कब आता है
बस आपके दर्द
आपकी नज़र
करती हूँ
दर्द की चादर
ओढकर
जब तुम सोते हो
मै चुपके से
आ जाती हूँ
तुम्हारे दर्द के
कुछ क्षणों
को तुमसे
चुरा ले जाती हूँ
फिर उन अहसासों
को जीती हूँ
तुम्हारे दर्द
को जीती हूँ
तुम्हारे दर्द
को पीती हूँ
और फिर इक
और फिर इक
नज़्म लिखती हूँ
मगर फिर भी
अधूरा रहता है
शायद तुम्हारे
शायद तुम्हारे
दर्द को
पूरी तरह ना
पूरी तरह ना
पकड पाती हूँ
उस वेदना
उस वेदना
की अथाह
गहराई मे ना
गहराई मे ना
उतर पाती हूँ
तभी हर बार
तभी हर बार
पूरी तरह
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार
मैं लिखती हूँ
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को
तुम्हारी नज़र
ही करती हूँ
23 टिप्पणियां:
उस वेदना की अथाह
गहराई मे ना उतर पाती हूँ
तभी हर बार पूरी तरह
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार मैं लिखती हूँ
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को तुम्हारी नज़र ही करती हूँ
...अंतर्मन से उपजी वेदना/आह ही तो शब्दों में ढल कर कविता का रूप धारण करती है... ...बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
तभी हर बार पूरी तरह
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार मैं लिखती हूँ
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को तुम्हारी नज़र ही करती हूँ
वेदना को शब्द दे दिए जैसे
उस वेदना की अथाह
गहराई मे ना उतर पाती हूँ
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
दर्द को आपने बड़ी शिद्दत से महसूस किया हैँ फिर उसको बहुत ही खूबसूरती से एक-एक शब्द चुनकर रचना मेँ ढाला हैँ। वाह क्या शिल्पकार हैँ आप वन्दना जी। बहतरीन एक लाजबाव कविता हैँ। शुभकामनायेँ! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ। ............... गजल को पढ़ने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
शायद तुम्हारे दर्द को
पूरी तरह ना पकड पाती हूँ
उस वेदना की अथाह
गहराई मे ना उतर पाती हूँ
तभी हर बार पूरी तरह
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार मैं लिखती हूँ
.... vandna ji aapki kavitayen eak alag dharatal par le jaati hain aur sochne, rone, chintan ke liye chhod ati hain... sach kaha hai aapne.. jis din dard ko mehsoos karna chhod dega rachnakaar, srijan band ho jaayega.. bahut khoob...
लिखना मुझे
कब आता है
बस आपके दर्द
आपकी नज़र
करती हूँ
दर्द की चादर
ओढकर
--
माँगते-माँगते सब फकीर हो जाते हैं!
--
लिखना तो मुझे भी नही आता है!
बहुत सुंदर रचना !!
तुम्हारे अधूरे
बिखरे दर्द भरे पलो को
तुम्हारी नज़र ही करती हूँ
वाह ! क्या कहने ....बहुत उम्दा
मुख जब बोल नहीं पाता है, हृदय लिख देता है।
बहुत खूब
तेरा तुझको सौंप दे क्या लगत है मोर.............|
ब्रह्माण्ड
बार बार लिखते रहने की एक प्यारी सी व्याख्या
khoobsurat rachna Vandana ji!
vedna ke athaah saagar me doobker dard ko sahla diya
कहते हैं कि
करत करत अभ्यास के गुणमति होती सुजान
रसरी आवत जात से सिल पर परत निशान
उम्मीद पर दुनिया कामय है। मुझे यकीन है आप एक दिन जरुर लिखेंगी।
bahut hee sundar tareeke se aap ne likh diya likhnaa mujhey kab aata hai... aur itna sundar likh dala..umdaa..Vandna ji..
Likhna mujhe kab aata hai... bahut achchhee rachna lagee. shlaaghneeya.
मै चुपके से
आ जाती हूँ
तुम्हारे दर्द के
कुछ क्षणों
को तुमसे
चुरा ले जाती हूँ
वाह....बेहद कमाल की रचना...भावपूर्ण...
नीरज
कृपया भ्रमित न हों । मैंने अपनी पहली टिप्पणी में जड़मति के स्थान पर गुणमति जानबूझकर लिखा है।
शायद इस लिए बार बार मैं लिखती हूँ
तुम्हारे अधूरे बिखरे दर्द भरे पलों को
तुम्हारी नज़र ही करती हूँ ....
काव्य का सिलसिला
सीधे जिंदगी की ठोस गलियारों में
उतरता-सा हुआ महसूस हो रहा है
वेदना को मासूम शब्द दे कर
हर दिल तक पहुंचाने के लिए
आभार .
मै चुपके से
आ जाती हूँ
तुम्हारे दर्द के
कुछ क्षणों
को तुमसे
चुरा ले जाती हूँ
अति सुन्दर विचार
बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
subdar ji,ati sundar....
ab bhi kehte hai ki likhna mikje kab aata ha.....?
ye or bhi khatarnaak baat!
kunwar ji,
गहरे दर्द मुखर हुए हैं ।
उत्तम अत्माभिव्यक्ति!
आंच पर संबंध विस्तर हो गए हैं, “मनोज” पर, अरुण राय की कविता “गीली चीनी” की समीक्षा,...!
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