मन के कोरे कागज़ पर तुम
एक कविता लिख दो
अपने प्यार का
एक दिया जला दो
मन को इक
दर्पण सा बना दो
जब भी झांको
अपनी ही छवि निहारो
ओ मेरे प्रियतम
मेरे मन को तुम
अपना मन बना लो
सोचूँ मैं, और
तुम उसे बता दो
मैं , मैं न रहूँ
तेरा ही प्रतिबिम्ब
बन जाऊँ
मन के कोरे कागज़ पर तुम
अपनी अमिट छाप लगा दो
10 टिप्पणियां:
mohabbat mein doobi hui rachna ....pyar ki chhap chhod gayi
मन के कोरे कागज पर, शब्दों की अलख जगा दो।
ओ शब्दों के जादूगर! लिखने की ललक लगा दो।।
प्यार के रंग ऐसे ही सुन्दर और प्यारे होते है। और उनके शब्द बताशे से मीठे होते है।
मन की कोमल भावनाओं का
बहुत ही प्यारा इज़हार ...
शब्द-शब्द में काव्य झलकता है ...
एक अच्छी रचना पर बधाई स्वीकारें . . .
---मुफलिस---
सोचूँ मैं, और
तुम उसे बता दो
मैं , मैं न रहूँ
तेरा ही प्रतिबिम्ब
बन जाऊँ
मन के कोरे कागज़ पर तुम
अपनी अमिट छाप लगा दो
BAHUT SUNDAR KAVITA-PATH, THNKX 2U vandanaji
बहुत ही अच्छी लगी......
vanadan ,
bahut hi praabhavshaali rachna .. kavita me prem ki abhivyakti ko poori tarah se ukera gaya hai ..
dil se badhai sweekar karen..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
मन की सारी बातें काग़ज़ पर लिख दीं... वाह जी
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
सुन्दर रचना
बहुत उत्तम रचना है !
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