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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

ना जाने कब हम भारतवासी ईंट का जवाब पहाड से देना सीखेंगे?

वो तो रोज दीवाली मनायेंगे
कसाब के जन्मदिन मनायेंगे
सिर्फ़ देशवासी ही बेमौत मारे जायेंगे
आखिर दामाद बनाया है
तो कीमत तो चुकानी होगी
क्या हुआ जो ओबामा ने
दूसरे के घर जाकर वार किया
हम उनका अनुसरण तो करते हैं
मगर उनकी नीतियो पर नही चलते है
फिर उसकी कीमत तो चुकानी होगी
बेबसों को जान गंवानी होगी
निरीह जनता तो है ही मरने के लिये
कसाइयों के हाथ से कैसे बच पायेगी
अपनो के हाथों ही लुटती जायेगी
हम सिर्फ़ बातें करना जानते है
पर किसी पर ना वार करना जानते है
क्या हुआ भाई है ना हमारा
कैसे उन पर वार करें
क्या हुआ जो उसने हम पर वार किया
हम तो अपना सिर कटायेंगे
मगर उनको ना सरेआम
गोली लगवायेंगे
ना उनके हश्र का लाइव
टैलीकास्ट करवायेंगे
गर इतनी हिम्मत होती
तो देश की ना ये गत होती
बस कभी किसी के तो
कभी किसी के पीछे दुम हिलायेंगे
मगर कसाब हो या अफ़ज़ल गुरु
उन्हे ना फ़ांसी पर चढायेंगे
तो बताइये जब ईंट का जवाब
पत्थर से नही दे पाते
तो पहाड से कैसे दे पायेंगे
हम तो बस अपनो को मरवायेंगे………

32 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

हम तो बस अपनों को मरवायेंगे ...

बिल्‍कुल सच कहा है आपने
बेहद सशक्‍त रचना ।

Sunil Kumar ने कहा…

नामुमकिन, हम तो हैं शांति के पुजारी ......

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आक्रोश और हुंकार से भरी कविता...

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ||

हर-हर बम-बम
बम-बम धम-धम |

थम-थम, गम-गम,
हम-हम, नम-नम|

शठ-शम शठ-शम
व्यर्थम - व्यर्थम |

दम-ख़म, बम-बम,
तम-कम, हर-दम |

समदन सम-सम,
समरथ सब हम | समदन = युद्ध

अनरथ कर कम
चट-पट भर दम |

भकभक जल यम
मरदन मरहम ||
राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |

मनोज कुमार ने कहा…

जो हो रहा है, जो हुआ है, उसके परिप्रेक्ष्य में आपका प्रश्न बहुत जायज़ है। सच कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे।

Unknown ने कहा…

कहाँ से लाये वो जिगर जो दे सके पहाड़ सा जवाब , हम तो तुम्हारे घर में भी सीना फुलाए बैठे है.

shikha varshney ने कहा…

हम तो अहिंसा के पुजारी हैं.

रजनीश तिवारी ने कहा…

आखिर कब तक ? आक्रोश स्वाभाविक है ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश ऐसा निश्चय जुटा लें हम।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

एक न एक दिन तो सीखना ही होगा।

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जीवन का सूत्र...
लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?

Mithilesh dubey ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

S.N SHUKLA ने कहा…

Ye gussa vajib hai, achchha laga, badhai Vandana ji

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भारतवासी रहमदिल हैं!
गान्धी जी के अनुयायी जो हैं!

मदन शर्मा ने कहा…

यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है की सब जानते समझते हुवे भी हम सुधरना नहीं चाहते |
कोई हमें दो जूता मार के निकल जाए तो भी हम प्रतिक्रया करने वाले जीव नहीं हैं |
हमारा तो बस एक ही नारा है अहिंसा परमो धर्मः |
जो भी कुछ हो रहा है हमारे भाग्य में लिखे अनुसार ही हो रहा है !
जब इश्वर चाहेगा तभी हमारे दिन सुधरेंगे |
कोई लाख करे चतुराई करम का लेख टले ना मेरे भाई .................

nilesh mathur ने कहा…

सचमुच, अब तो खुद पर शर्म आने लगी है।

Vivek Jain ने कहा…

हौसला बनाये रखें, सब ठीक होगा,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

udaya veer singh ने कहा…

अतिशय सहिष्णुता भीरु बना देती है ,कदाचित कर्तव्यों से विमुख भी ,,आपकी पीड़ा जायज है हम कुछ की लालसा में कहीं सब कुछ तो नहीं खो रहे ? सार्थक पोस्ट ,..... शुक्रिया जी /

अजय कुमार ने कहा…

लाशों की राजनीति करने वालों को राजनीतिक बयानबाजी का एक और मौका । वही पुराने जुमले जैसे- बर्दाश्त नहीं करेंगे,स्पिरिट को सलाम आदि

Dr Varsha Singh ने कहा…

वर्तमान दशा का सटीक आकलन....

बेनामी ने कहा…

@ जो कुछ भी मदन शर्मा जी ने कहा वही मैं भी कहना चाहता हूँ|

Anita ने कहा…

गर इतनी हिम्मत होती
तो देश की ना ये गत होती

वाकई आज देश को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है, पता नहीं यह सरकार किससे भयभीत है.

Maheshwari kaneri ने कहा…

वो सुबह कभी तो आएगी ....

Khare A ने कहा…

आप हमें कंजोर न समझे! हमें जोर लगाया ही कब है!

Khare A ने कहा…

आप हमें कमजोर न समझे! हमें जोर लगाया ही कब है!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

kavita kranti jaga rahi hai
soya jwalamukhi sakriya bana rahi hai
sunder prastuti

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह! अद्भुत सुन्दर रचना! कमाल की पंक्तियाँ! शानदार और ज़बरदस्त प्रस्तुती!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ईंट का जवाब कम से कम पत्थर से तो देना सीख लें।

कविता के तेवर सोते को जगाने के लिए कटिबद्ध है।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत ही क्षुब्ध भाव की उद्वेलित करती रचना...
हम तो अपने आँगन में मौत का मातम मनाने के आदि हो गए हैं
सरकार वोट की सौदागर , जिंदगियों की कीमत पर आतंकवादियों को भी वोटर बनाने से नहीं हिचकेगी

Gauri ने कहा…

Dukh huva yeh dekh kar jin logo ne yeh kahan ki ham shanti ke pujari hai ya dheeraz rakhiaye , kaya un Kashmiri Hindu masoomo ki kashmiri mai koi keemat nahi thi jis din Kashmir pe Kashmiri Hindu aurato ki ezzat luti ja rahi thi sab log apne gharo mai baithae huve thae aau aaj taq taq un hindu kashmirio ko Kashmiri mai jane ka adhikar nahi kitne sharam ki baat hai aur ham jeh rahe hai ki yeh hukar aur akrosh se bhadi Kavita hai ??

Gauri ने कहा…

Arun Chander Jara aap humen yeh batayiaye ki es kavita mein hunkar kahan se aa gaya? Ankrosh kahan hai hai?

Gauri ने कहा…

Arun Chander Kaya kahan Aakrosh aur Hunkar? Kahan hai Hunkar es kavita mein? jada Batayiaye?

Gauri ने कहा…

Na jane mere blog se mai hindi mai kiyon nahi likh pa rahi