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शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

निर्मल हास्य का आनंद लीजिये

निर्मल हास्य का आनंद लीजिये
चर्चाकारों की भी कुछ खबर लीजिये
व्यवस्थापक तो मौज उडाता है
बस बेचारा चर्चाकार फँस जाता है
व्यवस्थापक अपनी जिम्मेवारी
दूसरे के कन्धों पर ड़ाल
चैन की नींद सो जाता है
और बेचारा चर्चाकार
बेगारी में लग जाता है
ये कैसे सुनहरे जाल में फँस जाता है
ना निकल पाता है ना रह पाता है
बेबस जुबान ना खोल पाता है
अपने हाल पर रोता जाता है
पर मुफ्त के नाम पर कुर्बान हुआ जाता है
चर्चाकार को इतनी कीमत
तो चुकानी पड़ती है
अपनी नींद भी उड़ानी पड़ती है
सारा दिन भटकता फिरता है
हर ब्लॉग को पढता है
और उनमे से कुछ को
सेलेक्ट तो कुछ को रिजेक्ट करता है
किसी को हितैषी तो किसी को दुश्मन
दिखता है
जिसकी पोस्ट लेता है उसकी
बांछें खिल जाती हैं
जिसकी रह जाती हैं वो
आँखें तरेर लेता है
बेचारा चर्चाकार बुरा फँस जाता है
बेकार में नाम बदनाम  हो जाता है
मगर व्यवस्थापक मौज उडाता है
और चर्चाकार अपने ब्लॉग भी भूल जाता है
बस चर्चा में ही लगा रह जाता है
किसी को नाराज नहीं करना चाहता है
इसलिए दिन रात खटता रहता है
पर सबको संतुष्ट नहीं कर पाता है
पर व्यवस्थापक मौज उडाता है
हाय रे चर्चाकार तेरी यही कहानी
तेरी पीड़ा किसी ने ना जानी
सब करते हैं अपनी मनमानी
फिर क्यूँ करता है नादानी
मान जा प्यारे छोड़ नाम का मोह
अपने नीड में वापस आ जा
कर अपने ब्लॉग को इतना बुलंद
कि सभी व्यवस्थापक कहें
तेरा ब्लॉग तो हम खुद ले लेंगे
और तुझे सैल्यूट भी करेंगे
छोड़ माया मोह का फंदा
चर्चा की माया से निकल जा प्यारे
नहीं तो बहुत पछतायेगा
कहीं का नहीं रह जाएगा
हर कोई तुझे सिर्फ
चर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाएगा
सबसे बढ़िया जुगाड़ है ये
सबको काम पर लगा देना
और खुद नाम कमा लेना
एक को देख दूसरा भी
उसी राह पर चल निकलता है
व्यवस्थापक का धंधा
खूब फलता है
और चर्चा का मंच
जोर शोर से चलता है
पर बेचारा चर्चाकार
मुफ्त में फंसता है
ना कहे तो छवि बिगडती है
हाँ कहे तो कहीं का नहीं रहता है
साँप छछूंदर वाली हालात होती है
ना उगलता है ना निगलता है
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाता है
और चर्चाकार बुरा फँस जाता है ...............



दोस्तों
ये निर्मल हास्य है इसे कोई भी गंभीरता से ना ले………बस कल कुछ देखकर ये ख्याल आया………तो आज इसी पर लिख दिया……कोई भी व्यवस्थापक या चर्चाकार इसे निजी तौर पर ना ले………कभी कभी ऐसी दिल्लगी भी होती रहनी चाहिये इससे आनन्द बना रहता है और सबको एक नयी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है तो आपकी सेहत के मद्देनज़र है आज की ये दिल्लगी…………:)

31 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वंदना जी,निर्मल हास्य के माध्यम से चर्चाकारों की पीड़ा उजागर की है।

आभार

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आपने तो सच कहा है,
इसमें बुरा मानने वाली तो बात ही नहीं है।

S.N SHUKLA ने कहा…

yatharth, behatar post

Anupama Tripathi ने कहा…

बढ़िया है ...निर्मल आनंद...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बढ़िया...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

haha very light and good one....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बस निर्मल हास्य की तरह ही लिया है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

चर्चाकार की विवशता समझ में आती है
पर इसी विवशता में उसकी योग्यता आंकी जाती है ...

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार (09-07-11 )को नयी-पुरानी हलचल पर होगी |कृपया आयें और अपने बहुमूल्य सुझावों से ,विचारों से हमें अवगत कराएँ ...!!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आद. वंदना जी,
चर्चाकार की व्यथा बयान करती निर्मल हास्य की कविता बहुत अच्छी लगी ,शायद इसलिए भी कि इसमें सच्चाई की खुशबू भी समाहित है !
आभार !

रविकर ने कहा…

आपका हार्दिक अभिनन्दन ||

आभार ||

Dr Varsha Singh ने कहा…

हर कोई तुझे सिर्फ
चर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाएगा
सबसे बढ़िया जुगाड़ है ये
सबको काम पर लगा देना
और खुद नाम कमा लेना


बहुत खूब...
करारा कटाक्ष....

कुमार संतोष ने कहा…

vandana ji bilkul sahi kaha hai.

Aabhaar !!

अशोक सलूजा ने कहा…

मिठाई में लपेटी,कड़वी सच्चाई .
वन्दना जी ,बधाई हो बधाई ||
शुभकामनायें !

बेनामी ने कहा…

बढ़िया है जी..........वैसे हम तो इन चर्चा-वर्चा से दूर ही रहते हैं....की कहीं चर्चा की जगह पर्चा न छप जाये :-)

shikha varshney ने कहा…

हा हा हा .
हाय रे चर्चाकार तेरी यही कहानी,
करे मेहनत भारी फिर भी सुने गाली.
(तुलसी दास जी से क्षमा याचना सहित )
निर्मल हास्य की ही तरह लिया है :)

संगीता पुरी ने कहा…

ह ह ह ह .. बस निर्मल हास्‍य की तरह ही लिया है !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):)बढ़िया और सही ...

मनोज कुमार ने कहा…

आपके ब्लॉग
का नाम हमने
यूं ही बैठ-ठाले
दो-चार बार लिये
ज़ख़्म ... जो फूलों ने दिये ...
ज़ख़्म ... जो फूलों ने दिये ...

फिर पढ़ी कविता
बही मन में हास्य की निर्मल सरिता
कविता को पढ़कर
मुझे सूझा रह-रह कर
यह तो है
एक
फूल
जो ज़ख़्मों ने दिये।

KK Yadav ने कहा…

सही ही तो कहा है आपने...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bechari charchakara...:)
itna nimral anand:)

शिखा कौशिक ने कहा…

Vandna ji -nirmal hasya ka yah roop bhi bahut bhaya .chand shabdon me charchakar ke man ki har bat ko likh dala hai .bdhai

Kailash Sharma ने कहा…

चर्चाकार की पीड़ा को भी आपने निर्मल हास्य में बदल दिया...कमाल है...आभार

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

जोर का झट्का धीरे से दे गये
दिल की बात दिल्लगी में कह गये.

देर से समझे पर दुरुस्त समझे
जान ही गये तो किसका इन्त्जार हो करते.

Vivek Jain ने कहा…

बहुत बढ़िया

आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

इस निर्मल हास्य का जवाब नहीं जी!
--
चर्चा मंच और नई पुरानी हलचल पर यह बात लागू नहीं होती!
उनके व्यवस्थापक तो अन्य चर्चाकारों की तरह ही परिश्रम कर रहे हैं!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

हाहाहहाहा.. अच्छा है

रजनीश तिवारी ने कहा…

...चर्चाकार को इतनी कीमत
तो चुकानी पड़ती है
अपनी नींद भी उड़ानी पड़ती है
सारा दिन भटकता फिरता है
हर ब्लॉग को पढता है
sach kaha aapne ye koi aasan kam nahin ! bahut badhiya ! aabhaar !

mridula pradhan ने कहा…

aapka nirmal-hasy bahut nirmal hai.....bahut pyara andaz.....

Rachana ने कहा…

हर कोई तुझे सिर्फ
चर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
bahut khub nilman aand aaya .
sabhi ki baat hai shabd aapke hain aannad sabka hai
rachana

Pratik Maheshwari ने कहा…

हाहा.. चर्चाकार फंसता है.. ये तो सही है.. हमारे ऑफिस में भी यही होता है..
बॉस कहता है ये काम करो.. हम कर देते हैं.. बाद में बड़ा बॉस आ कर हमें डांटता है.. हम चर्चाकार है.. हमारा बॉस व्यवस्थापक और बड़ा बॉस जनता.. :)

परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार