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शुक्रवार, 8 मार्च 2013

ये लालीपौप तो सिर्फ़ एक दिन के लिये होती है

आओ शोर मचायें
जागो जागो
महिला दिवस आया
महिला उत्थान का
हमने भी परचम लहराया
ऐसे खूब आह्वान करें
कहीं मैराथन करें
तो कहीं पुरस्कृत
हर अखबार के पन्ने को
हर टेलीविज़न की डाक्यूमैंट्री को
हर दफ़्तर , बसों , आटो , मैट्रो में
इनके नाम का नारा बुलन्द करें
आखिर एक दिन इनके नाम किया है
तो क्यों ना एक दिन नारा बुलन्द कर
खुद को उस जमात में शामिल करें
हाँ , हम भी हैं खैरख्वाह ……उन तथाकथितों के
हम भी हैं शामिल इस दौड में
फिर चाहे दिन बीतते भूल जायें
और अगले दिन से फिर वो ही राह अपनायें
कही वो घूरी जाये
तो कहीं मारी जाये
कहीं तेज़ाब से जलायी जाये
तो कहीं बलात्कार होते रहें
और हमारे ज़मीर सोते रहें
फिर चाहे कानून के पेंचों से
नाबालिग कहला बलात्कारी बच जाये
मगर कानून में संशोधन के नाम पर
नारी की अस्मिता को ही ठगा जाये
हम देखकर भी अनदेखा करते रहें
हमारी संवेदनायें शून्य होती रहें
और फिर सब सो जायें गहन निद्रा में
चाहे देश हो या सरकार या उसके नुमाइन्दे
या फिर आम जनता ………
जिसे सिर्फ़ अपने सरोकारों से मतलब होता है
उसके लिये ही जगती है
फिर उम्र भर के लिये सोती है
क्योंकि सभी जानते हैं
महिला अधिकारों के प्रति सजगता
महिला सशक्तिकरण जैसे नारे बुलन्द करना
ये लालीपौप तो सिर्फ़ एक दिन के लिये होती है

दो बूँद बरखा की तपती रेत की प्यास बुझाने के लिये काफ़ी नहीं होती

10 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सही!
--
कहने को महिला दिवस, मना रहे सब आज।
रोज नारियों की यहाँ, लुटती जाती लाज।

सदा ने कहा…

दिवस विशेष का यह साक्षात्‍कार भी अच्‍छा है ...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सशक्त रचना

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और प्रभावी रचना...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह भावना सदा ही बनी रहे।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ये तो मन की भड़ास है-निकल गई शान्ति हुई !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


बहत सटीक व्यंग मिश्रित रचना
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Amrita Tanmay ने कहा…

कमाल ....कमाल..कमाल..

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

शत-प्रतिशत सही !
हम नहीं...सभी इस बात से सहमत होंगे....
~सादर!!!

Anita ने कहा…

बहुत सही कहा है आपने..हर दिन हमारा है..साल का एक दिन नहीं..