थोडा सा रूमानी होने को जरूरी थी
एक वाकफियत दिल की दिल से
और अब जब
किस्सों सी किश्तों में सिसकती रही मोहब्बत
तुमने डाल दी अपनी हसरतों की चादर
यूँ भरमाने के दौर तो नहीं थे
फिर भी हमने खुद को भरमा लिया
सोच , शायद मिल जाए मुझे मेरे हिस्से की दौलत
मगर किस्से कहानियों के
कब किसने तर्जुमे किये हैं
और कालखंड की
किसने सिसकारी सुनी है
जानते हुए भी
रूमानियत को जिंदा रखने को भरा है मैंने मोहब्बत का खामोश घूँट
जिस्म , न नीला पड़ा न पीला और न ही सफ़ेद
देख , रूमानियत के अहसास का असर
गुलाबों की खेती से सुर्खरू है राख भी मेरी
ये प्रेम की अद्यतन ख़ामोशी है
आओ जश्न मनाएं
2 टिप्पणियां:
ये प्रेम की अद्यतन ख़ामोशी है.....
मुझे आपकी हर कविता अच्छी लगती है ये जो गहराई लिए होती है शायद और कहीं नहीं मिलती।
@ Rohitas ghorela जी आपको लिखा पसंद आता है ये मेरा सौभाग्य है ..........हार्दिक आभार .
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