ज़िन्दगी सिर्फ सीधी सरल पगडण्डी नहीं होती
वृक्ष की कौन सी ऐसी शाख है जो टेढ़ी नहीं होती
हर बचपन के हाथ में सिर्फ खिलौने नहीं होते
कौन कहता है हँसते हुए चेहरे ग़मज़दा नहीं होते
सिर्फ बड़े होने पर ही कोई बड़ा नहीं होता
हर शख्स यहाँ हँसता हुआ पैदा नहीं होता
हर खुरदुरे चेहरे में छुपी सिर्फ इक तलाश नहीं होती
वक्त की तपिश में कौन सी शय है जो खाक नहीं होती
हर उड़ती सोन चिरैया में सिर्फ परवाज़ नहीं होती
कौन सा ऐसा चूल्हा है जिसमे आग नहीं होती
6 टिप्पणियां:
सुन्दर ,बहुत खूब
चेहरे की हंसीं नही बताएगी ,दिल के ज़ख्मों को
आग दिल में लगी है.नकाब से न सकोगे ज़ख्मो को
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (12-12-13) को होशपूर्वक होने का प्रयास (चर्चा मंच : अंक-1459) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर..जिन्दगी टेढ़ी मेढ़ी चलती है...कभी हंसती कभी छलती है
बढिया प्रस्तुति-
सिर्फ बड़े होने पर ही कोई बड़ा नहीं होता
हर शख्स यहाँ हँसता हुआ पैदा नहीं होता
यहाँ तो हर शख्स रोते हुये ही पैदा होता है ..... तुलसीदास जी के बारे में पढ़ा था कि वो हँसते हुये पैदा हुये थे :)
बाकी नज़्म खूबसूरत लगी ।
कितना कुछ छिपा होता है, चेहरे के व्यक्त भावों में।
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