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गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

अमिट छाप

मन के कोरे कागज़ पर तुम
एक कविता लिख दो
अपने प्यार का
एक दिया जला दो
मन को इक
दर्पण सा बना दो
जब भी झांको
अपनी ही छवि निहारो
ओ मेरे प्रियतम
मेरे मन को तुम
अपना मन बना लो
सोचूँ मैं, और
तुम उसे बता दो
मैं , मैं न रहूँ
तेरा ही प्रतिबिम्ब
बन जाऊँ
मन के कोरे कागज़ पर तुम
अपनी अमिट छाप लगा दो

10 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

mohabbat mein doobi hui rachna ....pyar ki chhap chhod gayi

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मन के कोरे कागज पर, शब्दों की अलख जगा दो।
ओ शब्दों के जादूगर! लिखने की ललक लगा दो।।

सुशील छौक्कर ने कहा…

प्यार के रंग ऐसे ही सुन्दर और प्यारे होते है। और उनके शब्द बताशे से मीठे होते है।

daanish ने कहा…

मन की कोमल भावनाओं का
बहुत ही प्यारा इज़हार ...
शब्द-शब्द में काव्य झलकता है ...
एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारें . . .
---मुफलिस---

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर ने कहा…

सोचूँ मैं, और
तुम उसे बता दो
मैं , मैं न रहूँ
तेरा ही प्रतिबिम्ब
बन जाऊँ
मन के कोरे कागज़ पर तुम
अपनी अमिट छाप लगा दो
BAHUT SUNDAR KAVITA-PATH, THNKX 2U vandanaji

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही अच्छी लगी......

vijay kumar sappatti ने कहा…

vanadan ,

bahut hi praabhavshaali rachna .. kavita me prem ki abhivyakti ko poori tarah se ukera gaya hai ..

dil se badhai sweekar karen..

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com

Vinay ने कहा…

मन की सारी बातें काग़ज़ पर लिख दीं... वाह जी


---
तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

बेनामी ने कहा…

सुन्दर रचना

Rajat Narula ने कहा…

बहुत उत्तम रचना है !