मेरे पास उम्मीद की
कोई सड़क नहीं
कोई रास्ता नहीं
कोई मंजिल नहीं
फिर भी जिंदा हूँ
मेरे पास मोहब्बत का
कोई महबूब नहीं
कोई खुदा नहीं
कोई ताजमहल नहीं
फिर भी जिंदा हूँ
मेरे पास जीने की
कोई वजह नहीं
कोई आस नहीं
कोई विश्वास नहीं
फिर भी जिंदा हूँ
मेरे पास खोने को
कोई दिल नहीं
कोई दुनिया नहीं
कोई ख्वाब नहीं
फिर भी जिंदा हूँ
दीवानगी के शहर का इससे हसीन मंज़र भला और क्या होगा...
©वन्दना गुप्ता vandana gupta
©वन्दना गुप्ता vandana gupta
2 टिप्पणियां:
दिल को छूती हुई नज़्म....बहुत खूब
जीवित होना और अपने होने का अहसास होना इससे बढ़कर भला और क्या हो सकता है..जिनके पास आशाओं के दीप जले हैं उन्हेें भी खुद के होने की खबर कहाँ होती है
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