कभी कभी अजब स्थिति आ जाती है …………हम कुछ कहना चाहते हैं और कुछ और ही कहा जाता है ………कल ऐसा ही हुआ …………सबसे पहले उपसंहार कहा …………उसके बाद आरंभ …………मगर चैन नहीं मिला लगा जैसे कुछ छूट रहा है कहना ……………तो तभी फिर एक दस्तक हुई और जो बच रहा था उपसंहार और आरंभ के बीच का दरिया जिसे बहना था मगर अपने तटों में बंधा था आखिर तोड ही दिया उसने बाँध ………बह निकला अपनी मंज़िल की तरफ़ ……………और इस प्रकार हुआ इस रचना का जन्म :
कोई चीरे और बताये
कुछ बचा भी है या
भुरभुरा चुकी है
अस्थि मॉस मज्जा के साथ
जज़्बात , संवेदनाएं , अहसास के साथ ......रूह भी
देखो न फर्क ही नहीं पड़ रहा
चारों तरफ शोर है
संवेदनाएं हैं
जज़्बात हैं
आन्दोलन हैं
हक़ की लड़ाई है
और एक मैं हूँ
जिस पर असर ही नहीं हो रहा
फिर चाहे बच्ची से बलात्कार हुआ हो
या नारी की अस्मिता का सवाल हो
या सरबजीत मर गया हो
या न्याय के नाम पर अन्याय का आन्दोलन हो
या देश हाहाकार कर रहा हो
मेरा अन्तस्थ सूखे ठूंठ सा मौन खड़ा है
शायद जान गयी हूँ
कुछ नहीं होने वाला
कुछ नहीं बदलने वाला
क्योंकि
ये तस्वीर तो रोज का सच है
जिसे रोज अख़बार के पन्ने सा पलटते हैं हम
और फिर अगली खबर के आने तक
उसे भूल जाते हैं
कमजोर याददाश्त की कमजोर इंसान जो हूँ मैं
इसलिए मृत संवेदनाओं की लाश को ढोती मैं
जिंदा भी हूँ या नहीं ...........इसी पशोपेश में उलझी हूँ
तभी एक उद्घोषणा होती है :
फिर भी कुछ है
जो
सुलग रहा है
मगर फ़ट नहीं रहा
बस तभी से इसी सोच में हूँ
ये मौन के ज्वालामुखी किस टंकार के इंतज़ार में हैं ???
13 टिप्पणियां:
जब ये मौन के ज्वालामुखी फटेंगे तो ज़लज़ला आएगा .... सब कुछ ध्वास्त हो कर ही शायद नयी शुरुआत हो ...
ज्वालामुखी मौन के ....
भावमय करते शब्द
...
सदियों की गर्मी झेली है, आज धधकना चाहूँ मैं।
मौन के ये ज्वालामुखी शांत दीखते भले हों पर चुपचाप काम कर रहे हैं..एक विचार भी यहाँ व्यर्थ नहीं जाता...
कभी न कभी वह दिन आएगा ..न हर दिन एक जैसा न इंसान एक जैसा रहता है ...... उम्दा प्रस्तुति ..
प्रभावशाली रचना ...कब तक सहें, किससे कहें क्या करें हम ?
विस्फोट तो होना ही है !
एक न एक दिन ज्वालामुखी फटेगा
बस इन्तजार है उस सुखद सुबह का
बहुत सुंदर रचना
बधाई
होगा विस्फोट....थोड़ा मिलकर हम जतन करें....हमारे अंदर तो खदबदा ही रहा है सब..
यह आपकी ही नहीं सभी की हालत है. विडंबना तो .ह है कि हम आवाज उठा रहे हैं उनके साथ खड़े होना नहीं चाहते या तो फिर डरते हैं कि कोई लफड़ा न खड़ा हो जाए.. इससे दुर्जनों की हिम्मत और बढ़ जाती है...
अच्छी समायोजित रचना.
गूढ़ भावों की बेहतरीन बिम्बों के माध्यम से प्रस्तुत किया है, बधाई.............
कही ये मौन ....एक बड़ा ज़लज़ला ना ला दे :))
बढिया रचना
बहुत सुंदर
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