वो जो शख्स रहता है मुझमे
गर्मी की धूप सा जलता है मुझमे
लावा जब कोई फूटता है उसमे
सुकूँ का इक दरिया बहता है मुझमे
निकलती जब आह है उसमे
डरता तब आसमान भी है उससे
रेत भी समंदर नज़र आता है उसमे
दर्द से जब वो खिलखिलाता है मुझमे
रौशनियों से जब लड़ता है मुझमे
अंधेरों को तब जीता है मुझमे
वो जो शख्स रहता है मुझमे
धूल भरी आँधियों सा चलता है मुझमे
33 टिप्पणियां:
बेहद गहन अभिव्यक्ति वाली सुन्दर रचना वंदना जी ।
आपकी कविता का फलक निरंतर विस्तारित हो रहा है.... इसी क्रम की सुन्दर कविता है यह.. बहुत उम्दा.... अंतिम पंक्तियों में कविता का सार है...
बहुत खूब..हमेशा की तरह...कम शब्दों में गहरी बात
नीरज
बहुत खूब ...
bahut hi acchi kavita...shayad ham sabke bheetar ye salila nahti hai par isme nahane ka anand kam log hi utha paate..
lava ki nadi itni sheetalocha na tha...anandit hua.
अंधेरों से उजालों की ओर ....
शुभकामनाएँ!
आम आदमी के अंदर छुपे दावानल को अच्छा दर्शाया आपने जिस दिन फ़ूट जायेगा सब नेता लाईन मे आ जायेंगे
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार |
रौशनियों से जब लड़ता है मुझमेअंधेरों को तब जीता है मुझमे .. और आंधियों स चलना उसका ... मन के द्वंद्व को बखूबी लिखा है ..
वो जो शख्स रहता है मुझमे
धूल भरी आँधियों सा चलता है मुझमे
बेहद ख़ूबसूरत
वो जो शख्स रहता है मुझमे धूल भरी आँधियों सा चलता है मुझमे ... gahri baat , gahri udwignta
लावा बहे और सुकून का अहसास हो तो सचमुच बहुत गहरी बात है.. सुंदर रचना !
गहन भावों का समावेश ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
वो जो शख्स रहता है मुझमे
धूल भरी आँधियों सा चलता है मुझमे
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति गहन भावों की .....
वंदना जी, आपका जवाब नहीं।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
बहुत खूब..बेहतरीन!!
बेहद गहन , अंतर तक पहचान छोड़ते शब्द , निरंतर गहन होती काव्यधारा के लिए बधाई शुभकामनाये भी
बहुत ही लाजबाव रचना एंव चिँतन । आभार वन्दना दी ।
कोई तो है जो जीवन को जीवन्त बनाता है।
अंतर्द्वंद की भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
सुन्दर अति सुन्दर, बधाई वन्दना जी।
vandna ji aapka jawab nahi
bhut khubsurat abhivakti...
बहुत ही गहरी रचना, बधाई और शुभकामनाएं |
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
धूल भरी आँधियों सा चलता है मुझमे ...
बेहतरीन !
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
परखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता ,कुछ चुने चिट्ठे आपकी नज़र
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वन्दना जी हमेशा की तरह गहन अभिव्यक्ति सुन्दर रचना ....
bahut khoob...
शांत सी दिखती जिंदगी अपने अंतस में कई ज्वालामुखी दबाये चल रही है...
गहन भावों की सुन्दर रचना ...
निकलती जब आह है उसमे डरता तब आसमान भी है उससे
रेत भी समंदर नज़र आता है उसमेदर्द से जब वो खिलखिलाता है मुझमे
बहुत सुंदर एवं गहन अभिव्यक्ति....
हमेशा की तरह लाजवाब.....
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
बहुत सुंदर कविता
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