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सोमवार, 11 जुलाई 2011
देखा है तुमने कहीं जलता आशियाँ?
मेरे मन की वसुधा पर
अब घास उगती ही नही
फिर किस नेह जल से
सिंचित करोगे और किसे
देखो ना…………
हरियाली भी दम तोड चुकी है
और जमीन इतनी बंजर हो चुकी है
भावों की खेती भी नही होती
देखा है तुमने कहीं जलता आशियाँ?
33 टिप्पणियां:
बेनामी
ने कहा…
हरियाली भी दम तोड चुकी है और जमीन इतनी बंजर -- कमाल का एक्सप्रेशन .. वाह
वंदना जी शुभ शुभ बोलिए. बरसात का मौसम है. हरियाली का दम तोड़ेंगीं तो सूखा पड़ जायेगा. मन की मत पूछियेगा. मन में ही आनंद का सागर भी लहरा रहा है. जरा आवाहन कीजियेगा,सुखद बरसात न हो तो कहना.जब पद्मनाभं मंदिर में खजाना मिला है, तो मन-मंदिर के खजाने का तो कोई ओर छोर ही नहीं है.
बहुत सुंदर ! जलता आशियाँ ही नहीं हमने तो परमात्मा का सागर भी देखा है जो आज भी सींच रहा है आपके मन की वसुधा को ही नहीं हरेक के मन की धरा को तभी तो बार बार हार कर भी मन जीत जाता है...
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
33 टिप्पणियां:
हरियाली भी दम तोड चुकी है
और जमीन इतनी बंजर -- कमाल का एक्सप्रेशन .. वाह
फिर किस नेह जल से सिंचित करोगे....वाह...अद्भुत शब्द और भाव....
नीरज
कम शब्दों में गंभीर कविता... बहुत सुन्दर
jab mann ke srot sookh gaye to ab prashn kahan kaisa kisse
वंदना जी शुभ शुभ बोलिए.
बरसात का मौसम है.
हरियाली का दम तोड़ेंगीं तो सूखा पड़ जायेगा.
मन की मत पूछियेगा.
मन में ही आनंद का सागर भी लहरा रहा है.
जरा आवाहन कीजियेगा,सुखद बरसात न हो तो कहना.जब पद्मनाभं मंदिर में खजाना मिला है,
तो मन-मंदिर के खजाने का तो कोई ओर छोर ही नहीं है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत सुंदर !
जलता आशियाँ ही नहीं हमने तो परमात्मा का सागर भी देखा है जो आज भी सींच रहा है आपके मन की वसुधा को ही नहीं हरेक के मन की धरा को तभी तो बार बार हार कर भी मन जीत जाता है...
gahan bhavon ko abhivyakt kiya hai .aabhar
और जमीन इतनी बंजर हो चुकी है
भावों की खेती भी नही होती....
बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण..कमाल के अहसास..आभार
दिल को छूती कविता |
संवेदना को झकझोर गयी आपकी कविता !
आभार !
बधाई ||
अच्छी प्रस्तुति ||
गहरा।
:)...
gahri soch ke saath likhi gayee...rachna..
क्या बात कही है - गागर में सागर
घास की खूबी है कि वह पत्थर पर भी उग आती है, शायद इसीलिए ‘ नेह जल से सिंचित ’ किया जा रहा होगा।
इतना दर्द.......सुभानाल्लाह|
भावों की खेती भी नहीं होती .. यह पंक्ति लाजवाब ।
जब बंजर जमीन में इतने शब्द उग रहे हैं
तो जब उर्वरा होगी भूमि तो रचनाओं की बाढ़ निश्चितरूप से आ जाएगी!
मेरे मन की वसुधा पर
अब घास उगती ही नही
गंभीर कविता... बहुत सुन्दर , आभार.
खुबसूरत प्रस्तुती....
bahut udas rachna ..door door tak udaasi chhayi hai ...!!
dil ke dard ko alfazo mein bahut khoob piroya hai :)
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राजनेता - एक परिभाषा अंतस से ||
Sundar, ati sundar, badhai
kya kehna..aapka
भावों की रिक्तता को कहती अच्छी प्रस्तुति
न्यूनतम शब्दों में अद्भुत अभिव्यक्ति. काफी प्रभावित किया आपकी रचना ने. आभार.
अंबेडकर और गाँधी
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार....!
bahut achchi kavita.
bahut achchi kavita ...sadhuvad
bahut achchi kavita.sadhuvad...
सुन्दर और भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार...
हरियाली भी दम तोड चुकी है
और जमीन इतनी बंजर
कमाल के भाव,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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