किसी के
ख्वाबों में
पले होते
किसी के
दिल की
धडकनों की
आवाज़ होते
किसी के
सुरों की
सरगम होते
किसी के
छंदों का
अलंकार होते
किसी के
दिल के
उदगार होते
किसी के लिए
ऊषा की
पहली किरण होते
किसी के
अरमानों में
सांझ की
दुल्हन से
सजे होते
किसी के
गीतों में
प्यार बन
ढले होते
किसी कवि की
कल्पना होते
मगर यूं ना
ठुकराए जाते
गर होती
कोई कशिश
हम में
24 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर....गर होती कोई कशिश हममें तो यूं न ठुकराए गए होते
kashish hai tabhi to her koi nahin apna sakta.... kashish hai tabhi to khyaalon ka purzor saath hai
हीरे की परख जौहरी कर्ता है ...अपनी कशिश का तुमको क्या पता ?
:):)
बहुत सुन्दर रचना लिखी है ..
उपयोगी पोस्ट!
जी हाँ,
कशिश या आकर्षण तो बहुत जरूरी है इस चमक-दमक की दुनिया में!
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आज दो दिन बाद नेट पर आ पाया हूँ!
--
शाम तक सभी के ब्लॉग पर
हाजिरी लगाने का इरादा है!
कशिश है तभी तो खिंचे चले आते हैं।
हमेशा की तरह...अप्रतिम रचना...बधाई
नीरज
बात सिर्फ कशिश या आकर्षण की नहीं है.आकर्षण सिर्फ रूप का नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व का होता है.
मुझे लगता है वंदना जी यहाँ आप सिर्फ यही कहना चाहती हैं कि ''तुम ने मेरा सिर्फ बाहरी रूप रंग को देखा मेरे असली आकर्षण यानि व्यक्तित्व के आकर्षण को तुमने महसूस ही नहीं किया;अगर करते तो शायद मेरे अंतर्मन की भावनाओं को समझते''.
एक बेहतरीन प्रस्तुती के लिए आभार.
"किसी के छंदों का अलंकार होते"
यह बिम्ब बहुत अच्छा लगा। पूरी कविता भी।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत सुन्दर रचना ....एक कसक नज़र आती है
समय निकल कर ये दोनों ब्लॉग भी देखिएगा ...
कह ना सकेंगा
अनुष्का
bahut khub...
mujhe to bahut achhi lagi rachna....
मन की ध्वनि शब्दों के माध्यम से।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आप की रचना 17 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
pls. apna locking system hata le.
Bahut sahi likha hai aapne
चंद शब्दों में व्यक्त की गई..... सुन्दर अभिव्यक्ति !!
बहुत सुन्दर कविता| भावों का सीधा सम्प्रेषण..पर ये "होते" वाली बात गलत है..आप "हैं"|
बहुत बहुत शुभकामनाएं|
ब्रह्माण्ड
बहुत सुंदर रचना वन्दना जी, कशिश भी जरूरी है !
बहुत ही सुंदर रचना वंदना जी बधाई !
हल्के से अवसाद से भरे मानव की क्षणिक भावनाओं को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने।
बहुत प्यारी और सुन्दर रचना.
अच्छी पंक्तिया ........
इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??
सच के करीब है रचना।
................
खूबसरत वादियों का जीव है ये....?
बेहतरीन प्रस्तुती के लिए आभार.
सुन्दर !
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