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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

आखिर कोई कैसे खुद ही अपनी चिता को आग लगाये

पलायन 
किस किस से करें 
और कैसे
रिश्तों से पलायन
संभव है
समाज से पलायन 
संभव है
मगर खुद से पलायन
एक प्रश्नचिन्ह है
एक ऐसा प्रश्नचिन्ह
जिसका जवाब भी
अपने अन्तस मे ही
सिमटा होता है
मगर हम उसे
खोजना नही चाहते
उन्हे अबूझा ही
रहने देना चाहते हैं
और अपनी पलायनता का
ठीकरा दूसरों पर
फ़ोडना चाहते हैं
जबकि सारे जहाँ से
पलायन संभव है
मगर खुद से नही
फिर भी उम्र की 
एक सीमा तक
हम खुद से भी
नज़र बचाते फ़िरते हैं
इस आस मे 
शायद ये मेरा 
कोरा भ्रम है
मगर सच से कोई
कब तक नज़रे चुरायेगा
कभी तो मन का 
घडा भर ही जायेगा
और खुद को धिक्कारेगा
वो वक्त आने से पहले
आखिर कोई कैसे 
खुद ही अपनी चिता को आग लगाये

21 टिप्‍पणियां:

आशा बिष्ट ने कहा…

sahi kaha..abhar..

vidya ने कहा…

बहुत बढ़िया दर्शन वंदना जी...
पालयन कायरता का प्रतीक है...

वक्त आने से पहले कोई अपनी चिता को खुद आग कैसे लगाए..वाह...क्या बात कही आपने..

सादर.

RITU BANSAL ने कहा…

मगर सच से कोई कब तक नज़र चुराएगा...
बहुत प्रभावशाली शब्द..
kalamdaan.blogspot.in

rashmi ravija ने कहा…

सच में आखिर पलायन कब तक
उम्दा कविता

रविकर ने कहा…

पले पलायन का परशु,
पल-पल हो परचंड ।

अंकुश मस्तक से विलग,
हस्त करे शत-खंड ।।

दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

http://dineshkidillagi.blogspot.in

Anita ने कहा…

आपकी कविता पढ़कर कबीर याद आ गए...जो घर जारे आपना चले हमारे साथ...खुद का सामना किये बिना खुद से मुक्ति नहीं...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हर पलायन में खुद से नज़रें चुराते हैं ... सही झूठ का बहीखाता बनाते जाते हैं

sumukh bansal ने कहा…

nice read...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न दैन्यं न पलायनम्

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है इंसान सबसे भाग सकता है पर अपने आप से कैसे भागे ...
लाजवाब रचना ...

shikha varshney ने कहा…

वाकई ...पलायन खुद से...

Asha Joglekar ने कहा…

जग से चाहे भाग ले कोई, मन से भाग न पाये ।

virendra sharma ने कहा…

बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी ,सच से आँखें बचायेगी ,खुद से भाग कहाँ जायेगी ?

Aparajita ने कहा…

इंसान सबको धोखा दे सकता है मगर खुद को नहीं . भ्रम कभी न कभी टूट ही जाता है .
आपकी साड़ी ही रचनायें बहुत अच्छी और सच के करीब होती हैं. ये भी बहुत अच्छी है :) :)

मनोज कुमार ने कहा…

रचना मर्मस्पर्शी है !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खुद से कोई कब भाग सका है ? बहुत गहन अभिव्यक्ति

वाणी गीत ने कहा…

वह वक़्त आने से पहले ...
कब तक भागेगा आखिर !

Kunwar Kusumesh ने कहा…

विचारों की चिता तो अपने जीवन में हजारों बार आदमी ख़ुद जला रहा है,दुनिया से कूच कर जाने पर अल्लाह इसीलिए उसे ये अधिकार नहीं देता की अब ख़ुद वो अपनी चिता को आग लगाये.

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut achchhi rachna ..bhavpoorn

बेनामी ने कहा…

वाह....वाह....बहुत ही सुन्दर लगी ये पोस्ट....गहन सत्य.....शानदार।

कुमार राधारमण ने कहा…

सूर पतित को बेगि उबारो
अब मेरी नाव भरी............