सुनो
उदासी का
लहराता साया
क्या तूने नहीं देखा?
जिसे कभी तू
कँवल कहा करता था
उस रुखसार पर
डला ख़ामोशी का
नकाब
हटाया तो होता
हर तरफ टूटी -बिखरी
निराशा में डूबी
आहें और ख्वाबों
को ही पाया होता
हर पग पर सिर्फ
ज़ख्मो के ही निशाँ
टिमटिमाये होते
हर तरफ तबाही का
मंजर ही पाया होता
और हर तबाही के लिए
खुद को ही कसूरवार
ठहराया होता
शायद इसीलिए
नकाब हटा ना पाया
सत्य के आईने में
खुद से निगाह
मिला ना पाया
21 टिप्पणियां:
शायद इसीलिए
नकाब हटा ना पाया
सत्य के आईने में
खुद से निगाह
मिला ना पाया
नकाब के पीछे से सच जो धुन्धला नज़र आता है
सुन्दर
स्वर्णकार ने स्वर्ण को दियो अग्नि में डाल!
काँप उठो पानी भयो देख परीक्षा काल!!
बहुत सुन्दर रचना!
सत्य से निगाह तो कोई सच्चा ही मिला सकता है!
झूठा तो सत्य की अग्नि में भस्म हो जाता है!
बहुत अच्छी कविता.. कुछ कन्फेश कर रहा है जैसे कोई... बेहतरीन.. कँवल को कमल कर लीजिये बस..
सच बात , बढ़िया रचना !
सत्य कड़वा होता है ना....इसीलिए नकाब नहीं उठा पाया...बहुत खूबसूरती से लिखी रचना...
"शायद इसीलिए
नकाब हटा ना पाया
सत्य के आईने में
खुद से निगाह
मिला ना पाया"
जी बहुत सुन्दर,हर बार की तरह...
जी आप ये बताये,आप सभी के मन का विश्लेषण कैसे कर लेती हैं!
मै आपकी इसी प्रतिभा से अधिक आश्चर्यचकित हूँ!
आप सत्य को शब्दों में जब ढालती हो तो वो शब्दों का कैदी ही नजर आता है जबकि बताया ये जाता है कि सत्य शब्दों से सोच से परे है...
कुंवर जी,
नकाब हटाया तो खुद से नजरे ही न मिला पायेगा..सुन्दर रचना.
वाह क्या बात है , हमेशा की तरह इस बार भी दिल से निकली आवाज ।
सटीक..!!!
Very good...
bahut sundar kavita...
वाह! बेहतरीन पंक्तियाँ !
लाजवाब रचना .....
नमस्कार...
शायद इसीलिए नकाब न हटा पाया....
सत्य से निगाह न मिला पाया...
सच कहती हैं आप सत्य से निगाह मिलाना मुश्किल होता है...और वो जो सारे जख्मों, दर्दों की वजह रहा हो वो भला कैसे निगाह मिला पायेगा...
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जिसने दर्द दिए होंगे वो, कैसे सामने आएगा...
कैसे और किस मुहं से तुझसे, अपनी नज़र मिलाएगा...
दीपक...
krupya mere blog par bhi aakar mera maan badha den...
Deepak
www.deepakjyoti.blogspot.com
Khud se nigahen milaana aasaan nahi .. bahut bada jigra chaahiye ... lajawaab likhti hain aap ...
bhut khub vandna ji behtreen rachna
saadar
praveen pathik
9971969084
Sanjiv Kavi ने कहा
सिर्फ विज्ञापन!
इसे हटा दीजिए!
bahut khub
waaah
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
deri se aane ke liye maafi chaahunga..
bahut hee umdaa rachna hai ye aapki....
cheers!
surender!
प्रशंसनीय ।
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