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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

लफ़्ज़ों को ओढना और बिछाना ही मोहब्बत नहीं होती..........


अपने गलत को भी तुमने
सदा सही माना
मेरी सच्चाई को भी तुमने
सदा ही नकारा
तुम तो अपनी कहकर
सदा पलट जाते हो
कभी मुड कर ना 
हकीकत जान पाते हो 
और अपने किये को 
अपना प्यार बताते हो
मगर मेरे किये पर
सदा तोहमत लगाते हो
प्यार का अच्छा हश्र किया है
और इसे तुमने प्यार नाम दिया है
आह ! कितना आसान है ना
इलज़ाम लगाना
कितना आसान है ना 
मोहब्बत के पर कुचलना
मोहब्बत करने वाले तो
मोहब्बत का दिया 
विष भी अमृत समझ पीते हैं
मोहब्बत में ना शिकवे होते हैं
सिर्फ प्यारे की चाह में ही 
अपनी चाह होती है 
और मैंने तो ऐसी ही मोहब्बत की है 
मगर तुम ये नहीं समझोगे
तुम्हारे लिए मोहब्बत
चंद अल्फाजों के सिवा कुछ नहीं
तुम्हारे लिए मोहब्बत
सिर्फ तुम्हारी चाहतों के सिवा कुछ नहीं
तुम्हारे लिए मोहब्बत
सिर्फ एक लफ्ज़ के सिवा कुछ नहीं
मोहब्बत कहना और मोहब्बत करने में फर्क होता है
शायद ये तुम कभी नहीं समझोगे
मोहब्बत तो वो जलती चिता है जानां
जिसे पार करने के लिए 
मोम के घोड़े पर सवार होना पड़ता है
और तलवार की धार पर चलते
उस पार उतरना होता है
वो भी मोम के बिना पिघले
क्या की है तुमने ऐसी मोहब्बत ?
लफ़्ज़ों को ओढना और बिछाना ही मोहब्बत नहीं होती.............

3 टिप्‍पणियां:

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत अच्छी रचना हर एक शब्द प्यार को बयाँ करती रचना
मेरी नई रचना
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

mai... ratnakar ने कहा…

touchy

mai... ratnakar ने कहा…

touchy