अभी अभी हमारे ब्लोगर मित्र सत्यम शिवम् ने अपना पहला काव्य संग्रह "साहित्य प्रेमी संघ " के तत्वाधान में " टूटते सितारों की उड़ान " निकाला है जिसमे उन्होंने २० कवियों की कविताओं को शामिल किया है . पेशे से इंजिनियर सत्यम ने इस पुस्तक का संपादन स्वयं किया है और उम्र में तो अभी हमारे बेटे जैसा है मगर फिर भी इतनी लगन और निष्ठा से कार्य को अंजाम दिया है कि लगता ही नहीं ये कार्य किसी नवागंतुक ने किया है . शायद तभी कहते हैं प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती.
इस काव्य संग्रह में बीस कवियों की रचनाएँ हैं जिनमें पांच कविताएँ
मेरे द्वारा रचित हैं जिन्हें ससम्मान स्थान प्रदान किया है और मुझे अनुग्रहित किया है ........ह्रदय से आभारी हूँ .......मेरी निम्न कवितायेँ शामिल की गयी हैं .........
१)सोन चिरैया
२)नारी या भोग्या?
३) बेनाम दहलीजों को कब नाम मिले हैं
४)और कविता लौट गयी कभी ना मुड़ने के लिए
५)ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही
बस आप सबके प्रेम और उत्साहवर्धन की आवश्यकता है ताकि हमारा लेखन नियमित चलता रहे
मुझे समीक्षा करना तो आता नहीं और ना ही मैं समीक्षक हूँ . बस पुस्तक मिलते ही पढने बैठ गयी और जब पढना शुरू किया तो एक घंटे में ही आधी से ज्यादा पुस्तक पढ़ चुकी थी जिससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि विभिन्न कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं ने कितना मन मोहा होगा.
चलिए ले चलती हूँ अपने दृष्टिकोण के साथ इस काव्य संग्रह के सफ़र पर .........
पुस्तक की शुरुआत में सत्यम के पिताजी का वक्तव्य और उनकी उत्कृष्ट कविता "दर्द का पर्वत " है जो इंसानी जीवन के पहलुओं पर प्रकाश डालती है जिनसे हर इन्सान गुजरता है मगर समझ नहीं पाता कि वक्त या नियति हमसे क्या चाहती है ? हम किसलिए आये हैं?
अब ना तपस्वी ना साधक
ना कोई ज्ञानी आएगा
ना मैं बैठने का साधन हूँ
इसलिए मैं सागर में अपने
अनेक दर्दों के साथ विलीन हो रहा हूँ
कोई मुझे खोजेगा तो भी नहीं मिलूंगा
ये पंक्तियाँ मानव मन की व्यथा का जीता जागता प्रमाण हैं.
संगीता स्वरुप जी से तो हमारे सभी ब्लोगर परिचित हैं और उनका कवितायेँ कहने का अंदाज़ तो है ही सबसे जुदा जिसमे वो ऐसे रंग भरती हैं कि कई बार मन चकित हो जाता है . जीवन के परिद्रश्यों को सहजता से कह जाना ही उनके लेखन को सबसे अलग करता है . उनकी कविता "सुगबुगाती आहट "में उम्रदराज होते दांपत्य में कैसे साथी के प्रति समर्पण भाव होता है उसे परिलक्षित किया गया है तो दूसरी तरफ "याज्ञसेनी" कविता में ना केवल द्रोपदी के चरित्र को और उसके बिखरे व्यक्तित्व को उभारा है बल्कि उसके लिए एक प्रश्न भी छोड़ा है कि तुम ही रही हो कारण महाभारत के युद्ध का तो दूसरी तरफ बुद्ध को भी कटघरे में खड़ा किया है नारी होने के नाते यशोधरा के दर्द को शब्द दिए हैं.
डॉक्टर रूप चन्द्र शास्त्री जी से भी सभी परिचित हैं और उनके छंदबद्ध लेखन के कायल भी हैं . उनके लिए कुछ कहना तो शायद मेरी कलम के बस में नहीं है. हर तरह के लेखन में उनका वर्चस्व कायम है और यही उनकी कविताओं में परिलक्षित होता है. "जाना बहुत जरूरी है" कविता में कितनी सहजता से जीवन का सार समझा दिया कि एक दिन सबने जाना है इस धरा से तो क्यों ना कुछ ऐसा काम करके जायें जिससे सबके मनों में बस जायें. आना हमारे बस में नहीं और जाना भी जरूर है तो आये हैं तो आने को सार्थक करना भी जरूरी है यही हैं उनकी कविता के भाव. इसके अलावा "जुबान से खुलेंगे हरफ धीरे धीरे , दिवस सुहाने आने पर" आदि कवितायेँ दिल पर गहरा असर छोडती हैं.
मुंबई में रहने वाली दर्शन कौर धनोय जी भी ब्लॉग जगत की जानी मानी हस्ती हैं . अपनी कविता "क्यों होते हैं ये धमाके" में एक प्रश्न छोड़ रही हैं आखिर मासूमों का क्या दोष ? तो दूसरी तरफ मन के गुलदान में एक फूल सजा कर रखा था मगर शायद भूल गयीं थीं कि फूलों के संग कांटे भी होते हैं और जो चुभकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.
इनके अलावा कभी दिलकश दिखता है चाँद तो कभी इल्तिजा करती हैं मुझे मेरा प्यार लौटा दो . सभी कवितायेँ प्रेम रस से आप्लावित हैं जो पाठक पर अपना असर छोडती हैं.
इनके बाद मेरी कविताओं को भी ससम्मान स्थान प्रदान किया है जिनमे " सोन चिरैया , नारी या भोग्या? , बेनाम दहलीजों को कब नाम मिले हैं ,और कविता लौट गयी कभी ना मुड़ने के लिए, ज़िन्दगी पन्ने पलटती रही " कविताओं को स्थान प्रदान कर मुझे अनुग्रहित किया है .
उत्तर प्रदेश में रहने वाले प्रशासनिक अधिकारी श्री अशोक कुमार शुक्ला जी की कवितायेँ यथार्थ बोध कराती हैं ."इक्कीसवां बसंत" कविता में कवि ने बताया कि कैसे युवावस्था में मानव स्वप्नों के महल खड़े करता है और जैसे ही यथार्थ के कठोर धरातल पर कदम रखता है तब पता चलता है कि वास्तव में जीवन खालिस स्वप्न नहीं . "कैसा घर" कविता व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष है .तो दूसरी तरफ "गुमशुदा" कविता में रिश्तों की गर्माहट ढूँढ रहे हैं जो आज कंक्रीट के जंगलों में किसी नींव में दब कर रह गयी है .इनके अलावा तुम, दूरियां , परिक्रमा ,बिल्लियाँ आदि कवितायेँ हर दृश्य को शब्द देती प्रतीत होती हैं यहाँ तक कि बिल्लियों के माध्यम से नारी के अस्तित्व पर कैसा शिकंजा कसा जाता है उसे बहुत ही संवेदनशील तरीके से दर्शाया है........
चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर
और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ
मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर
कितना उडा जा सकता है
आखिर क्यों नहीं सहा जाता
अपने पिंजरे में रहकर भी
खुश रहने वाली
चिड़ियों का चहचहाना
तो दूसरी तरफ "वेताल" सरीखी कविता हर जीवन का अटल सत्य है . हर कविता के माध्यम से कुछ ना कुछ कहने का प्रयास किया है जो उनके लेखन और सोच की उत्कृष्टता को दर्शाता है .
मध्य प्रदेश के सतना में वी आई टी एस में पढ़ा रहे गौरव सुमन जी की रचनाएं सभी उम्दा लेखन का परिचायक हैं . मैं हूँ कहाँ , मेरी अभिलाषा,प्रेरणा , माँ तुमसे दूर रहकर मैंने कितना सीखा , बचपना , एक छात्र की व्यथा और लो वोल्टेज आदि कवितायेँ अपना प्रभाव छोडती हैं.
पेशे से इंजिनियर बबन पांडे जी की कवितायेँ मखमली आलिंगन में श्रृंगार रस की प्रधानता है तो दूसरी ओर वो इश्क का पता पूछ रहे हैं और देख रहे हैं कभी तो बियर बार में तो कभी खंडहरों में और ढूँढ रहे हैं सच्चे इश्क को जो ना घर में मिला ना बाहर . तो दूसरी तरफ व्यंग्य के माध्यम से ईश्वर को बता रहे हैं कि व्यापारी बन जाता तो कितना हिट हो जाता . कहीं उनका कवि मन छात्रों द्वारा आत्महत्याओं से व्यथित है जिसे वो अपनी कविता दिल पे मत ले यार के माध्यम से पहुँचा रहे हैं .
माँ की परिभाषा, कुछ नया सोचो , प्रकृति के रिश्ते आदि कवितायेँ उनके लेखन की विविधता को दर्शाते हैं.
श्रीमती महेश्वरी कनेरी जी से भी हमारे सभी ब्लोगर बंधु परिचित हैं. इम्तिहान लेती है ज़िन्दगी , कुछ सांस बची है जीने की प्यार बेटी , मेरे सपनो का संसार आदि कवितायेँ दिल में गहरे उतरती हैं. और मन की दुविधा को "कौन हूँ मैं " कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करती हैं जब उम्र के एक पड़ाव पर आकर महसूस होता है कि जीवन तो यूँ ही बीत गया कर्तव्यों को निभाते मगर जाना ही नहीं अपने बारे में तो दूसरी तरफ "पगडण्डी" कविता में एक शोषित नारी की व्यथा को चित्रित किया है जो मन को विचलित करती हैं.
बहुराष्ट्रीय कंपनी में पेशे से अभियंता नीरज द्विवेदी जी की रचनायें एक अलग ही दृष्टिकोण कायम करती हैं . "क्यूँ लिख दूं मैं कविता" में रोजमर्रा के जीवन जीते इन्सान की मनोदशा का चित्रण है . कैसे कैसे सारा दिन किन हालातों से गुजरता इन्सान दिन के आखिर में क्या लिख सकता है और क्यूँ लिखे किसके लिए क्यूँकि सभी तो मृतप्राय हैं आज ज़िन्दा कौन है ? सिर्फ सांसें चलने से ही तो कोई ज़िन्दा नहीं होता ना .........."चाहत इनमे भी है" कविता में उन अनाथ छोटे बच्चों के मन को शब्दों में बांधा है जिनका कोई नहीं मगर उन्हें कोई साया नसीब नहीं होता वरना उनमे भी ना जाने कितने ऐसे अनमोल हीरे होते हैं जिन्हें यदि तराशा जाये तो देश का नाम उज्जवल कर सकते हैं.
जागो, फिर आँखों में पानी है , बोला सुभाष आदि कवितायेँ एक से बढ़कर एक हैं और उनके भावुक ह्रदय में उठती देशप्रेम की लहर को रेखांकित करती हैं .
लक्ष्मी नारायण लहरे उर्फ़ साहिल युवा साहित्यकार , समीक्षक और पत्रकार हैं. मन में उपजे असंतोष और व्यथित ह्रदय की विकलता को समीक्षक की दृष्टि से और कवि के दृष्टि दोनों से ही बहुत खूबसूरती से कविताओं में पिरोया है. "आजकल" कविता में कैसे हर इन्सान सुबह से शाम तक जीता है उस भाव को चित्रित किया है तो नारी की ज्वलंत व्यथा में नारी की व्यथा ही उकेरी है . साहित्य की बहस, मेरा अतीत, वो भोली गांवली आदि कविताओं में विभिन्न परिदृश्यों का समावेश किया है. "भावनाओं में बह गया था" कविता में एक मीठा कटाक्ष है जो दिल को आंदोलित करता है . कैसे भूल पाऊँ , अब ऐसा क्या लिखूं में एक दर्द उभर कर आता है जिसमे इन्सान हालात के आगे कैसे मजबूर हो जाता है.
साधना वैद जी से तो हम सभी परिचित हैं. अपनी कविता "तुम्हें आना ही होगा" में प्रभु से गुहार लगा रही हैं कि देखो आज फिर अधर्म का साम्राज्य है , कितनी अबलाओं की लाज लुट रही है , गौ हत्याएं हो रहीं हैं.........अब और कितना अन्याय होना बाकी है हे मोहन अब तो आ जाओ और अपने वचन को सार्थक करो तो दूसरी तरफ "झील के किनारे" कविता में मन को वहीँ चलने को कह रही हैं जहाँ उसे देख सकें और ये तभी संभव है जहाँ पानी साफ़ हो और ठहरा हुआ हो .............बेहद गहन भावों को कितनी खूबसूरती से पिरोया है कि मन में बस जाते हैं. "मेरे मौन को तुम मत कुरे"दो में कैसे नारी के भावों को पोषित किया है और सच कहा है कि मत कुरेदो क्यूँकि अगर मौन मुखर हुआ तो शायद तुम सह ना पाओ और उस विशाल प्रचंड आवेग में बह जाओ और कल रात ख्वाब में कविता में तो जैसे प्रेम को उसका मुकाम ही दिला दिया . प्रेम का दिव्य रूप दिखला दिया . सभी कवितायेँ बेहद खूबसूरत भावों का बेजोड़ संकलन हैं.
पेशे से इंजिनियर दिव्येंद्र कुमार रसिक जी की कवितायेँ दीवाना , तेरी उम्मीद , भंवरा खेल आदि सभी बहुत सुन्दर भाव संप्रेक्षण करती हैं. प्रेम पथिक कविता आगे बढ़ने को और हौसला ना हारने को प्रेरित करती है. "शुरुआत" कविता में एक नयी शुरुआत करने को कह रहे हैं जिसमे अभिनय ऐसा हो कि जीवंत हो जाये . ना कोई पुरानी याद हो ना दर्द हो ना लफ्ज़ ना कोई ज़िन्दगी की कडवाहट और अपने रिश्ते को एक नए रूप में फिर से जीवन में गढ़ें ताकि यूँ लगे जैसे बने ही एक दूजे के लिए हों.श्यामा, काव्य, विवशता आदि सभी कवितायेँ भिन्न भिन्न भावों को प्रस्तुत करती हैं.
पेशे से पत्रकार विभोर गुप्ता ने सबसे पहले सरस्वती वन्दना की है और उसके बाद शहीदों को नमन किया है कविता के माध्यम से . उसके बाद उनकी कविता "नाबालिग और सिगरेट" सोचने को विवश करती है कि आज़ाद देश का नागरिक होने के हमने क्या -क्या मतलब निकाल लिए हैं बिना कोई दुष्परिणाम जाने एक बेहद गहन चिंतन की माँग रखती कविता दिल को छूती है. "अब भारत की बारी" एक व्यंग्यात्मक कविता है जो सोये देश के नागरिकों को जगाने का प्रयास करती है तो दूसरी ओर "आत्महत्या का अधिकार" कविता मन को उद्वेलित करती है . आज का गरीब, किसान , या मजदूर कोई भी हो जो दो वक्त की रोटी ढंग से नहीं खा पाता , अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पाता वो परिस्थितियों से विवश होकर कैसे आत्महत्या की ओर अग्रसित होता है उसके मन के भीषण हाहाकार को कवि ने ऐसे उंडेला है कि पाठक बाहर नहीं आ पाता .भूमि अधिग्रहण , जशन - ए- आज़ादी , राखी की कीमत आदि कवितायेँ सभी सामाजिक परिवेश से जुडी एक संवेदनशील मन को झकझोरने के लिएकाफी हैं.
ग्रामीण अंचल में सक्रिय पेशे से पत्रकार नीलकमल वैष्णव उर्फ़ अनिश ने अपनी पहली ही कविता में सबसे पहले हिंदी की महिमा का बखान कर उसे नमन किया है. उसके बाद इंतज़ार कविता में इंतज़ार शब्द को व्याख्यातित किया है कैसे इंतज़ार का पल -पल युगों के बराबर हो जाता है तो दूसरी ओर ऐसा देश है मेरा में जोरदार व्यंग्य किया है कि कैसा देश है मेरा जिसमे चोर, डाकू लुटेरे राज करते हैं और एक सीधा सच्चा इन्सान डर- डर कर जीता है , भ्रष्टाचार , बेईमानी का बोलबाला है . यादें , माँ की अहमियत, दूर तक, सह ना अन्याय , समाजमे सुधार क्रांति की नवजोत जलाएं आदि सभी कवितायेँ आज की सामाजिक स्थिति को चित्रित करती हैं .
सुषमा आहुति जी हमारी जानी- मानी ब्लोगर हैं जिनसे सभी परिचित हैं . अपनी पहली ही कविता में वो कहती हैं यूँ तो मैंने सभी पर लिख दिया प्यार मोहब्बत , मिलाना -बिछड़ना मगर फिर भी कुछ बचा है जिस पर अभी लिखा नहीं और वो क्या है जानने के लिए तो कविता पढनी ही पड़ेगी ना .मेरे साथ चलकर देखना कविता में प्रेम का अनुराग फूट रहा है मगर साथ ही सब कहने के बावजूद कहती हैं यूँ तो बहुत बातें कर लीं मगर अभी बाकी है और वो क्या बाकी है तो इसके लिए पढ़िए उनकी कविता .............सारी कवितायेँ मोहब्बत के कोमल अहसासों को पिरोये हुए हैं. समझ तुम भी ना पाए, शब्दों में पिरो दिया मैंने,तुमसे प्यार करना चाहती हूँ मैं आदि सभी कवितायेँ प्रेम के रस में सराबोर कर देंगी .
उदय वीर सिंह जी हमारे ब्लोगर किसी परिचय के मोहताज नहीं . हमारे गाँव भी एक सेडान आई है कविता बेजोड़ है कितनी सहजता से व्यवस्था पर कटाक्ष है कि मन भारी हो जाता है हालात देखकर . औचित्य , प्रवास , मूल्य, प्रेम प्रत्यंचा,,भूल गए तो पाठ आदि कवितायेँ सोचने को विवश करती हैं तो दूसरी तरफ वो उन्हें नमन कर रहे हैं जो लौट कर नहीं आये.........सभी कवितायेँ एक उत्कृष्ट खज़ाना हैं.
हमारे अन्य ब्लोगर दोस्त प्रदीप कुमार साहनी जी कि कविता "मैं कौन" एक प्रश्न चिन्ह छोडती है तो साथ ही राह को उज्जवल भी बनाने के लिए कृत संकल्प दिखती है .माँ , कवि ह्रदय मेरा, अवतार --नन्ही सी देवी का , एक प्रश्न आदि सभी कवितायेँ बेहद उम्दा लेखन को दर्शाती हैं. "फूलों की तरह हंसो" कविता जीवन का संचार करतीहै .
मनीष कुमार नीलू जी अपनी कविता ज़िन्दगी एक पहेली को सुलझाने की कोशिश में लगे हैं जो जितना सुलझाओ उतनी उलझती है तड़पते रिश्ते , एक अलग अहसास, उन्हें ढूँढ रही आँखें ,अपना गाँव, अमावास की काली रात , अमन का राग आदि कवितायेँ उनके भावों का आईना हैं. मोहब्बत की शुरुआत कविता वाकई मोहब्बत की शुरुआत कैसे होती है उसका दर्शन कराती है .
और अब आखिर में सत्यम शिवम् की कवितायेँ हैं जिनके अथक प्रयासों ने सभी अनमोल कृतियों को एक माला में पिरोया है . पहली कविता "टूटते सितारों की उड़ान" शीर्षक से ही है और जो अपने नाम को सार्थक सिद्ध कर रही है . जो बता रही है कोई कमजोर नहीं बस एक बार आगे बढ़ने की सोच ले तो राहें खुद मचलने लगती हैं."कान्हा जब तेरी याद आती है" कविता में सत्यम के अध्यात्मिक मन के दर्शन होते हैं जहां गोपी भाव भी समाहित हो जाता है .तो दूसरी तरफ "मैं सांवला क्यों हूँ" में माँ से प्रश्न कर रहे हैं अब चाहे कान्हा हों या कोई और ये प्रश्न तो जायज है.
इसके अलावा साहसी है कौन, मैं वही हूँ आदि कवितायेँ उनके उत्कृष्ट लेखन को दर्शाती हैं.
दोस्तों ये मेरे निजी भाव हैं जो मैंने इस काव्य संग्रह को पढ़कर महसूस किये . अगर आप में से कोई भी इस काव्य संग्रह को पढना चाहता है तो सत्यम से कहकर मंगवा सकते हैं इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं ..........9934405997
43 टिप्पणियां:
bahn ji aapki rchnaaye aesi hi prbhavshaali hain ke unkaa prkaashn zruri ho jaata hai bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajasthan
बहुत अच्छी समीक्षा!
काश् हमें भी यह काव्य संग्रह पढ़ने का सुख मिलता!
बधाई हो, शीघ्र ही पढ़ते हैं यह संग्रह।
very good.....thanks.
aapki nazar se safar bahut achha raha - badhaai is sangrah ke liye
बधाई हो शिवम जी को.....
कविता संग्रह के लिए आप सभी को बधाई।
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई इस काव्य संग्रह के प्रकाशन की ...बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... आभार ।
बधाई हो अच्छी समीक्षा!
आभार !
मेरी नई रचना "तुम्हे भी याद सताती होगी"
बधाई वंदना जी..आपको,सत्यम जी को एवं सभी रचनाकारों को...
आपकी समीक्षा भी बहुत प्यारी है.
बधाई ... सही को बहुत बहुत बधाई ... आपने बहुत स्पष्ट और सधी हुयी समीक्षा की है ... शीघ्र ही पढते हैं इसे ..
badhai ho ji :-)
sabse pahle shivam ji ko safalta kee shubhkamnayein...aapki kavitayein is sajha sangrah kee bhaageedar bani iske liye aapko bhee hardik badhayee.....is tarah ke prayason kee aaj wakai me aaj avashyakta hai.....copy right ke liye bhe yadi is tarah ke pryas kiye jaaye to accha hai..sabhi bloogar mitron se ek nirdharit shulk tay ho phir blog me prati mah prakashit hone wali kavitaon par copy right ko subidha ho...aap sabhi sammanneeya lekha lekhia gan is mukam par hain jahan ise aasani se kriyanvit kiya jaa sakta hai..sadar badhayee aaur sadar pranam ke sath
शुभकामनाएं वंदना जी आपको भी और आपके बेटे जैसे ब्लोगर मित्र सत्यम शिवम् को भी...
बहुत अच्छा प्रयास है शिवम् का ।
आपने भी बहुत मेहनत से समीक्षा लिखी है ।
आप दोनों को बधाई ।
वंदना जी पुस्तक मिलते ही मैंने भी एक सांस में पूरी पढ़ डाली..बहुत अच्छा लगा । लेकिन आप की नजर से एक बार फिर पढी़ कुछ ज्यादा ही रोचक लगा..बहुत बहुत धन्यवाद...
आप दोनों सहित सभी कवि /कवियत्रियों को बहुत बधाई !
आप कहतीं हैं कि आपको समीक्षा करना नही आता.पर मैं तो दावे से कह सकता हूँ कि आपकी
समीक्षा का सानी नही.आपकी कवितायेँ,समीक्षा
और जो जानकारियाँ आपने दी हैं वे अनुपम,अभूतपूर्व हैं.बहुत बहुत बधाई सभी को.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से आभार आपका,वंदना जी.
कुशल कवियों की बेहतरीन रचनाएँ हैं संग्रह में. बहुत बहुत बधाई आप सभी को.
"टूटते सितारों की उड़ान" काव्य संग्रह में सम्मिलित सभी कवियों के बारे में परिचय और उनकी कविताओं से अवगत करते हुए बढ़िया समीक्षा पढना बहुत अच्छा लगा.. शिवम् जी और आपका हिंदी साहित्य को समर्द्ध करने का यह प्रयास निश्चित ही सराहनीय कदम है ...हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
Very very Nice post our team like it thanks for sharing
पुस्तक के दर्शन करवाती पोस्ट
सभी कवियों को हार्दिक बधाई
bahut khub....bahut mubarak ho
badhayee.....
कविता संग्रह के लिए सभी को बधाई !!
कविता संग्रह के लिए आप सभी को बधाई।
बहुत-बहुत बधाई !
सभी को हार्दिक बधाई...... शुभकामनायें
'टूटते सितारों की उड़ान' की इतनी सार्थक समीक्षा के लिये बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद वन्दना जी ! वाकई यह संकलन अनमोल है ! आपने इतनी सधी हुई शैली में सभी रचनाओं की व्याख्या की है कि मन आनंदित हो गया ! साभार !
Bahut badhiya sameekhsaa..Bahut bahut aabhar..
कल 21/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मेरी नज़र से चलिये इस सफ़र पर ...
AAPKAA YAH NAYAA ROOP ( SMEEKSHAK )
DEKH KAR BAHUT ACHCHHAA LAG RAHAA
HAI .AAP BHAVISHYA UJJWAL HAI SURAJ
KEE ROSHNI SE CHAMAKTE SUBAH KE
TARAH . SHUBH KAMNAAYEN
thanks a lot to all of u.....ur blesses are very spl for me...thnks vandana ji...its a awesome Review of book "Tutte Sitaaron ki Udaan"....
बहुत बहुत बधाई .
अच्छी समीक्षा और सुंदर कवि संकलन से परिचय कराया आपने। बधाई , धन्यवाद....
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
बहुत सुंदर समीक्षा...आभार
बहुत बहुत बधाई!
सादर
वाह ..बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
कविता संग्रह के लिए आप सभी को बधाई।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.....वंदना जी
बड़े कलेवर की बड़ी सुगढ़ समीक्षा प्रस्तुत की है आपने पुस्तक का विहंगावलोकन करवा दिया .बधाई आपके लेखन और समीक्षा कर्म को .
बधाई !
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