बारिश मे भीगने का उसका शौक
ज्यों अंजुलि की पांखुरी मे
भर दिये हों सात आस्माँ किसी ने
ये भीगते मौसम की शरारतें और हर आस्माँ पर
अपना नाम लिखने की चाहत
ट्प टप करती हर बूंद के साथ बहती हर हसरत
इक मासूम सी तितली बन उड़ने की ख्वाहिश
इन्द्रधनुष के हर रंग में डूबने की निश्छल चाहत
चलो आज कुछ बारिशों को गुनगुना लें
शायद कोई बूँद भिगो जाये मन का आँगन
बरसों बीते यहाँ आसमाँ को बरसे हुए
आह ! एक दिवास्वपन ! एक भ्रम तो नहीं
नहीं ,नहीं ..........सत्य है , मगर
बचपन और अल्हड़ता के बीच के लम्हे सिरे कब छोड़ते हैं
चाहे डोरियाँ लाख रेशम की बनवा लो छूटे हुए सिरे फिर कहाँ मिलते हैं
या खुदा !!!! सिर्फ एक सवाल का जवाब दे दे
चाहत कोई बड़ी तो न थी फिर
ये जलते हुए आस्माँ का टुकड़ा उसके शहर में ही क्यों गिरा ??????
10 टिप्पणियां:
मुकम्मल जहाँ कहाँ मिलता है।
बहुत सुंदर कविता...सिर्फ एक सवाल का जवाब दे दे चाहत कोई बड़ी तो न थी फिर ये जलते हुए आस्माँ का टुकड़ा उसके शहर में ही क्यों गिरा ??????
बहुत माकूल प्रश्न...अक्सर इंसान चाहता कुछ है होता कुछ है...लेकिन जहाँ भी गिरता वह आसमान का टुकड़ा किसी न किसी का तो शहर होता न वह, तो खुदा का धन्यवाद करें कई चलो ठीक है हमारे ही शहर पर गिरा कोई और तो बच गया...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर पोस्ट और @अनीता जी की बात से सहमत हूँ ।
जिंदगी जलजले का ही नाम है
ये ख्वाहिशें ....सुंदर प्रस्तुति
आदमी जब तक दूसरी दुनिया में रहेगा,ख़ुदा से उसकी शिकायत भी बनी रहेगी। केवल ख़ुदा की दुनिया शिकायतों से परे है!
बहुत भावप्रणन प्रस्तुति!
आखिर टिपण्णी करने का मौका आपने दे ही दिया.
आपके भावों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ.
आपके प्रश्न का क्या उत्तर हो सकता है,
कुछ आप ही सुझाएँ ,वन्दना जी.
bahut sundar rachna ...shubhkamnayen
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