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रविवार, 12 सितंबर 2010

टुकडे मोहब्बत के

परछाइयों में छुपे जितने साये हैं
सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं  




भीड़ के दामन में छुपे साए हैं
मोहब्बत के दर्द यूँ ही नहीं उभर आये हैं 




सब दामन बचा  के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं 




अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती


इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती 




कुछ खनक तो होती
गर चोट लगी होती



कुछ गम तेरी यादों के
कुछ गम मेरी आहों के
कुछ सितम तेरी निगाहों के
बस गुजर रही है ज़िन्दगी
ठीक- ठाक सी




कातिल निगाहों से
गर मर गए होते
तो यूँ दर -दर
ना भटक रहे होते




उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही

20 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

परछाइयों में छुपे जितने साये हैं
सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं
--
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

"अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती
इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती "
प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ साथ गंभीर बात कह रही हैं आप.. आधुनिक जीवन में हो एकाकी पन आ रहा है, परस्पर समंधो में जो अकेलापन आ रहा है.. उसकी प्रति आगाह करती अच्छी कविता !

Rajiv ने कहा…

"उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही"
Vandana jee behad khubsoorati se ukera hai aapne apne man ka dard.Sath hi diya hai aik sandesh unke liye jo samvedanheen hai.sunder hai iske bhaw.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यह मुहब्बत के टुकड़े भी बहुत कुछ कह गए ..

ज़िंदगी चलती रहे ठीक ठाक सी ..:)

भटकन ही लिखी थी किस्मत में तो क्या करे कोई ? :)

उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही

आवाज़ कहाँ दी ? गले ही पड़ गया ..हा हा


बहुत खूब लिखे हैं सारे शेर ... बब्बर शेर लग रहे हैं..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उफ मेरी आवाज़,
दीवारों से टकरायी और लौट आयी।
जीने का अन्दाज़ तो हमने
उनके सपाट इरादों से सीखा है।

सुधीर राघव ने कहा…

उन रिश्तों के लिए अश्क न बहा
जिन्हे लिबास मिले ही नहीं
बहुत खूब लिखा है आपने। बहुत सुंदर।
http://sudhirraghav.blogspot.com

रानीविशाल ने कहा…

Waah ! bahut bhadiya aaj aapaki post ka mizaaz hi kuch aur hai :)
samay nikal kar yahan bhi dekhe kisi ko aapki pratiksha hai
http://anushkajoshi.blogspot.com/

अजय कुमार ने कहा…

एकाकी मन की आवाज है ।

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।

एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें

वाणी गीत ने कहा…

उसे आवाज़ ना दे ...जो तेरा है ही नहीं ...
वहां माथा ना रगड़ जहाँ देवता ही नहीं ...
क्या बात !
यूँ तो सभी शेर अच्छे हैं ...!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

jin rishton ko libaas n mole unke liye ashk n bahaa....... bahut hi gahree vedna

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सब दामन बचा के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं ..
गैर ज़रूरती चीज़ बन कर रह गयी है मुहब्बत आज ... बहुत लाजवाब शेर है ...

ओशो रजनीश ने कहा…

क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
..आभार ...

एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html

ASHOK BAJAJ ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति .

दीपक 'मशाल' ने कहा…

लगा कि जैसे मीनाकुमारी जी की आवाज़ में कोई दर्द भरी नज़्म सुन रहे हैं.. पर जब ख़त्म हुई तो लगा कि भ्रम था ये तो बस खुद की बेसुरी आवाज़ में ही एक बेहतरीन रचना पढ़ रहा था..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं
पढिये हिंदी को श्रद्धांजली मेरे ब्लॉग पर
www.jomeramankahe.blogspot.com

SAKET SHARMA ने कहा…

बहुत अच्छा नजरिया..हिंदी दिवस की शुभकामनायें..

सुशील छौक्कर ने कहा…

उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही


पसंद आई ये पक्तियाँ।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

आपने कहा है तो गौर फरमाएंगे।

Pratik Maheshwari ने कहा…

इतना दर्द क्यों?
पर दर्द को बयां करने का तरीका बहुत ही सुन्दर..