हैलो
बिजी हो क्या ?
( कोई जवाब नहीं )
आज बहुत जरूरत थी किसी की
और आज ही वक्त का सितम देखो
खुद से भागने को जी चाहता है
( कोई जवाब नहीं )
उफ़ ! मेरी बेअक्ली तो देखो
तुम्हारे जवाब नहीं आ रहे
और मैं लिखे जा रही हूँ
( कोई जवाब नहीं )
आह ! ये दीवानगी नहीं
ये है बेबसी , बेजारी
इतने बड़े जहान में
अकेलेपन को झेलने की त्रासदी
जो शब्दों में व्यक्त हो नहीं पा रही
कोई अविभक्त सी रेखा
मानो विभक्ति के कगार पर खड़ी हो
मगर विभक्त भी ना हो पा रही हो
जुनून की हदें नहीं होतीं
शायद इसीलिए
बेसबबी के पायदान पर खड़े होकर
तुम्हें पुकारा है
मगर
अंजुली में कब वक्त सिमटा है
जो आज समेट पाती
अच्छा , चलती हूँ
कहाँ ? नहीं पता
बिना मकसद की ज़िन्दगी के भी क्या कभी कोई मायने होते हैं
डोर से टूटी पतंगों को भी क्या कभी आशियाँ मिलते हैं
अलविदा !
अलविदा ! कितना मुश्किल होता है खुद को कहना
और एक कहानी अधूरेपन के साथ ही ख़त्म हो गयी
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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