इंतज़ार के पलों को
सींते सींते
बरसों बीते
मगर इंतज़ार है
कि बार बार
उधड जाता है
सीवन पूरी ही नही होती
कभी धागा कम पड़ जाता है
तो कभी सुईं खो जाती है
और अब तो
वो नाता भी नहीं बचा
जिसे सीने के लिए
उम्र तमाम की थी
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
सींते सींते
बरसों बीते
मगर इंतज़ार है
कि बार बार
उधड जाता है
सीवन पूरी ही नही होती
कभी धागा कम पड़ जाता है
तो कभी सुईं खो जाती है
और अब तो
वो नाता भी नहीं बचा
जिसे सीने के लिए
उम्र तमाम की थी
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
39 टिप्पणियां:
excellent poem vandana
laa jawaab kar diyaa aapne
कमाल की लेखनी आपकी वन्दना जी,
कितनी गेहरी बात कही है आपने, बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है!
आज तक की सभी कवितायों से बढिया रचना। बहुत बहुत बधाई।
naa khatm hone waala intajaar---
वाह क्या बात कही है...कतरने भी कभी सी जाती हैं...लाजवाब
नीरज
वंदना जी का सन्देश --
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
यह कविता रिश्तो को समझने में मदद कर रही है... भावों का सुन्दर समन्वय है... बहुत सुन्दर
सुन्दर अभिव्यक्ति ... इंतज़ार को नया बिम्ब मिला ..
बहुत गहरी बात कह दी है आपने ..
वाह.....लगता है ये कविता कुछ सीते-सीते ही रची गयी है......कतराने भी कभी सी जाती हैं .....वाह....शानदार
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
क्या बात कही है..
और अब तो
वो नाता भी नहीं बचा
जिसे सीने के लिए
उम्र तमाम की थी
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
bahut gahari baat bahut hi anokhe dhang se kahi aapne badhaai sweekaren itani khubsoorat rachanaa ke liye.
please visit my blog.thanks
bhut sundar..maza aa gaya padh kar
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
उफ़ उफ़ उफ़ क्या बात कह दी.
बहुत गहरी ..मन की व्यथा ...!!
एक प्रश्न चिन्ह दे गयी ...
बहुत सुंदर रचना ...!!
बड़ी ही गहरी बातें।
तार तार हो रहे रिश्तों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति अच्छी लगी।
गहन सोच को रेखांकित करती बहुत सशक्त प्रस्तुति..आपकी लेखनी का ज़वाब नहीं..आभार
मन को छू गई… बहुत सुन्दर……. धन्यवाद
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
--
मगर कतरनों को ही सिया जाता है!
साबुत कपड़े को कोई नहीं सिलता है!
--
हमारी तो उम्र ही गुजर गई
कतरनों को सिलते-सिलते!
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (11.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
भावमय करते शब्दों के साथ्ा बेहतरीन प्रस्तुति ।
कतरनों को जोड़ने और सीने में ही ये उम्र तमाम हो जाती हैं।
इंतज़ार के पलों को
सींते सींते
बरसों बीते
मगर इंतज़ार है
कि बार बार
उधड जाता है
सीवन पूरी ही नही होती
........वाह क्या बात कही है
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
bahut khoob Vandna ji -hamesha ki tarah .aabhar
कितना चिंतन करती हैं आप ??
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद!
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं... kitne sare bhaw ismein bah nikle
bhut hi gahri aur succhi baat kahi...
सुपर...बेहतरीन रचना.
आखिर कतरनें भी
कभी सीं जाती हैं
लाजवाब,साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इंतजार इंतजार और इंतजार .................सुंदर अतिसुन्दर
कम शब्द अधिक बात
वन्दना की खास बात
लेकिन - सीं, सींते सींते, सुईं -? - या - सी, सीते सीते, सुई - हो सके तो बिना अन्यथा लेते हुए एक बार देख लें
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
क्यों सी दिया ,अगर अ -सिया रहे ,तभी सिने की कवायद होगी / अहसास रहेगा प्रतीक्षित का ,कभी वो भी कर बैठे ... गुस्ताखी माफ़ .
रचना के स्वरुप में बह गया ,अति सुंदर संवेदन - साक्ष्य शुक्रिया जी /
संबंधों की कतरनों को सीना....
वाह,बहुत गहरी बात...
बड़ी सुदरता से अभिव्यक्त हुई है।
वाह बही सुन्दर ..वाह क्या बात कही ...
इन्तजार में जिन्दगी ,खत्म हो जाती है ,
पर इन्तजार कभी खत्म नही होता ...
एक खूबसूरत रचना सरल शब्दों में गहराई लिये हुए
शुभकामनाएँ |
'आखिर कतरने भी
कभी सी जाती हैं '
,,,,,,,,,,,,जिंदगी की अंतरिम कशमकश को शब्द देती सुन्दर रचना
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