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मंगलवार, 28 मई 2013

कभी देखा है खामोश आसमाँ

कभी देखा है खामोश आसमाँ
दिनकर की उदास बिखरती प्रभाएँ
पंछियों का खामोश कलरव
सुदूर में भटकता कोई अस्तित्व
खामोश बंजर आसमाँ की
चिलमनों में हरकत लाने की कोशिश में
दिन में चाँद उगाने की चाहत को
अंजाम देने की इकलौती इच्छा को
पूरा करने की हसरत में
कभी कभी आसमाँ को अंक में
भरने को आतुर उसके नयन
खामोश शब् का श्रृंगार करते हैं
और आसमाँ की दहलीज पर रुकी
साँझ पल में बिखर जाती है
पर आसमाँ की ख़ामोशी ना तोड़ पाती है
कहीं देखा है टूटा - बिखरा हसरतों का जनाजा ढोता आसमाँ ?

7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आसमां स्तब्ध हो जाता है..जब धरती पर कोई चिल्लाता है।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

गंभीर रचना ..वर्तमान परिदृश्य में आपकी रचना आँखों के सामने है ..सादर बधाई के साथ

shashi purwar ने कहा…

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!
सादर...!

Jyoti khare ने कहा…

आसमान भटकता तो कभी नहीं दिखा
पर सबके अपने-अपने आसमान होते हैं
बहुत गहन अनुभूति की रचना
बहुत सुंदर
सादर

तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.in

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिखर कर भी आसमान अनंत रहता है ....

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

hamesha aisee isthiti se do char hona padta hai ...vandna jee ....gahan anubhooti liye rachna ...

Pallavi saxena ने कहा…

सुंदर शब्द संयोजन से सजी उम्दा पोस्ट...