आओ शोर मचायें
जागो जागो
महिला दिवस आया
महिला उत्थान का
हमने भी परचम लहराया
ऐसे खूब आह्वान करें
कहीं मैराथन करें
तो कहीं पुरस्कृत
हर अखबार के पन्ने को
हर टेलीविज़न की डाक्यूमैंट्री को
हर दफ़्तर , बसों , आटो , मैट्रो में
इनके नाम का नारा बुलन्द करें
आखिर एक दिन इनके नाम किया है
तो क्यों ना एक दिन नारा बुलन्द कर
खुद को उस जमात में शामिल करें
हाँ , हम भी हैं खैरख्वाह ……उन तथाकथितों के
हम भी हैं शामिल इस दौड में
फिर चाहे दिन बीतते भूल जायें
और अगले दिन से फिर वो ही राह अपनायें
कही वो घूरी जाये
तो कहीं मारी जाये
कहीं तेज़ाब से जलायी जाये
तो कहीं बलात्कार होते रहें
और हमारे ज़मीर सोते रहें
फिर चाहे कानून के पेंचों से
नाबालिग कहला बलात्कारी बच जाये
मगर कानून में संशोधन के नाम पर
नारी की अस्मिता को ही ठगा जाये
हम देखकर भी अनदेखा करते रहें
हमारी संवेदनायें शून्य होती रहें
और फिर सब सो जायें गहन निद्रा में
चाहे देश हो या सरकार या उसके नुमाइन्दे
या फिर आम जनता ………
जिसे सिर्फ़ अपने सरोकारों से मतलब होता है
उसके लिये ही जगती है
फिर उम्र भर के लिये सोती है
क्योंकि सभी जानते हैं
महिला अधिकारों के प्रति सजगता
महिला सशक्तिकरण जैसे नारे बुलन्द करना
ये लालीपौप तो सिर्फ़ एक दिन के लिये होती है
दो बूँद बरखा की तपती रेत की प्यास बुझाने के लिये काफ़ी नहीं होती
10 टिप्पणियां:
बहुत सही!
--
कहने को महिला दिवस, मना रहे सब आज।
रोज नारियों की यहाँ, लुटती जाती लाज।
दिवस विशेष का यह साक्षात्कार भी अच्छा है ...
सशक्त रचना
बहुत सटीक और प्रभावी रचना...
यह भावना सदा ही बनी रहे।
ये तो मन की भड़ास है-निकल गई शान्ति हुई !
बहत सटीक व्यंग मिश्रित रचना
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कमाल ....कमाल..कमाल..
शत-प्रतिशत सही !
हम नहीं...सभी इस बात से सहमत होंगे....
~सादर!!!
बहुत सही कहा है आपने..हर दिन हमारा है..साल का एक दिन नहीं..
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