तुम आ गये मोहन
दीन हीन की आर्त पुकार सुन
तुम आ गये मोहन
कैसे कैसे खेल खेलते हो
कभी छुपते हो कभी दिखते हो
मगर सुनो तो ज़रा
हम हैं तुम्हारे तुम जानते हो
फिर ये लुकाछिपी का
खेल क्यों दिखाते हो
देखो ना
अब तुम्हें ही खुद आना पडा
इतना कष्ट उठाना पडा
जानती हूँ....... इसीलिये आये हो
आखिर अस्तित्व पर प्रश्न जो उठ गया था
या शायद भक्त तुम्हारा रूठ गया था
या आस्था पर प्रश्नचिन्ह लग गया था
और वचन के तुम पक्के हो
मिथ्या भाषण नहीं दिया था
योगक्षेम वहाम्यहम यूँ ही नहीं कहा था
सिर्फ यही सिद्ध करने को
आज कैसी दौड़ लगायी है मोहन
मोहन तुम और तुम्हारी माधुरी लीला
देखो ना सिर्फ़ एक आर्त पुकार
और दौडे चले आये
कैसे रिश्ता निभाते हो
और सब सहे जाते हो
हे बिहारी ! क्यों इतना तडपाते हो
जो खुद भी तडपने लगते हो
फिर अपना वचन निभाने को
इतने कष्ट सहते हो
ए मोहन! देखो ऐसे ना किया करो ना
सप्ताह के सात दिन और
सात दिन में ही वचन निभाने आ गए
मोहन तुम सा ना कोई है...... ना होगा
ओ मेरे प्यारे!
जग से न्यारा नाम यूँ ही नहीं धराया है
आज तुमने यही तो बताया है ......है ना मोहन !!!
13 टिप्पणियां:
कृष्णमयी रचना ....बहुत खूब
सार्थक, सुन्दर, बधाई
mohan to bas mohan hai
अच्छी रचना है।
बहुत सुंदर
और कोई सुने ने सुने , कृष्ण जरुर सुनते हैं !
सुन्दर प्रस्तुति ।
बधाईयाँ ।
लीला कृष्णा की गजब, रानी-गोपी-भक्त ।
पहुंचें प्रेम पुकार पर, बिना गँवाए वक्त ।।
मन से बुलाओ, मोहन दौड़े चले आते हैं।
सुन्दर प्रेम भरी पोस्ट।
भक्ति भाव में रसमय कर देने वाली कृति !
शुक्रवार के मंच पर, लाया प्रस्तुति खींच |
चर्चा करने के लिए, आजा आँखे मीच ||
स्वागत है-
charchamanch.blogspot.com
बहुत सुन्दर भक्तिमयी प्रस्तुति।
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आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
बेजोड़ रचना...बधाई
नीरज
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