कभी कभी
बिना बिंधे भी
बिंध जाता है कहीं कुछ
सूईं धागे की जरूरत ही नहीं होती
शब्दों की मार
तलवार के घाव से
गहरी जो होती है
मगर
कभी कभी
शब्दों की मार से भी परे
कहीं कुछ बिंध जाता है
और वो जो बिंधना होता है ना
शिकायत से परे होता है
क्या तो तलवार करेगी
और क्या शब्द
नज़र की मार के आगे
बिना वार किये भी वार करने का अपना ही लुत्फ़ होता है ........है ना जानम !!!!
बिना बिंधे भी
बिंध जाता है कहीं कुछ
सूईं धागे की जरूरत ही नहीं होती
शब्दों की मार
तलवार के घाव से
गहरी जो होती है
मगर
कभी कभी
शब्दों की मार से भी परे
कहीं कुछ बिंध जाता है
और वो जो बिंधना होता है ना
शिकायत से परे होता है
क्या तो तलवार करेगी
और क्या शब्द
नज़र की मार के आगे
बिना वार किये भी वार करने का अपना ही लुत्फ़ होता है ........है ना जानम !!!!
18 टिप्पणियां:
वाह ... बेहतरीन
:):)
किसी ने कहा भी है :):)
तीर क्यों मारते हो तलवार मार दो
हम तो यूं ही मर जाएँगे , बस ज़रा सी आँख मार दो :):)
एक लफ्ज़- वाह
नजर से बिंधने वाला भी घायल होता है और बींधने वाला भी...तो लुत्फ़ दोनों को बराबर का मिलता है...
वंदना जी आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
आपकी इस रचना के लिए ये ही कहूँगा कि कमाल किया है आपने...वाह...
ज़ख्म जो देती है ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ
नीरज
सुन्दर और गहन प्रस्तुति बधाई
करके घायल मुझे उसका भी बुरा हाल हुआ :-))
कभी कभी
बिना बिंधे भी
बिंध जाता है कहीं कुछ
सूईं धागे की जरूरत ही नहीं होती
....बहुत सच कहा है...हर पंक्ति के गहन भाव दिल को छू जाते हैं..बहुत सुन्दर
बहुत खूब ...
शब्दों की चोट बहुत गहरी होती हैं ....अद्भुत लेखनी
.शब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
एक एक शब्द बिंध जाता है..
waah...loving it...
वंदना , बहुत खूबसूरत ... प्यारी सी कविता
क्या बात है... वाह!
[सादर क्षमा निवेदन सहित... अजय देवगन गाता नजर आने लगा है पढ़ के...:))]
गहन भाव दिल को छू जाते हैं.बहुत सुन्दर.
"शब्दों की मार
तलवार के धार से
गहरी होती है "
बहुत सुन्दर रचना है |
आशा
बेहतरीन
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