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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

देखो आज मुझे मोहब्बत के हरकारे ने आवाज़ दी है .....



सोचती हूँ कभी कभी
तुम ..........जिसे मैंने देखा नहीं
और मैं .....जिसे तुमने भी नहीं देखा
और चाहत परवान चढ़ गयी 
एक नदी अपने ही आगोश में सिमट गयी
मैंने सिर्फ ख्यालों में ही 
मोहब्बत का नगर बसाया 
न तुम कोई साया हो
न मैं कोई रूह
शायद मेरी चाहत की
कोई अनगढ़ी तस्वीर हो

अगर कभी मैं तुम्हारे शहर आई
तुम्हारी गली से गुजरी
तुम्हारे दर पर कुछ देर रुकी
और तुमने मुझे देखकर भी 
नहीं देखा
और मैं भी तुम्हारी देहरी से
रुका हुआ पल लिए
खाली ही लौट आई
बिना जाने एक दूजे को 
तो क्या कभी जान पाएंगे हम
इस सत्य को ?
मोहब्बत के लिए जिस्मों का होना 
जरूरी तो नहीं होता ना
ये तुम भी जानते हो
और शायद मैं भी 
तभी तो देखो 
एक अनजान सफ़र पर निकल पड़ी हूँ
बिना जाने मंजिल का पता 
अच्छा बताओ .......अगर हम 
ज़िन्दगी में कभी मिले
और तुम्हें पता चला 
हरसिंगार कुछ देर ठहरा था तुम्हारी दहलीज पर
बिखेरी थी अपनी खुशबू तुम्हारी चौखट पर
क्या जी पाओगे उसके बाद ?
सोचते होंगे .........पागल है 
है ना ............
परछाइयों को शाल उढ़ा रही है 
बिन बाती के दीप जला रही है
जब हम जानते नहीं एक दूजे को
फिर कैसे ख्वाब सजा रही है
है ना ..............................
मगर मोहब्बत के चश्मों को रौशनी की जरूरत नहीं होती 
हकीकी मोहब्बत से ज्यादा पुख्ता तो अनदेखी मोहब्बत होती है 

.............अच्छा बताओ ............
कहीं मैंने तुम्हें अपना पता बता दिया
और तुमने मुझे अपना
और अचानक मैं सामने आ गयी
तब क्या करोगे?
उफ़ ...........इतनी ख़ामोशी
अरे कुछ तो बोलो ...........
जानती हूँ ........कुछ नहीं बोल पाओगे
सिर्फ और सिर्फ देखते रह जाओगे
और वक्त वहीँ थम जायेगा ............पूस की रात जैसे ..........ठिठुरता सा .......मगर ख़त्म ना होता सा ........है ना............

ये मोहब्बत भी कितनी अजीब होती है ना ..........हर सांस पर , हर कदम पर ,हर शय पर बस इबादत सी होती है ...........

देखा है कभी मोहब्बत की डाक को लौटते हुए बेसबब सा 

चलो आज तुम्हें एक बोसा दे ही दूं ......उधार समझ रख लेना 

कभी याद आये तो ..........तुम उस पर अपने अधर रख देना

मोहब्बत निहाल  हो जाएगी .........हाँ हमारी अनजानी अनदेखी मोहब्बत की बेमानी कहानी अमर हो जाएगी 

देखो आज मुझे मोहब्बत के हरकारे ने आवाज़ दी है ..........ओह सजीली सतरंगी सावनी फुहार !

बरसातें यूं भी हुआ करती हैं ............रेशमी अहसासों सी , लरजते जज्बातों सी 

और देखो ना 
कैसे गढ़ दिया मोहब्बत का मल्हारी शाहकार ............मेघों की दस्तक पर 
मानो तुमने पुकारा हो ..........आजा आजा आजा !!!!!!!!!

और मानो आह पर सिमट गयी हो हर फुहार !!!!!!!


25 टिप्‍पणियां:

Arun sathi ने कहा…

एक प्रेम में डुबी कविता... आभार।

राकेश कुमार ने कहा…

दो अन्जान प्रेमियों की दास्तां को जो आज के तकनीकि माध्यमों के जरिये धीरे-धीरे एक -दूसरे के अंतस्थल पर उतर आते हैं, प्रतिबिंबित करती एक संुदर कविता। कविता की हर पंक्तियों में सरिता का सुंदर कलरव, किन्ही दो पर्वत शिखरों के मध्य प्रतिध्वनित दो प्रेमियों के रूह से निकली एक-दूजेे पर अघ्यारोपित स्वर, हर पंक्तियों में रूह को कंपा देने वाली पूस की ठिठुरन... अद्भुत । ऐसी कल्पना मैने कदाचित ही किसी कवियित्री की कलम से पढ़ा होगा।

मुझे अनायास याद हो आते हैं वे पल, जब दो महान रचनाकारों के प्यार को इसी अंतर्जाल के मध्य पुष्पित और पल्लवित होते मैने पढ़ा था, लगता है जैसे उनकी संवेदनाओं को आपने अर्से बाद स्वर दे दिये हों ।

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर...शुरू से आखिर तक...प्यार ही प्यार....
बेहतरीन रूमानी एहसासों से भरपूर रचना...

सस्नेह.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये बसंत का असर है या मन पर देती दस्तक ... प्रवाहमयी भावप्रवणता

Amrita Tanmay ने कहा…

लाजबाब..रचना बहुत अच्छी लगी |

Amrita Tanmay ने कहा…

लाजबाब,,रचना बहुत अच्छी लगी |

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मोहब्बत के हरकारे की पुकार कहती है , एक खोयी , सिमटी सी लड़की आज भी सुगबुगा रही है . खुशबू से सनी वह हरसिंगार बन किसी जगह बसना चाहती है . अपनी अकुलाहट प्रत्युत्तर में वह भी पाना चाहती है ... यह प्यार वह ख्वाब होता है , जो खुली आँखों से बन्द आँखों तक गुजरता रहता है

सदा ने कहा…

बहुत ही अनुपम भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर .....आपके लफ्ज़ कुछ अलग से....मुहब्बत की डाक...वाह.....पहली और आखिरी तस्वीर भी बहुत अच्छी है ।

RITU BANSAL ने कहा…

सुन्दर..
kalamdaan.blogspot.in

vandana gupta ने कहा…

आह ! रश्मि जी ………कितनी सुन्दरता से आपने उस लडकी को बयाँ कर दिया ………उफ़ ……अब कहने को कुछ बचा ही नही।

shikha varshney ने कहा…

प्रेम दिवस दस्तक दे रहा है :).सुन्दर प्रेममयी रचना.

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत-बहुत-बहुत ही खूबसूरत....प्‍यार में पगी लड़की की दि‍ल की बात....हर प्‍यार करने वाले दि‍ल की बात....मि‍लन की ख्‍वाहि‍श भी और दूर-दूर रहकर दि‍ल में उतरता प्‍यार।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

वासंती असर है कविताओं में ...

विभूति" ने कहा…

बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम में सराबोर..

rashmi ravija ने कहा…

रूमानी अहसास लिए बड़ी मीठी सी कविता

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

Vandana Ramasingh ने कहा…

behtareen kavita

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव संयोजन शब्द -शब्द दिल को छू लेनेवाली है .
कभी आह है , कभी सवाल है फिर मन में एक झुंझलाहट सी है..
कभी प्रेम मोह में विचलित ,,,कभी मिलन की आस ....
सबकुछ एकदम भाव विभोर कर देता है....एक अंजाना ,अनदेखा शख्स क्या दिल के इतना करीब हो सकता है .....ये प्रेम भी कही न कही से अपना रास्ता खोज ही लेता है ,,,
प्रेम रस, प्रेम भाव में डूबी अंतरात्मा तक छू लेनेवाली रचना है.....
तस्वीर भी इतनी सुन्दर है की बस दिल भर गया.....

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

यहाँ तो गज़ब की बैचैनी है!
वाह!
आओ ऋतुराज!

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह वाह जी इत्ती भारी ठंड में भी आप वसंत तान छेडे हुए हैं ..बहुत ही सुंदर हमेशा की तरह ...जाने कितनी ही खुशबुएं और रंग लिए हुए । कमाल की अभिव्यक्ति .........

vijay kumar sappatti ने कहा…

मैंने इसे कल भी पढ़ा था , परसों भी पढ़ा और आज फिर से पढ़ रहा हूँ.

इस रचना के बारे में कुछ कहना चाहूँगा की , ये तुम्हारी दूसरी रचनाओ से अलग है वंदना ... कुछ अलग ही महक है.. कोई गीत है ,जो प्रेम रस से सरोभर है , कोई पेंटिंग है , जिसमे बहुत से रंग भिकार कर खिल उठे है . एक गहरी प्रेमकथा है .. कुछ अपनी सी है ,कुछ पराई सी.

कुछ भी कहो , कोई भी टिपण्णी इस रचना के लिए कम है वंदना .. बस यूँ ही सुन्दर सुन्दर लिखो .. यही प्रभु से कामना है .

विजय

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

हरि अटल ने कहा…

Vandna g
Itni gahrai hai bhavo me lagta padte rahe aur anubhav karte rahe bahut saskat abhibaykti!
with regards
Hari Attal