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सोमवार, 9 जून 2014

दोस्त

जन्मदिन की असीम शुभकामनायें ………खुशियों से लबरेज़ हो तेरा जहान 



हाँ दोस्त
ना जाने कितनी 
किस्मे होती हैं दोस्तों की
अजी क्या सोचने लगे
दोस्तों की किस्मे
तो इसमें क्या अलग है
जब इस दुनिया में
दो शक्ल एक जैसी नहीं होतीं
दो लोगों के विचार एक जैसे नहीं होते
तो दोस्त और उनका व्यवहार कैसे
एक जैसा हो सकता है
उनमे भी तो वो ही 
दुनियावी रंग उतरा होता है
और सबसे बड़ी बात
दोस्ती एक होती है बचपन की
जिसमे बचपन से एक 
निश्छल प्रेम जुड़ा होता है
वहाँ दोस्ती की नींव
कच्ची मिटटी की बनी होती है ना
तो इतनी मजबूत होती है
कितने आँधी तूफ़ान आयें
सब झेल जाती है 
मगर दोस्त पर ना 
तोहमत लगाती है
यूँ ही थोड़े कृष्ण सुदामा की 
दोस्ती को दुनिया याद करती है 
मगर उसके बाद की 
जो भी दोस्ती होती है
स्वार्थ की जड़ों पर ही
उसकी नींव टिकी होती है
जब तक काम निकले तब तक दोस्ती
उसके बाद ना दोस्त ना दोस्ती
कैसे हो गए हैं ना
दोस्ती के रिश्ते
तो फिर दोस्त तो होंगे ही आर्टिफिशल 
ऊपर अपनेपन का मुखौटा लगाये
सबसे ज्यादा हमदर्द बनते
मगर वो ही हैं सबसे पहले
पीठ में छुरा हैं घोंपते
एक तो आज का माहौल ऐसा
उस पर आज की टैक्नोलोजी 
क्या से क्या बना दिया
दोस्त को और दोस्ती को
दोनों को सिर्फ एक खेल का 
मैदान बना दिया
अब देखो तो
फेसबुक हो या ट्विटर या ऑरकुट 
या फिर हो कोई भी चैट पर
बस हाय किया हेलो किया 
और हो गयी दोस्ती
कुछ उसकी सुनी
कुछ अपनी कही
और बन गए दोस्त
जो सिर्फ एक छलावा होते हैं
यहाँ नकाबों में छुपे ना जाने कितने
अन्जान चेहरे होते हैं
मुश्किल से ही यहाँ 
सच्चे दोस्त मिलते हैं
एक अन्जान चेहरा
एक अन्जाना नाम
एक अनजानी पहचान
पता नहीं क्यों 
फिर भी लोग यहाँ 
कुछ पलों के लिए ही सही
खुद को भुला देते हैं
ये दोस्त और दोस्ती का
नया रूप यहाँ दिखता है
जहाँ कुछ देर के लिए ही सही
झूठ भी सही दिखता है
क्योंकि 
मिल जाते हैं कभी कभी 
कुछ ऐसे चेहरे
जो सच में दोस्ती को 
एक मुकाम देते हैं
बिना देखे जाने पहचाने भी
दोस्त की उदासी में
उसे हँसाने का हुनर रखते हैं
फिर चाहे उसके लिए उससे 
झूठा लड़ना ही क्यों ना पड़े
उसे चिड़ाना ही क्यों ना पड़े
मगर दोस्ती को कई बार
नए अर्थ दे जाते हैं
शायद वो ही 
सच्चे और अपने दोस्त कहलाते हैं
जो चाहे आभासी हों या मूर्त 
मगर दोस्त की उदासी को भी 
मुस्कराहट में बदल जाते हैं 
चुपके से ही सही
दोस्ती को अर्थ दे जाते हैं 

और वो अर्थ हो तुम ……प्रिय मित्र राकेश 
तुम सा निस्वार्थ मित्र पा मैं धन्य हुयी 

ये कविता काफ़ी साल पहले लिखी थी आज तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें समर्पित 
ये भी अजब इत्तफ़ाक ही है कि एक दिन के अन्तर पर ही हमारे जन्मदिन आते हैं :) :) 

3 टिप्‍पणियां:

Ankur Jain ने कहा…

इससे उत्तम जज़्बातों की अभिव्यक्ति और क्या होगी दोस्त के लिये...उत्तम प्रस्तुति।।।

Anita ने कहा…

दोस्त और दोस्ती को बखूबी परिभाषित करती भावपूर्ण कविता..

संजय भास्‍कर ने कहा…

सब तराशे हुए सच हैं...आभार इस प्रस्‍तुति के लिए