उदास है दिल
न जाने क्यूँ
किसे खोजता है
किसकी तलाश है
शायद ये भी अब
किसी गहरे
सागर में डूब
जाना चाहता है
शायद ये भी
सागर की तलहटी में
छुपे किसी अनमोल
मोती की तलाश में है
या फिर शायद
ये भी सागर के अंतस की
अनन्त गहराई में
खो जाना चाहता है
जहाँ खुद को पा सके
कुछ पल अपने लिए
सुकून के खोज सके
आख़िर दिल दिल ही है
कब तक सब कुछ झेलेगा
कभी तो खुद को भी टटोलेगा
कभी तो अपने को भी खोजेगा
इस दिल की पीड़ा को
कोई क्या समझेगा
दिल भी आख़िर दिल ही है
कभी तो जीना सीखेगा
कब तक खिलौना बन भटकेगा
अब तो खुद के लिए भी
एक किनारा ढूंढेगा
कहीं तो ठोर पायेगा
और तब शायद
उसका वजूद भी
उसमें ही सिमट जाएगा
13 टिप्पणियां:
आशा और निराशा,
दोनों साथ-साथ चलती हैं।
अंधियारे में भी चमकीली,
किरण कोई मिलती है।।
मन में हो विश्वास तभी,
तो ठौर-ठिकाना मिलता है।
वीराने उपवन में भी तो,
फूल कभी खिलता है।।
होगा यदि अस्तित्व,
किनारा मिल ही जायेगा।
डूब गया जब पोत,
सहारा किसका वो पायेगा।।
आशा और निराशा,
दोनों साथ-साथ चलती हैं।
अंधियारे में भी चमकीली,
किरण कोई मिलती है।।
मन में हो विश्वास तभी,
तो ठौर-ठिकाना मिलता है।
वीराने उपवन में भी तो,
फूल कभी खिलता है।।
होगा यदि अस्तित्व,
किनारा मिल ही जायेगा।
डूब गया जब पोत,
सहारा किसका वो पायेगा।।
तलाश सागर की गहराई तक
बहुत खूबसूरत तलाश है मोती मिलेगा ही.
और फिर ठौर का मिलना तो तय ही है.
बहुत खूब
क्या सुन्दर अभव्यक्ति है दिल क्य है क्यों है कैसा है क्या चाहता है क्योम उदास होता है क्यों खुश होता है ये शायद ये खुद भी नहीं जानता तभी तो इसे हर वक्त तलाश रहती है किसी न किसी प्रश्न की बहुत बदिया रचना बधाई
अब तो खुद के लिए भी
एक किनारा ढूंढेगा
कहीं तो ठोर पायेगा
और तब शायद
उसका वजूद भी
उसमें ही सिमट जाएगा
वंदना जी ,
बहुत खूबसूरत ख्याल.दिल से बधाई !!!
बहुत उम्दा रचना!
bahut achcha
बडे दिल से लिखे है दिल के जज्बात।
अति सुन्दर। क्या लिखा है वंदना आपने। ऐसे लिखते रहें।
बहुत अच्छी कविता है
---
श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
दिल भी आख़िर दिल ही है
कभी तो जीना सीखेगा
nicely written vandana ji....
dil ko chhu gaya...
keep rolling...
बहुत अच्छी कविता है * * * * * * (five star to your best poem)
आभार/मगलभावो के साथ
मुम्बई टाइगर
हे प्रभु तेरापन्थ खान
ye khoj jaldi se jaldi poori ho.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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