दिल चाहता है
शबनम का इक कतरा बन
तेरे अधरों पर सज जाऊं
तू मुझको ऐसे पी जाए
जन्मों की प्यास फिर बुझ जाए
दिल चाहता है
बादलों का काजल बन
तेरे नैनों में बस जाऊँ
तू मुझको ऐसे छुपा ले
दुनिया को भी न नज़र आऊं
दिल चाहता है
सीप का मोती बन
तेरे दिल में बस जाऊँ
मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
फिर तुझको भी न नज़र आऊं
9 टिप्पणियां:
bhut acchi kavita
मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
फिर तुझको भी न नज़र आऊं
gargi
प्रेम में आकंठ डूब जाने की इच्छा बहुत अच्छी अभिव्यक्ति सुन्दर रचना
क्या बात है वन्दना जी!
कम शब्दों में बहुत कुछ कह गयी आपकी शायरी।
दिल चाहता है
सीप का मोती बन
तेरे दिल में बस जाऊँ
मैं तुझमें ऐसे समां जाऊँ
फिर तुझको भी न नज़र आऊं
बेहतरीन भाव छिपे हैं, उपरोक्त पंक्तियों में।
बढ़िया है.
दिल चाहता है
शबनम का इक कतरा बन
तेरे अधरों पर सज जाऊं
तू मुझको ऐसे पी जाए
जन्मों की प्यास फिर बुझ जाए
rachna padte padte doob gaya behtar rachna ke liye dhanybaad evam badhaai ho.
aap ki rachna kisi ke liye tohfe se kam nahin .puna badhaai.
bahut hi khubsurat abhivyakti
प्रिय वन्दना जी!
दिल तो न जाने क्या-क्या चाहता है।
परन्तु उसकी हर बात मानी तो नही जा सकती।
अपने दिल पर काबू रखें।
यही नेक सलाह है।
अब आप बहुत मंजा हुआ लिख रही हैं।
अच्छा लिखने के लिए बधायी।
स्वीकार करें।
very nice...........keep it up
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