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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

ज़िन्दगी तू एक अबूझ पहेली है

ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है
जितना सुलझाओ
उतनी उलझती है
कभी पास लगती है
तो कभी दूर
इतनी दूर
कि जिसका
पार नही मिलता

ज़िन्दगी
तू एक ख्वाब है
कभी सब सच लगता है
तो कभी ख्वाब सी
टूटती बिखरती है

ज़िन्दगी
तू एक मौसम है
कभी बसंत सी महकती है
तो कभी शिशिर सी
जकड़ती है
कभी सावन सी
रिमझिम बरसती है
तो कभी ग्रीष्म सी
दहकती है

ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए

ज़िन्दगी
तू सिर्फ़ ज़िन्दगी है
न ख़ुद जीती है कभी
न रूकती है कभी
बस सिर्फ़ और सिर्फ़
चलती ही रहती है
एक अनदेखी
अनजानी
दिशा की ओर
मंजिल की तलाश में
और मंजिल
रेगिस्तान में पानी के
चश्मे की तरह
बस कुछ दूर और
कुछ दूर और
दिखाई देती है
मगर
न रेगिस्तान में
कभी पानी मिलता है
और न ही कभी
ज़िन्दगी को मंजिल

सच ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है

17 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सच्चे शब्दों में बंधी,
जमीन से जुड़ी सच्ची रचना के लिए,
बधाई!

श्यामल सुमन ने कहा…

हकीकत से आँखें मिलाती और जिन्दगी के कई रंगों से साक्षात्कार कराती आपकी यह रचना प्रशंसनीय है। वाह वन्दना जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ओम आर्य ने कहा…

jindagi ek aisi hi hoti hai .....kabhi kahi kuchh achhchha dikhati hai jindgi par usaki umar bahut hi kam hoti hai .......aisi halat me mujhe aisa hi lagata hai ki jindgi ek abhujha paheli hai.....bahut hi sundar abhiwyakti

सुशील छौक्कर ने कहा…

जिदंगी के कितने ही रुपों को सुन्दर शब्दों से कह दिया। जिदंगी एक अबूझ पहेली है और इस पहेली को सुलझाते सुलझाते पूरी जिदंगी बीत जाती है और हाथ कुछ आता नही। वैसे जिदंगी मुस्कराने का नाम भी है बस जब तक हो मुस्कराते जाओ। जिससे ऊपर वाला भी सोच में पड जाए। शुक्रिया।

Prem Farukhabadi ने कहा…

ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए

bahut sundar bhav !

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!! बधाई.

अनिल कान्त ने कहा…

जिंदगी के बारे में आपने बहुत कुछ कहा ...अच्छा लगा पढ़कर

mehek ने कहा…

bahut sunder rachana,yahi alag roop hai zindagi ke.

shama ने कहा…

"Sadiyon se anbujh rahee hai tu.."!
Agar meree ye rachna apne blog pe khoj payee to aapko arpan..!

http://shamasansmaran.blogspot.com

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M VERMA ने कहा…

ज़िन्दगी
तू एक अबूझ पहेली है

जितना सुलझाओ
उतना उलझती है

===========

पर ये भी तो सही है कि उलझन मे उलझे बिना उलझन नही सुलझती.

========

ज़िन्दगी की सच्चाईयो को उकेरती इस सुन्दर रचना के लिये बधाई.

shama ने कहा…

जिदगी..जिदगी...ज़िंदगी,
ज़िंदगी, ज़िंदगी, ज़िंदगी....!
कैसे कहूँ तुझसे ,
मेरे क़दम भी तेरे ,
ज़मीं भी तू क़दमों तले,
फिरभी क्यों करके ,
खिसक जाती है तलेसे ?

क्योंकर खुदको खुदसे,
सज़ा देती है तू ?
बेहद थक गयी हूँ,
पहेलियाँ ना बुझवा तू,
इतनी क़ाबिल नही,
इक अदना-सा ज़र्रा हूँ,
कि तेरी हर पहेली,
हरबार सुलझा सकूँ......
के सदियोंसे अनबुझ
रहती आयी है तू......

जो अक्षर लगे थे ,
कभी रुदन विगत के,
या बयाँ वर्तमान के,
क्या पता था, वो मेरे,
आभास थे अनागातके ?

मेरा इतिहास दोहराके,
क्या पा रही रही है तू?
क्या बिगाडा तेरा के,
ये सब कर रही है तू?
कुटिल-सी मुस्कान लिए,
इस्क़दर रुला रही है तू?

जानती हूँ, दरपे तेरे,
कोई ख़ता काबिले,
माफ़ी हरगिज़ नही,
पर ये ख़ता, की है तूने...
इतिहास हरबार दोहराए,
जा रही तू, और मुझे,
ख़तावार ठहरा रही है तू??

ज़िंदगी क्या कर रही है तू??
किस अदालातमे गुहार करुँ,
हर द्वार बंद कर रही तू??
कितनी अनबुझ पहेली,
युगोंसे रही है तू...!!!

Ye kuchh maah poorv likhi rachnaa,jo,meree ek malika ka hissa thee,apko arpit!

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सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

ati uttam rachna vandana ji....
bahut achi abhivyakti hai aapki....
keep writing....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ज़िन्दगी पहेली है,पर बहुत सारे हल मिल जाते हैं कभी.......

निर्मला कपिला ने कहा…

सच मे ही ज़िन्दगी एक अबूझ पहली है जितना भी सुल्झने की कोशिश करो और उलझ जाती है बहुत बडिया रचना आभार्

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

ज़िन्दगी
तू एक भंवर है
जिसके अथाह जल में
हर घुमाव पर
सिर्फ़ और सिर्फ़
डूबना ही है
अनन्त में
खोने के लिए
bahut sundar...

vijay kumar sappatti ने कहा…

sahi kaha vandana , aaj ke daur me ye ek satya hai ...

namaskar

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

adbhut.....................
bahut khub................
wat's a line..........