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बुधवार, 12 मई 2010

प्रश्नचिन्ह?

हर शख्स
एक प्रश्नचिन्ह सा 
नज़र आता है
ना जाने 
कितने सवालों
से जूझता 
हल की तलाश
में निकला 
प्रश्नों के 
व्यूह्जाल में
उलझता जाता है
और प्रश्नों के 
जवाब में
प्रश्नों से ही
टकराता है 
और फिर
प्रश्नों के 
मकडजाल में
फँसा खुद
एक दिन 
प्रश्नचिन्ह
बन जाता है

24 टिप्‍पणियां:

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

bhut khub vandna ji behtreen kavita yahi to jivan hai jab jindgi bhar uttar dhundte dhundte khud prshn ban jaye
saadar
praveen pathik

9971969084

kunwarji's ने कहा…

मतलब अब हमें प्रश्नचिन्ह बनना बाकी है!

बहुत ही गहरे भाव!

कुंवर जी,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह..वाह..!
मानव!
एक प्रश्न-चिह्न?
बहुत ही बढ़िया कलम चलाई है आपने!
बहुत-बहुत आशीष!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ... चलिए कभी हम भी प्रश्नचिंह बन ही जायेंगे ...!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waqt apne aap me ek ansuljha prashn ban baitha hai, aur kahin koi hal nahi , prashnon kee shakl me sab bhaag rahe hain .... bahut hi badhiyaa

Amitraghat ने कहा…

सही बात है मनुष्य हर पल प्रश्नों से जोझता रहता है..."

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सच में बड़ा ही ढीठ है ये ' प्रश्न " , एक सुन्दर भाव !

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

hum sabhi ek prasn chinh hi hain

विचारणीय कविता ,आपके विचारों का मैं हार्दिक आदर करता हूँ /

Unknown ने कहा…

बहुत गज़ब ये बात आज के समय में एकदम सटीक बैठती है.उच्च कथन
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Apne hi prashnon main uljhe,
duniya ke sab log..
Uttar unke milte utne..
Jitna ho sanjog..
Prashn kai bas prashn hain rahte..
Uljhe, sulajh na paate hain..
Sab prashno ke beech mai khud bhi..
Prashn sa wo ban jaate hain..

Prarshn ki sundar vyakhya..

DEEPAK..
www.deepakjyoti.blogsot.com

दिलीप ने कहा…

bahut sundar abhivyakti...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना..सोचने को मजबूर करती!!



एक अपील:

विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Bahut khoob likha hai ... is prashnjaal se nikalna hi asli insaan ki pahchaan hai ... kai prashn khadi kaerti hai yeh rachna ..

बेनामी ने कहा…

bahut hi achhi rachna....
कितने सवालों
से जूझता
हल की तलाश
में निकला
प्रश्नों के
व्यूह्जाल में
उलझता जाता है
waah...
kya baat hai.......

Dev ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुती ..........सच में हर इंसान एक प्रश्न-चिन्ह है .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सटीक और सार्थक लेखन.....

जिंदगी की जद्दोजहद में इंसान प्रश्चिन्ह सा ही बन कर रह जाता है....बढ़िया रचना..

nilesh mathur ने कहा…

वाह! बहुत ही सुन्दर रचना है!

sheetal ने कहा…

yeh sara sansar prashno ka ek dera hai,
jisne hume charo taraf se ghera hain.jab tak chalti hain saanse har sawaal ka uttar lena hain.

sheetal ने कहा…

yeh sara sansaar sawaalo ka ek dera hain.
jisne hume charo taraf se ghera hain.
jab talak rehengi saanso pe saans,
har sawaal ka uttar lena hain.

sheetal ने कहा…

yeh sansaar sawaalo ka ek dera hain
jisne hume charo taraf se ghera hain.
jab talak saanso me saans har sawaal ka uttar lena hain

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जीवन भी तो एक प्रश्नचिन्ह ही है?
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।

कडुवासच ने कहा…

.... बेहतरीन !!!

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

dunia ek paheli hai...achha hua insaan bhi prashnchinh hai ...badhiya rachna vandna ji

अरुणेश मिश्र ने कहा…

उत्तम रचना ।