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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

बिखरे टुकडे

कौन कमबख्त बडा होना चाहता है
हर दिल मे यहाँ मासूम बच्चा पलता है



इज़हार कब शब्दो का मोहताज़ हुआ है

ये जज़्बा तो नज़रों से बयाँ हुआ है 


अब और कुछ कहने की जुबाँ ने इजाज़त नही दी
कुछ लफ़्ज़ पढे, लगा तुम्हें पढा और खामोश हो गयी




अदृश्य रेखाएं
कब दृश्य होती हैं
ये तो सिर्फ
चिंतन में रूप
संजोती हैं 

 



अलविदा कह कर 
चला गया कोई
और विदा भी ना

किया जनाजे को
आखिरी बार कब्र तक!
ये कैसी सज़ा दे गया कोई



यूँ दर्द को शब्दों में पिरो दिया
मगर मोहब्बत को ना रुसवा किया
ये कौन सा तूने मोहब्बत का घूँट पिया
जहाँ फरिश्तों ने भी तेरे सदके में सजदा किया

27 टिप्‍पणियां:

Shekhar Suman ने कहा…

एक ही रचना में काफी अलग अलग भाव मिले....सच में ये बिखरे टुकड़ों की तरह ही है....
मेरा बचपन ..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"..हर दिल में एक मासूम बच्चा होता है.....''

कितनी सही बात कही आपने.

सादर

JAGDISH BALI ने कहा…

yea, There are some things which are not to be expressed but felt. NIcely done

JAGDISH BALI ने कहा…

yea, There are some things which are not to be expressed but felt. NIcely done

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना है।

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

bhut hi sundar hai ye vandana ji....laazwab

amar jeet ने कहा…

अच्छी सुंदर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिखरे टुकड़े अच्छे से संजोये हैं ...अच्छी प्रस्तुति

Arun sathi ने कहा…

खुब...दर्द है..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कौन कमबख्त बडा होना चाहता है
हर दिल मे यहाँ मासूम बच्चा पलता है
main to bilkul nahi...
अदृश्य रेखाएं
कब दृश्य होती हैं
ये तो सिर्फ
चिंतन में रूप
संजोती हैं
aur pannon per utarti hain

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

कुछ लफ्ज़ पढ़े, लगा तुम्हे पढ़ा और खामोश हो गई !
वंदना जी,
आप की कविता में निश्छल प्रेम और समर्पण की अनुगूँज साफ़ सुनाई देती है!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

अब और कुछ कहने की जुबाँ ने इजाज़त नही दी
कुछ लफ़्ज़ पढे, लगा तुम्हें पढा और खामोश हो गयी

बहुत सुन्दर...

मनोज कुमार ने कहा…

कुछ लफ़्ज़ पढे,
लगा तुम्हें पढा और खामोश हो गयी
ये शब्दों के यदि बिखरे टुकड़े हैं, तो सम्भाल कर रखने लायक़ हैं, जैसे ...
चिंतन में रूप
संजोती हैं

M VERMA ने कहा…

इतना दर्द कहाँ से लाती है आप

बेनामी ने कहा…

ये टुकड़े नहीं है,
शब्दों के मोती हैं,
जिन्हें आपने सूत्र में पिरोकर सुन्दर माला बना दी है!

अनुपमा पाठक ने कहा…

बिखरे टुकड़े सहेजे हुए सुन्दर अभिव्यक्ति!

Suman Sinha ने कहा…

अलविदा कह कर
चला गया कोई
और विदा भी ना
किया जनाजे को
आखिरी बार कब्र तक!
ये कैसी सज़ा दे गया कोई
....बहुत बढ़िया

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमारे मन का बच्चा हमें जिलाता रहता है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह वाह क्या बात हे जी, बहुत ही सुंदर कविता धन्यवाद

rashmi ravija ने कहा…

अब और कुछ कहने की जुबाँ ने इजाज़त नही दी
कुछ लफ़्ज़ पढे, लगा तुम्हें पढा और खामोश हो गयी

बड़ी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं....ख़ूबसूरत भी और गहरी भी

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

gahri anubhooti aur vihval bhavon ki rachna...
bahut kuchh avyakt hote bhi anubhoot ho raha hai.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अदृश्य रेखाएं
कब दृश्य होती हैं
ये तो सिर्फ
चिंतन में रूप
संजोती हैं

अनछुए भावों को सलीके के साथ शब्दों में सहेजती हुई सुंदर रचनाएं...शुभकामनाएं।

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

जहां फ़रिश्तों ने भी तेरे सदके में सजदे किये।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है वंदना जी ... शब्दों से ज्यादा तो आंखे बयां कर देती हैं दिल का हाल ... लाजवाब लिखा है ....

ManPreet Kaur ने कहा…

bahut hi badiya ..

mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra

#vpsinghrajput ने कहा…

अच्छी सुंदर रचना

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

आलविदा कह के चला गया कोई , और विदा भी ना किया जनाज़े को।
ख़ूबसूरत पंक्ति, मुबारक।