मेरी मुस्कराहट तो एक ऐसा दर्द है
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता
हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
2 टिप्पणियां:
bhut sundar rachana. badhai ho.
बहुत अच्छा।
एक टिप्पणी भेजें