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गुरुवार, 4 जून 2015

ये कैसा संन्यास ?

करोड़ों की संपत्ति छोड़ रघुनाथ दोषी भिक्षु बने अर्थात उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया और यहीं से एक प्रश्न ने दिमाग में हल्ला मचा दिया जब देखा कि १०० करोड़ की लागत से तो पंडाल बनाया गया जहाँ भिक्षु बनने का आयोजन संपन्न हुआ . 

प्रश्न उठता है जब आपने सन्यास लेने का मन बना ही लिया तो माया से भी दूर हो गए और यदि माया से दूर हो गए तो ये दिखावा क्यों ? 

क्या संन्यास लेना दिखावा है ?

 संन्यास तो मन की वो अवस्था है जहाँ इंसान अपने मन से काम क्रोध लोभ मोह अहंकार के त्याग के साथ ही अपने रिश्ते नातों सबका त्याग कर देता है फिर इस तरह के दिखावे का आयोजन करने का क्या औचित्य ? 

आप पैसे वाले थे तो आपको चाहिए था कि आप उन १०० करोड़ रूपये से देश के गरीब लोगों या और कुछ नहीं आज किसान का क्या हाल है किसी से छुपा नहीं उन्हें देते , उनकी समस्याओं पर खर्च करते तो शायद संन्यास लेना वास्तव में सार्थक हो जाता . मगर इस तरह तो आपने सिर्फ अपने पैसे और रुतबे का ही प्रदर्शन किया साथ ही माया से भी मुक्त नहीं हुए . 

सन्यास की सार्थकता इसी में है कि आप कोई ऐसा कार्य कर जाएँ जो देश और समाज के हित में हो न कि अपनी भव्यता का प्रदर्शन मात्र हो . जो सन्यासी बनते हैं वो आडम्बरों से दूर हो जाते हैं क्योंकि संन्यास मन की अवस्था है दिखावे की नहीं शायद ये उन्हें किसी ने नहीं बताया या हमारे धर्मगुरु ऐसा बताना अपना कर्तव्य नहीं समझते जबकि संन्यास लेने की पहली शर्त माया का त्याग ही होता है साथ में यदि माया है आपके पास तो उसका सदुपयोग करके त्याग किया जाए न कि सिर्फ अपनी जय जयकार करवा एक नयी रीत कायम की जाए जो समाज को गलत दिशा प्रदान करे . 

आडम्बरों , ढोंग और प्रदर्शन से परे होती है संन्यास की स्थिति ये तो एक बच्चा भी जानता है फिर ये कैसा संन्यास जहाँ सिर्फ और सिर्फ पैसे का ही प्रदर्शन था ?

6 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब संन्यास मन की अवस्था नहीं, दिमागी व्यवस्था है :)

Anita ने कहा…

आपने बिलकुल सही कहा है..सन्यास तो भीतर से होता है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-06-2015) को "भटकते शब्द-ख्वाहिश अपने दिल की" (चर्चा अंक-1997) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पण्डाल में १०० करोड़ और त्याग दिये। पहला दान पण्डाल वाले को।

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

दिखावा जीवन के हर मोड़ पर हावी है।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सन्यासी बनने में १०० करोड़ खर्चा किया तो आश्रम बनाकर २०० कमाने का प्लान बना है ना ....
अनुभूति : अपूर्ण मकसद !:
मेरे विचार मेरी अनुभूति: चक्रव्यूह