इक युग बीता
आवाजें देते देते
मगर लगता है
तुम तक पहुँचती
ही नहीं
कभी देखना
घर से बाहर
निकलकर
हर खिड़की.
हर दरवाज़े
की कुण्डियों पर
मेरी सदायें
लटकी मिलेंगी
इस आस पर
कभी तो तुम
उन कुण्डियों
को खोलोगे
मगर शायद
तुमने बाहर
आना ही छोड़
दिया है तभी
डाक कभी लौटकर
आई ही नहीं और
सदायें चौखट पर ही
दम तोड़ जाती हैं
लगता है तुमने
घर साउंड प्रूफ
बनवा लिया है
आवाजें देते देते
मगर लगता है
तुम तक पहुँचती
ही नहीं
कभी देखना
घर से बाहर
निकलकर
हर खिड़की.
हर दरवाज़े
की कुण्डियों पर
मेरी सदायें
लटकी मिलेंगी
इस आस पर
कभी तो तुम
उन कुण्डियों
को खोलोगे
मगर शायद
तुमने बाहर
आना ही छोड़
दिया है तभी
डाक कभी लौटकर
आई ही नहीं और
सदायें चौखट पर ही
दम तोड़ जाती हैं
लगता है तुमने
घर साउंड प्रूफ
बनवा लिया है
28 टिप्पणियां:
वाह ...क्या ख़याल है ...क्या अभिव्यक्ति है ..सदाएँ लटकी मिलेंगी ... बहुत खूब ...
वाह खूबसूरत शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत सुन्दर रचना है
नए ख्याल की कविता.. बढ़िया विम्ब...
लगता है तुमने
घर साउंड प्रूफ
बनवा लिया है ... per dekhna ek din meri awaaz khamosh si pahunchegi
आपकी कल्पना शक्ति का जवाब नहीं ... ख्यालों की उड़ान कहाँ तक जाती है ... बहुत लाजवाब ...
वाह गज़ब की सोच.क्या बात कही है.अटकी सदाए, साउंड प्रूफ घर.बहुत खूब.
बेहतरीन प्रस्तुति ||
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
bahut khoob vandna ji .aabhar
हमेशा की तरह...बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
bahut hi sundar भावपूर्ण अपने नेताओ तक भी नही पहुंच रही और सत्ता सुंदरी तक भी नही
behad khubsurat rachnaa mam....khubsurat shabdon ke saath behtareen abhi vyakti...best wishes..
दीवारों से टकराकर सदाएँ दम तोड़ देती हैं ...वाह !
आवाज बाहर आना भी कठिन है तब तो।
sunder soch bhavnaon ki bahut hi achchhi abhivyakti .sadayen latki milengi ............kya baat hai
rachana
संवेदनाओं को जखझोरती नज़्म
अद्भुत, क्या बात है !
सदायें चौखट पर ही
दम तोड़ जाती हैं
लगता है तुमने
घर साउंड प्रूफ
बनवा लिया है
लाजवाब ...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!
bahut khoob vandna ji achche bhaav achche shabdon se susajjit kavita.maayoos hokar lot ti hui sadaaon ko ho sakta hai koi peeche se aavaj de.
साउंड प्रूफ घर हो तो ठीक है - आशा होती है कि सुनने वाला बाहर आये कभी | पर कान ही बंद ना हों | संवेदनाएं जीवित होनी चाहिए - बंद दरवाजे कभी ना कभी खुल ह जाते हैं ... |
कुछ अलग सी लगी ये पोस्ट.........आप क्या-क्या सोच लेती हैं.......घर साउंड प्रूफ....वाह.......बहुत सुन्दर|
sound proofing achhi hai!!
ख्यालों में जाने क्या क्या जी जाते हम, और वो सभी एहसास सच से लगते हैं. बहुत अच्छी रचना, बधाई वंदना जी.
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
अकाउस- टिक्स की बात करती है आपकी रचना -लगता है घर साउंड प्रूफ बनवा लिया है .अभिव्यक्ति की उड़ान ऊंची है .अफवाह के पंछी से भी बहुत ऊंची .
मौजूदा दौर की सुंदर प्रस्तुति।
शुभकामनाएं आपको।
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