अक्सर जुडी रहती हैं स्त्रियाँ
अपनी जड़ों से
फिर उम्र का कोई पड़ाव हो
नहीं छोड़ पातीं
ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर
घर आँगन दहलीज
और अक्सर
शामिल होते हैं उनमे उनके दुःख दर्द और तकलीफें
स्मृतियों के आँगन में
लहलहाती रहती है फसल
फिर चाहे सुख का हर सामान मुहैया हो
फिर चाहे नैहर से ज्यादा सुख और प्यार मिला हो
फिर चाहे पा लिया हो मनचाहा मुकाम
जो शायद कभी हासिल न हो पाता वहां
फिर भी स्त्रियाँ
जुडी रहती हैं अक्सर
अपनी जड़ों से
देखती हूँ अक्सर
खुद को रख कर इस पलड़े में
तो पाती हूँ
खुद को बड़ा ही बेबस
क्योंकि
मेरी स्मृतियों का आँगन बहुत उथला है
रच बस गयी हूँ अपनी ज़िन्दगी में इस तरह
कि
नैहर बस सुखद स्मृति सा पड़ा है मन के कोनों में
आखिर कब तक पाले रखे कोई
दुखो के पहाड़
स्मृतियों की तलहटी में
जो अतीत की याद में
हो जाए वर्तमान भी बोझिल
भुला चुकी हूँ
ज़िन्दगी की दुश्वारियाँ भी इस तरह
कि अब चारों तरफ अपने
देखती हूँ सिर्फ ज़िन्दगी की खुश्गवारियाँ
क्योंकि
ज़िन्दगी सिर्फ चुटकी भर नमक सी ही तो नहीं होती न
भूल कर विगत के सब गम
जीती हूँ आज में
तो क्या कोरी हूँ मैं ?
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-06-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2017 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत सुन्दर
लगभग सभी स्त्रियों की जिन्दगी को प्रभावी रूप से प्रकट किया आपने
क्या मैं कोरी हूँ ..बहुत खूब
बहुत सुन्दर
विगत की खुशबुओं को लेकर,आज के लिये बीज रोपने ही होते है.
विगत की खुशबुएं आगे बढने के लिये आगे ले जाती है.
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