सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं
भीड़ के दामन में छुपे साए हैं
मोहब्बत के दर्द यूँ ही नहीं उभर आये हैं
सब दामन बचा के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं
अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती
इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती
कुछ खनक तो होती
गर चोट लगी होती
कुछ गम तेरी यादों के
कुछ गम मेरी आहों के
कुछ सितम तेरी निगाहों के
बस गुजर रही है ज़िन्दगी
ठीक- ठाक सी
कातिल निगाहों से
गर मर गए होते
तो यूँ दर -दर
ना भटक रहे होते
उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही
20 टिप्पणियां:
परछाइयों में छुपे जितने साये हैं
सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं
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बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
"अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती
इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती "
प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ साथ गंभीर बात कह रही हैं आप.. आधुनिक जीवन में हो एकाकी पन आ रहा है, परस्पर समंधो में जो अकेलापन आ रहा है.. उसकी प्रति आगाह करती अच्छी कविता !
"उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही"
Vandana jee behad khubsoorati se ukera hai aapne apne man ka dard.Sath hi diya hai aik sandesh unke liye jo samvedanheen hai.sunder hai iske bhaw.
यह मुहब्बत के टुकड़े भी बहुत कुछ कह गए ..
ज़िंदगी चलती रहे ठीक ठाक सी ..:)
भटकन ही लिखी थी किस्मत में तो क्या करे कोई ? :)
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही
आवाज़ कहाँ दी ? गले ही पड़ गया ..हा हा
बहुत खूब लिखे हैं सारे शेर ... बब्बर शेर लग रहे हैं..
उफ मेरी आवाज़,
दीवारों से टकरायी और लौट आयी।
जीने का अन्दाज़ तो हमने
उनके सपाट इरादों से सीखा है।
उन रिश्तों के लिए अश्क न बहा
जिन्हे लिबास मिले ही नहीं
बहुत खूब लिखा है आपने। बहुत सुंदर।
http://sudhirraghav.blogspot.com
Waah ! bahut bhadiya aaj aapaki post ka mizaaz hi kuch aur hai :)
samay nikal kar yahan bhi dekhe kisi ko aapki pratiksha hai
http://anushkajoshi.blogspot.com/
एकाकी मन की आवाज है ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।
एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें
उसे आवाज़ ना दे ...जो तेरा है ही नहीं ...
वहां माथा ना रगड़ जहाँ देवता ही नहीं ...
क्या बात !
यूँ तो सभी शेर अच्छे हैं ...!
jin rishton ko libaas n mole unke liye ashk n bahaa....... bahut hi gahree vedna
सब दामन बचा के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं ..
गैर ज़रूरती चीज़ बन कर रह गयी है मुहब्बत आज ... बहुत लाजवाब शेर है ...
क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
..आभार ...
एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
सुंदर अभिव्यक्ति .
लगा कि जैसे मीनाकुमारी जी की आवाज़ में कोई दर्द भरी नज़्म सुन रहे हैं.. पर जब ख़त्म हुई तो लगा कि भ्रम था ये तो बस खुद की बेसुरी आवाज़ में ही एक बेहतरीन रचना पढ़ रहा था..
हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
पढिये हिंदी को श्रद्धांजली मेरे ब्लॉग पर
www.jomeramankahe.blogspot.com
बहुत अच्छा नजरिया..हिंदी दिवस की शुभकामनायें..
उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही
पसंद आई ये पक्तियाँ।
आपने कहा है तो गौर फरमाएंगे।
इतना दर्द क्यों?
पर दर्द को बयां करने का तरीका बहुत ही सुन्दर..
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