तू खुश रहा वीरानों में
जगलों में पहाड़ों में
कभी ज़िन्दगी के
तो कभी
महफ़िलों के
हाँ महफ़िलों के भी
वीराने होते हैं
जब महफ़िल बाहर होती है
और दिल वीरान होते हैं
तू क्या समझता है
तेरे दिल की वीरान पगडंडियाँ
और वहाँ खड़े शुष्क पेड़ अरमानों के
तेरे अकेलेपन के गवाह
मुझे नहीं दीखते
अरे मेरी आँख की वीरानियों से
ही तो तेरी राहें गुजरती हैं
और छोड़ जाती हैं
अंतहीन निशाँ तेरी
हसरतों के
जिन्हें मैं अपनी पलकों
की कोरों पर सजा लेती हूँ
और करती हूँ इंतज़ार
उस पल का जिस दिन
तू खुद मुझसे मांगे
अपने सपनों को
अपनी ख्वाहिशों को
सच कहती हूँ………
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से
गर तूने ख्वाहिश की होती
जगलों में पहाड़ों में
कभी ज़िन्दगी के
तो कभी
महफ़िलों के
हाँ महफ़िलों के भी
वीराने होते हैं
जब महफ़िल बाहर होती है
और दिल वीरान होते हैं
तू क्या समझता है
तेरे दिल की वीरान पगडंडियाँ
और वहाँ खड़े शुष्क पेड़ अरमानों के
तेरे अकेलेपन के गवाह
मुझे नहीं दीखते
अरे मेरी आँख की वीरानियों से
ही तो तेरी राहें गुजरती हैं
और छोड़ जाती हैं
अंतहीन निशाँ तेरी
हसरतों के
जिन्हें मैं अपनी पलकों
की कोरों पर सजा लेती हूँ
और करती हूँ इंतज़ार
उस पल का जिस दिन
तू खुद मुझसे मांगे
अपने सपनों को
अपनी ख्वाहिशों को
सच कहती हूँ………
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से
गर तूने ख्वाहिश की होती
28 टिप्पणियां:
करती हूँ इंतज़ार
उस पल का जिस दिन
तू खुद मुझसे मांगे
अपने सपनों को
अपनी ख्वाहिशों को ... poora ho intzaar
तोड़ लाती चांद आसमां से
गर तूने ख्वाहिश की होती ...
वाह .. बहुत खूब कहा है
इन पंक्तियों में ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर भाव सुन्दर अभिव्यक्ति पूर्ण रचना...
सच कहती हूँ………
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से
गर तूने ख्वाहिश की होती
कुछ देने का नाम ही जिन्दगी है , मांगने से मिलता नहीं कुछ भी , देने से भर जाता है सारा जहाँ . बेहतरीन शब्दांकन बधाई
प्रिय के लिये चाँद को तोड़ कर लाने की ख्वाहिश बहुत मासूम है और दिल की गहराई से निकली है... आमीन !
चाहत की गहराई ...अंतहीन !
शुभकामनाएँ !
जिन्हें मैं अपनी पलकों
की कोरों पर सजा लेती हूँ
और करती हूँ इंतज़ार
उस पल का जिस दिन
तू खुद मुझसे मांगे
अपने सपनों को
अपनी ख्वाहिशों को
सच कहती हूँ………
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से
गर तूने ख्वाहिश की होतीbahut hi sunder prastuti dil ko choo gai,badhaai aapko.
हाँ महफ़िलों के भी
वीराने होते हैं.
क्या बात कही है ...
मुझे नहीं दीखते
अरे मेरी आँख की वीरानियों से
ही तो तेरी राहें गुजरती हैं
और करती हूँ इंतज़ार
उस पल का जिस दिन
तू खुद मुझसे मांगे
अपने सपनों को
अपनी ख्वाहिशों को
बहुत खूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति ...
और इन्तज़ार करती उस पल का जिस दिन
तू ख़ुद मुझसे मांगे अपने ख़्वाबों को अपनी ख़्वाहिशों को। बेहतरीन ख़यालात।
बहुत सुन्दर कविता... सपनो का सुन्दर चित्रण....
bahut sundar, intjaar aur intjaar ...............
आज तक चांद तोड़ लाने के वादे पुरूषो ने ही किये थे बधाई आप इस मामले मे विश्व की प्रथम महिला बन गयी हैं :)
kya kehne vandna ji ke
हाँ महफ़िलों के भी
वीराने होते हैं
यकीनन .. खूबसूरत रचना
bhut hi sunder abhivakti...
औरों के मन में क्या है, कैसे पता चले?
कुछ रुहानी एहसास कहने के नही होते बस समझ लिये जाते हैं बिना कहे। अच्छी रचना। शुभकामनायें\
Sach mein Vandana ji..khwahishein khwab hain jinko poora karne ke liye prayas karna parta hai...par prayas karne ke liye khwahishein to hon dil mein...
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से
गर तूने ख्वाहिश की होती...
लाज़वाब...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति..
मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.
दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?
मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.
मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
dil se likhi ek behtareen rachna
______________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
राजनेता - एक परिभाषा अंतस से (^_^)
खूबसूरत भाव से सुसज्जित सुंदर रचना ।
अरे मेरी आँख की वीरानियों से
ही तो तेरी राहें गुजरती हैं
इन पंक्तियों का काव्य सौष्ठव देखते ही बनता है।
बहुत ही सुंदर।
Bahut khoob ...
कुछ ऐसी ही भावनाएं है अंतर्मन में..छू गयी उन्हें आपकी ये रचना..धन्यवाद आपका.. :)
समर्पण की पराकाष्ठा
तोड़ लाती चाँद आसमाँ से गर तुने ख्वाहिश जो की होती.....
कुछ शब्दों ने ही दिल के दर्द को कह डाला....
वाह बहुत सुंदर लिखा है आपने:):)
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