटफार्म मिल गया है, इसलिए निकलने पर ही ठीक होगा। जब भी समाज पर प्रतिबंध लगता है तो गन्दगी एकत्र होती है और किसी अन्य घातक रूप में निकलती है।
@ aji gupta ji
आपका कहना सही है यहाँ तो भगवान को भी कटघरे मे खडा रखते हैं फिर इंसान क्या चीज़ है………हर चीज़ के दो पहलू होते हैं अच्छे भी और बुरे भी और हर इंसान मे ये दोनो मौजूद रहते हैं तो क्या हम उन्हे छोड देते हैं ये इतनी सी बात लोग नही समझते । अब विज्ञान के अविष्कारों के फ़ायदे भी है नुकसान भी मगर सुरक्षा के उपाय अपनाकर हम उनका प्रयोग करते ही हैं ना तो फिर इन माध्यमो का क्या दोष? आगे आने वाला समय है ही इनका कब तक और कैसे इनसे विमुख रहा जा सकता है ये तो हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हम उनका उपयोग कैसे करते है और आगे समाज को कैसी दिशा प्रदान करते हैं।
सुन्दर और तर्कसंगत विवेचन , कौंग्रेस का एक ही फंडा हमेशा रहा है कि आम जनता को कुछ न कुछ में उलझाए रखो ताकि असल मुद्दों पर सोचने का इन्हें वक्त ही न मिले !
sateek tathyon par aadharit aalekh .badhai
वंदना जी बहुत सटीक और सुन्दर सामायिक विषय पर आपका ये लेख काबिलेतारीफ है.......सहमत हूँ आपसे पर सामाजिक मर्यादा का बंधन होना ही चाहिए उसके लिए कानून के बजाय हम लोगों को खुद की ही सोच बदलनी होगी.........इस लेख के लिए हैट्स ऑफ|
बिल्कुल सही कहा है आपने ... सार्थक व सटीक लेखन ।
aapki baat sahi hai, par pata nahi kyon mujhe lagta hai, sarkar jo bhi karti hai, kuchh log ek dum se uska ulta sochte hai, ye galat baat hai...!
soch badalne ki baat ya anushasan ye sirf sabdo me rah gaya hai,... jab tak danda nahi chalta kuchh nahi hota..
mujhe lagta hai agar iss social sites ka upyog galat tareeke se hota hai to uspe lagam lagana bahut jaruri hai.......
प्रतिबन्ध कहाँ तक लगेगा??.सभी अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें यही जरुरी है.
सार्थक आलेख.
पारदर्शिता और जागरूकता एक वरदान के रूप में मिला है, इस क्रान्ति के माध्यम से।
बढ़िया आलेख!
सटीक विश्लेषण ..अच्छा लेख .
बहुत खूब..अलमस्त जिंदगी का खूबसूरत फसाना.बेहतरीन!!!!
वंदना जी बिलकुल सही मुद्दा है लोकतंत्र में जाने क्या से क्या करना चाहते हैं ये !
सुंदर लेख !
बधाई!
बहुत अच्छा है आलेख...
एकदम सटीक विश्लेषण .... सच है उपयोगिता समझाई जाये तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं.....
सुन्दर, शानदार एवं उम्दा आलेख ! बधाई !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
तर्कसंगत ... सामयिक आलेख है ... सब को समझ आता है पर ये सरकार को समझ नहीं आता ... पता नहीं क्या वजह है ...
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