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बुधवार, 26 मार्च 2014

कवि ,सिर्फ कुछ के कह देने भर से नहीं हो जाते हो ख़ारिज

तुम्हें अपमानित प्रताड़ित करना ही 
जिनका ध्येय है कवि  
वो ही आधार बनते हैं 
तुम्हारे नव सृजन के 
तुम्हारे अंतस में बोते हैं जो 
तुम्हारी अवहेलना के बीज 
देते हैं समय से खाद पानी 
अपने व्यंग्य बाणों आलोचनाओं द्वारा 
वो पथ बाधक नहीं 
कवि,  करो उन्हें नमन 
क्योंकि 
आधारशिला हैं वो 
तुममे नव सृजन के 
और संजीदगी से 
रचनाकर्म करने को 
प्रेरित करने वाले 
तुम्हारे अपने आलोचक ही होते हैं 
जो जानते हैं 
तुम्हारी क्षमताओं को 
पहचानते हैं तुममे छुपी प्रतिभाओं को 
और सिर्फ एक शब्द बाण से 
कर धराशायी तुम्हारी 
प्रसिद्धि की मीनारों को 
जगा देते हैं तुममें 
सुप्त पड़ी उस उत्कंठा को 
हाँ , पहुंचना है मुझे भी शिखर तक 
हाँ , करना है मुझे भी अपने 
लेखन द्वारा प्रतिकार 
हाँ , मनवाना है लोहा 
अपने कवित्व का 
अपने कौशल का 
स्वयं में दबी छुपी 
उस सोयी खोयी 
दबी ढकी 
कविता का जो 
बना दे तुम्हें और तुम्हारे लेखन को 
मील का पत्थर 
वो नही जानते 
चिंगारियाँ ही शोले बना करती हैं 
इसलिये करके तुम्हें आहत 
लिखवा देते हैं 
तुम्हारे ही माध्यम से 
कालजयी कविता 
इसलिए साबित करने को खुद को 
कवि  चलने दो साथ साथ अपने 
उन अदृश्य ताकतों को 
जो स्वयमेव सहायक सिद्ध हो रही हैं 
तुम्हारे नव सृजन में बन रही हैं 
वाहक भावों के आगमन की 

बेशक कभी छदम वेश धारण कर 
तो कभी प्रत्यक्षत: तोडेंगे वो तुम्हारा मनोबल 
बनायेंगे साजिशों के पुल करने को तुम्हें धराशायी 
बेशक समझते रहे वो तुम्हें कमजोर 
बेशक बिछाते रहे राह में नागफनियाँ 
कवि बस तुम्हें है चलते जाना 
लक्ष्य संधान हेतु रखना है 
सिर्फ़ मछली की आँख पर ही निशाना 
क्योंकि 
भावनाओं के वटवृक्ष से लबरेज हो तुम कवि 
और वो करना चाहते हैं तुम्हें 
भावनाओं द्वारा ही आहत 
कुचलना चाहते हैं तुम्हारी प्रतिभा 
तिरस्कार , अपमान द्वारा 
तुम्हें और तुम्हारे लेखन को दोयम बताकर 
मगर वो ये नही जानते 
जिस तरह सौ झूठ मिलकर भी 
एक सत्य को मिटा नहीं सकते 
उसी तरह 
चाहे जितने पैदा हो जाएँ 
तुम्हारे लेखन विरोधी 
भावों की बहती सरिता के 
प्रवाह को रोक नहीं सकते 
रुख मोड़ नहीं सकते 
बल्कि वो तो मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं तुम्हारा 
बिन कुछ किये ही हो रहे हो प्रसिद्ध 
क्योंकि 
कवि  सिर्फ कुछ के कह देने भर से 
तुम नहीं हो जाते हो ख़ारिज 
तुम या तुम्हारी कविता 
वो जो तुम्हारे प्रशंसक हैं 
क्या उनके कहे का कोई मोल नहीं 
क्या उनका कथन महज तुम्हारी 
प्रशंसा भर है 
नहीं , कवि 
तुम , तुम्हारा लेखन 
कभी नहीं होगा ख़ारिज 
जब तक तुम स्वयं पर 
विश्वास रख भावों के सागर में डूब 
शब्दों के मोती खोज लाते रहोगे 
जनमानस के मन की बात 
अपनी कविताओं में कहते रहोगे 
एक चिन्तन व्यक्त करते रहोगे 
कुछ समय से परे हकीकत के धरातल पर 
सत्य को उकेरते रहोगे 
भावों के मदिरालाय में डूबते रहोगे 
नहीं हो सकते ख़ारिज 
क्योंकि 
सत्य की कसौटियों पर 
सिर्फ कुंदन ही खरे उतरा करते हैं 
इसलिए 
करो नमन उन्हें 
जो तुम्हारे लिखे में 
दोष ढूँढा करते हैं 
और तुम्हें और अच्छा लिखने को 
वजहें दिया करते हैं 
कामयाबी की पहली सीढ़ी  तो 
सिर्फ वो ही हुआ करते हैं 
जो कराते हैं मुहैया तुम्हें 
आलोचना की पहली सीढ़ी 
रखो पाँव उसी आलोचना की कील पर 
हो जाओ लहुलुहान और आगे बढ़ो 
कवि  , कल तुम्हारा है 
कल के आसमान पर रखने को पाँव 
उन्हें नमन तो तुम्हें करना ही होगा 
क्योंकि 
यूँ  ही नहीं कहा गया 
निंदक नियरे राखिये 
आँगन कुटी छवाय 
बिन पानी साबुन बिना 
प्रसिद्धि रहे दिलवाय 

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हमेशा से सीधी सच्ची बात लिखने की आदी है आप आईशा आपकी कविताओं से निरंतर प्रतीत होता है ये अलग बात है कभी वो कविता सी होती है कभी नही भी होती मगर बात बखूबी कह जातीं है आप ये कौन सा द्वंद है जिसके बारे मे लिखा है आपने ॥ कवि का द्वंद तो बस निर्भीकता से अपनी बात कहना होता है बस ..... आप अच्छी कवियत्री है इस मे दो राय नहीं

vandana gupta ने कहा…

महेश कुशवंश जी इस कविता में वो ही लिखा है जो आजकल कवियों के साथ हो रहा है , उन्हें उनके लेखन को नकारा जा रहा है और उनके मनोबल को तोडा जा रहा है । आस पास जाने कितने ही कवियों के साथ ये सब हो रहा है जो पाँव रखने को धरातल खोज रहे हैं , अपने लेखन के माध्यम से एक नया आकाश बना रहे हैं तो कुछ को ये नागवार गुजरता है और वो उन्हे और उनके लेखन पर इस तरह की बात करते हैं कि अच्छे भले कवि को लगने लगे कि शायद सामने वाला सही कह रहा है उसे लिखना ही नही आता जो शुभ का सूचक नहीं इसलिये ये सब पढकर देखकर दिल दुखा तो इस रूप में आपके सामने आ गया ।

palash ने कहा…

Very strong writing that includes so many colors of life

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार

Mithilesh dubey ने कहा…

ओह ………… सच्चाई बयां कर दी आपने। आजकल यही हो रहा नये कवियों के साथ।

Kailash Sharma ने कहा…

जब तक अंतर्मन कहे और जो कहे लिखते रहना चाहिए. अगर आप का अंतर्मन अपने लेखन से ईमानदारी से संतुष्ट है तो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आलोचक क्या कहते हैं...सत्य एक न एक दिन सामने आएगा ही..बहुत सटीक और विचारोत्तेजक प्रस्तुति...

Anita ने कहा…

सचमुच आलोचना लेखन को नये आयाम देती है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काल पटल पर लिखी रहेगी, हर शब्दों की आवाजाही।

प्रेम सरोवर ने कहा…

रूचिकर पोस्ट। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।