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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

अब आते हैं मुद्दे पर ............आप सबके जूते मेरे सिर पर


दोस्तों
जब ये निम्नलिखित सूचना पढ़ी सूत्रधार जी के ब्लॉग पर और वहाँ  टिप्पणियां पढ़ीं तो हमारा दिमाग तो खिसक ही गया पूरी तरह से ..........अब देखिये कहाँ जाकर रुकता है कह नहीं सकते..........किस किस की खाल खींचता है और किस किस को सुकून पहुँचाता है कह नहीं सकते .........तो भाई लोगों ये तो थी हमारी वहाँ टिप्पणी...............



लो जी अभी तो उदघोषणा हुई है और हाहाकार शुरु हो गया…………जय हो जय हो जय हो ब्लोगवुड तेरी जय हो…………तेरी महिमा न्यारी है ………अब मन मे कुछ आ गया है जो कविता मे ढलेगा और पक्का है उसके बाद सारे जूते हमारे ही सिर पर होंगे …………लेकिन हम भी कम थोडे हैं कहे बिना तो नही रहेंगे…………उन लोगों की तरफ़ से जिनका जिक्र करके भी नही किया आपने ………………हो जाओ तैयार होशियार खबरदार 






ये कमेन्ट मैं वहां दो बार लगा चुकी और दोनों ही बाद नदारद है .....क्या मैंने कुछ गलत कह दिया ?....और बाद में कमेन्ट करने वालों के दिख रहे हैं .........पता नहीं क्या चक्कर है .........अब तो हम लिखे बिना और पोस्ट किये बिना नहीं रह सकते 


और ये था आलेख 



शुक्रवार, 17 फरवरी 2012


दुखद ...


मैं सूत्रधार ... क्यूँ दुखी हूँ ? हमेशा से यही होता रहा है . ब्‍लॉगर्स को प्रब्‍लेस शिखर सम्‍मान मुबारक हो ! Prize  , जब ऐसी खुशियाँ आती हैं =  प्रब्लेस शिखर सम्मान की उद्घोषणा.....   . मैं किसी व्यक्तिविशेष को दोष नहीं देता , इस मनःस्थिति को हम सब जानते हैं कि बजाये खुश होने के लोग तलवार निकल लेते हैं व्यंग्य बाणों के ! 
अब हम कुछ देर के लिए मान लें कि दिए गए उदाहरण की तरह लिखित नामों ने खुद लिखा , खुद को पुरस्कृत किया ... तो हम क्या साबित कर रहे कि अपनी योग्यता को ये खुद फैला रहे . क्या सच में इन्हें पढ़ने के बाद यह प्रतीत होता है ? सूरज खुद निकलता है , प्रकाश देता है - पुरस्कृत करो न करो, सूरज ही होता है . 
रवीन्द्र जी हों या अविनाश जी या रश्मि जी = इनकी प्रतिभा से कौन इन्कार करेगा ? आलोचना तो ईश्वर की भी होती है = पर सत्य प्रतीक्षा नहीं करता . और यदि सत्य ने खुद को खुद पुरस्कृत किया है तो बाकी लोगों के लिए शर्म की बात है कि वे संकुचित रहे , उनके लिए आगे बढ़कर कुछ नहीं किया !!!





अब आते हैं मुद्दे पर ............आप सबके जूते मेरे सिर पर ..........मारो तो भला न मारो तो भला 




( ओये होए हास्य है ........कहीं सच मुच ही जूते लेकर ना दौड़ पड़ना .......अरे उन लोगों की  तरफ से भी कभी कभी लिखना चाहिए जिन्हें ऐतराज होता है आखिर वो भी तो हमारे हैं :))))))))) ......अब ज्यादा घूरिये मत और पढ़िए .........मेरा दिल जोर से धड़क रहा है डर के मारे ..........मगर क्या करूँ जब कहती हूँ तो कह ही देती हूँ बिना लाग लपेट के ...........हा हा हा ) 


और ये भी नहीं पता किसे ऐतराज़ हुआ मगर हमारे तो दिमाग का पेंच जरूर हिल ही गया है तो अब तो आपको इसे झेलना ही पड़ेगा 

ये मैंने नहीं कहा है ............ये उनकी तरफ से जिन्हें ऐतराज हुआ है :))


ब्लॉगवुड फेसबुक ट्विट्टर पर छाए महारथी

जब से खुद को लाटसाहब समझने लगे 
तब से उनके भी पर निकालने लगे 
जिन्होंने जुम्मा- जुम्मा अभी 
आँख खोली ही थी
या पैदा होने की ज़हमत उठाई ही थी
उनके मुँह में भी जुबाँ आ गयी थी
तभी तो बिल्ली के भागों छींके टूट रहे थे
नए नए बिलौटे ही मलाई खा रहे थे
बेचारे पुराने तो अपने घिसे पिटे 
ढोल ही बजा रहे थे
इन पुरानों को इक नाम मिला ........रेंगने वाले कीड़े
हाँ वो ही तो हैं ये ..........जब से आये हैं
सिर्फ रेंग ही रहे हैं
कभी इसके ब्लॉग पर
तो कभी उसके ब्लॉग पर
कभी फेसबुक पर तो कभी ट्विट्टर पर
अपना रास्ता खोज रहे हैं
मगर कोई कमाल ना दिखा पा रहे हैं
ये कीड़े तो बस रेंगते ही जा रहे हैं
सबके हाथों की कठपुतली बनते जाते हैं
कभी साझे ब्लॉग अपनाते हैं
कभी चर्चा सजाते हैं 
कभी किसी को लड़वाते हैं
कभी सबको आमंत्रित करते हैं 
और इक आयोजन करते हैं 
पर इतना करने पर भी 
कुछ दिन में दिल से उतर जाते हैं
और अपने पुराने रूप में वापस आ जाते हैं
फिर रेंगना शुरू करते हैं 
और बस रेंगते ही जाते हैं 
कुछ प्रजातियाँ जो नयी उभर कर आई हैं
हर हथकंडे सीख कर आई हैं
कैसे नाम कमाना है 
कैसे किताबें छपवाना है
कैसे पब्लिसिटी करवाना है
कैसे पुरस्कार पाना है
आते ही ऐसे पाँव पसारते  हैं
सब उनके मुरीद हो जाते हैं 
सब जुगाड़ लड़ा लेते हैं
ये कीड़े जुगाडू कहाते हैं
जो पुस्तक मेलों तक में 
अपनी पहुँच बनाते हैं
फिर सरकारी अकादमियों तक
राह आसान बनाते हैं
मुफ्त में किताब छपवाते हैं
समीक्षाएं करवाते हैं
अख़बारों के पन्नों पर छा जाते हैं 
पर अपने गुर ना किसी को बताते हैं
ना ज्यादा बतियाते हैं
ना किसी को कुछ बतलाते हैं
ये जुगाडू कीड़े सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं
और अपना परचम फहराते हैं
किसी को गुरु तो किसी को प्रणाम करते हैं
और चापलूसी के ईंधन से 
नए आयाम तय करते हैं
मगर ऊपर से सामान्य  नज़र आते हैं
अपनेपन का चश्मा पहने रहते हैं
बातें मीठी- मीठी करते हैं 
सामने वाले का मन हर लेते हैं 
मगर मन से जुगाड़ में लगे रहते हैं
ऐसे में कहाँ रेंगते कीड़े इन्हें नज़र आते हैं
उन्हें तो ये सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं
पर कभी उन्हें आगे ना बढ़ने देते हैं
बस अपने नाम के लिए ही जुगाड़ करते रहते हैं
बेचारे रेंगते कीड़े 
यहीं पैदा होते हैं
खीजते हैं 
और फिर एक दिन
चुपचाप कुछ ना कर पाने की हसरत लिए
इन जगहों से विदा ले लेते हैं 
जिन्हें यहाँ कोई ना याद करता है
जिनका नामो- निशाँ भी मिट जाता है
बेशक लेखन सार्थक हो
बेशक उनमे बहुत दम हो
मगर जिसका ना कोई 
गौड फादर  होता है 
उसका तो यहाँ 
यही हश्र होता है 
पर जुगाडू का तो परचम हमेशा लहराता है 
हर जगह बस वो ही अपनी डुगडुगी बजाता है
पर ये भी सच है आज की दुनिया में 
वो ही सफल कहाता है ..........वो ही सफल कहाता है 


तो बोलो भैया ब्लॉग वुड की जय हो .........
ये हास्य व्यंग्य यूँ ही चलता रहे 
सबका मन हल्का होता रहे ..............
सबको मौका मिलता रहे ............कहने का भी ..........:))


उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे ...........

चलो जी हो जाओ शुरू 
मैं गिनती करती हूँ
कितने पड़े और 
कितने बाल मेरे बचे 

वैसे ये बात (रेंगने वाले कीड़े और जुगाडू ) हम सब पर लागू होती है मगर हमें तो दूसरे की ख़ुशी में ख़ुशी होती है 
एक आगे बढेगा तो दूसरों को भी सहारा जरूर देगा 
इसलिए हमें इस सोच से निजात पाना होगा ........शायद पा सकें 

23 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ओह्हो!! होली आने से पहले ही व्यंग्य वान चलने लगे.. दिखने लगा नया ही रंग!!
अपन तो छोटे मोटे ब्लॉगर. छोटे मोटे लोग.. सबको बधाई .. सबको शुभ सन्देश..!!
पर कहीं मन में छिपा रहता है, काश... जो अल्लू पल्लू लिखते है, उसपे ही ५१ रूपये ही मिल जाते !!
बहुत कोशिश भी कि......... वंदना याद तो होगा, आपको भी कहा, अपने छोटे मोटे रिवार्ड से कुछ हमें भी दे दो..:))
एक बात और.. ये भैया सूत्रधार के कंधे पर से कौन बम फोड़ने कि कोशिश कर रहा है, ये तो पता चले..!!
हम तो अपने रश्मि दी को यहाँ भी बधाई देंगे...:)

shikha varshney ने कहा…

अरे जूते आपको क्यों पड़ेंगे वो तो आपने मारे हैं वो भी भिगो भिगो कर :).सो बेफिक्र रहिये कुछ तो लोग कहेंगे.जब स्वं को न मिले तो दूसरा जुगाडू ही नजर आता है,मनुष्य स्वभाव है क्या कीजियेगा :).

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आगे आगे देखिये होता है क्या !

Nirantar ने कहा…

"सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग" रोग मुक्त रहो निरंतर चलते रहो....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

aaderneeya vandna jee...pratibhayein kisi kee mohtaz nahi hoti..jagjit sing jugad karke cricket khelte aaur sachin jugad karke ghazal gaate to janta janadan naak bhaun jarur sikodti..ab purna daur nahi raha kee patrikaaon kee sammeksha ke aadhar par log kisi sahitya ko accha ya bura kahein...logon me bahut samajh hai....sahitya lekhan ek sadhna hai...ek parampara hai...aap baar baar likh likh kar bhee apne kai kritiyon se muh pher lete hai..yahan hamesh hee hame apne agrajon se matlab anubhaviyon se seekhna chahata hai..har bidha ka siddhhast ek hee aadmi nahi hota..rashmi ji shikha jee, sangeeta jee, manoj jee divya jee sabka aaur aap ko shamil karti hui ye soochi kafi lambi hai...baise ek baat hai..nindak niyre rakhiye aangan kuti chabay.......................bin paani sabun bina nirmal kare subhay.....sahitya kar ko kabhi dil ka daura hee nahi padta..wo koi dard sanjota hee nahi..uske dard ko dekh dusron ka jama dard dravit ho jaata hai...lawa bankar nikal jaata hai..sunder tareeke se dil me uthe jajwaton ko aapne ham tak pahuchaya...sadar badhayee aaur amantran ke sath

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बाण व्यंग के तीखे होते..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

:) :) :) :) :) :) :)

Shanti Garg ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

मनोज कुमार ने कहा…

जय हो!

udaya veer singh ने कहा…

मर्ज शिकायत बन कर बह गया
नासूर न बने आओ दवा ढूंढें -----

अच्छा संताप अपनी विशिष्टता लिए ...धन्यवाद जी /

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कई दिनों से ब्‍लाग से दूर रही हूं इसलिए पूरा संदर्भ समझ नहीं आया।

Rajesh Kumari ने कहा…

haasya vyang to hai par sachchaai ke kafi kareeb hai.

vandana gupta ने कहा…

आशुतोष मिश्र जी …………इसीलिये तो ये पोस्ट लगाई है…………क्यों लोग ऐसा सोचते हैं कि जो हो रहा है जुगाड से हो रहा है ? अगर किसी प्रतिभा मे दम है तो वो अपना स्थान पाकर ही रहेगी ………फिर क्यों उदघोषणा होते ही हो --हल्ला मच जाता है ? ये बात आप और हम जैसे लोग समझते हैं तो बाकि के लोगों को क्यों समझ नही आती कम से कम उन लोगों को जो ऐतराज़ जताते हैं । अरे किसी को सम्मान मिल रहा है तो खुश होइये और अपने को इस काबिल बनाइये कि अगला नम्बर आपका हो मगर बेमतलब बाल की खाल खींचना तो मकसद नही होना चाहिये ना…………इसी दृष्टिकोण से ये सब लिखा है ताकि अगर कोई ऐतराज़ जताता है तो उसे भी बात समझ आये और इस नज़रिये से भी वो सोचे…………उम्मीद है मेरी बात से आप भी इत्तफ़ाक रखते होंगे।

vandana gupta ने कहा…

लेकिन प्रवीण जी सच्चे होते :)

सूत्रधार ने कहा…

@ वंदना जी , यदि गौड फादर या मदर अपना दिल दिमाग न हो तो मुश्किल है साहित्य ... ...
@ मुकेश जी , मैंने बताया - मेरा नाम संजय है , पर = ' मेरी तस्वीर लेकर क्या करोगे ?' हाँ मेरी बात में तथ्य न हो तो निःसंकोच कहिये .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बड़ा धार दार कटाक्ष है ... सच है की किसी को कुछ मिलता है तो उसे जुगाड़ का नाम दे दिया जाता है ... महिलाओं की तो और आफत है ... उनके लिए तो कह दिया जाता है की महिला हैं इसलिए लोग उनके ब्लॉग पर ज्यादा जाते हैं :):)
सबकी अपनी अपनी सोच है उसे बदला नहीं जा सकता ... पर जो लोग ऐतराज कराते हैं उनके भावों को बखूबी पिरो दिया है ...

vandana gupta ने कहा…

लेकिन सूत्रधार उर्फ़ संजय जी ये मैने उन लोगों की तरफ़ से लिखा है जो ऐसा सोचते हैं …………मेरा ऐसा कोई भाव नही है क्योंकि मै तो जानती हूँ प्रतिभा अपने आप पुरस्कृत होती है उसे किसी की जरूरत नही होती ……………ये सिर्फ़ उन "ऐतराज़" करने वालों के नज़रिये को पेश करने की एक कोशिश भर है और समझाने की कि ऐसा ना करें बल्कि सार्थक प्रयास करें तो वो भी और अन्य भी सफ़ल हो सकते हैं। आपका नाम तो मुझे आज ही पता चला है ………धन्यवाद ………उम्मीद है कोई बात गलत नही लगी होगी आपको भी।

सूत्रधार ने कहा…

हाँ वंदना जी , मैंने उसी बात पर लिखा

सदा ने कहा…

बहुत ही सही कहा है आपने ...

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

WAH KYA LIKHU ...BS AK HI SHABD ...LAJBAB ...

कुमार राधारमण ने कहा…

हमारे हाथ केवल अपना काम करना है। किए जा रहे हैं निरपेक्ष भाव से। ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
फटकार मिले या पुरस्कार
कौड़ी जैसे,दोनों अ-सार

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

:))))) कमाल है जी...... बहुत बढ़िया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ तो गडबड झाला है ... कई दिनीं से ब्लॉग जगत पे नहीं आया ... यहाँ तो धमाल मचा हुवा है ... हा हा ...
खैर ,,,,,
कुछ तो लोग कहेंगे ... लोगों का काम है कहना ... छोडो बेकार की बातों ....