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शुक्रवार, 29 जून 2012

यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...........

अहसासो ख्यालो की एक अनूठी दुनिया की 
सैर पर निकला हो कोई 
और जैसे पांव किसी सुलगते दिल को छू गया हो …………
आह ! ऐसे ही नही निकला करती। 


सजदे में सिर झुका कर
कर रहा हो कोई इबादत 
और जैसे मुस्कान कोई रूह को छूकर निकल गयी हो ...........
यूँ ही नहीं मिला करता मौला किसी फकीर को 

रेशम के तारों से काढ रहा हो 
कोई अपने सपनो का ताजमहल 
और जैसे मुमताज के जिस्म में हरारत हो गयी हो 
यूँ ही नहीं शहंशाह बना करते है .........

तबियत से लिख रहा हो रात की स्याही से 
कोई फ़साना खुदाई नूर का 
और जैसे खुदा ने हर लफ्ज़ पढ़ लिया हो
यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...........

15 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

और जैसे खुदा ने हर लफ्ज पढ़ लिया हो ...
वाह बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

kunwarji's ने कहा…

वाह!
कुँवर जी,

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यूँ हीं भला कहाँ होता है कुछ .... कुछ होने के पीछे पर गौर करो ... मुहब्बत की ज़मीं तो देखो

M VERMA ने कहा…

रेशम के तारों से काढ रहा हो कोई अपने सपनो का ताजमहल'
बहुत खूब क्या बिम्ब दिया है

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत भाव !

Maheshwari kaneri ने कहा…

वाह: बहुत खुबसूरत अंगाज से लिखा है ..बहुत सुन्दर वंदना जी..आभार

Arshad Ali ने कहा…

सजदे में सिर झुका कर कर रहा हो कोई इबादत और जैसे मुस्कान कोई रूह को छूकर निकल गयी हो ........... यूँ ही नहीं मिला करता मौला किसी फकीर को

बहुत खूब....सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रेशम के तारों से काढ रहा हो कोई अपने सपनो का ताजमहल'

Waah...Bahut Sunder

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ...
रेशम के तारों से
काढ रहा हो कोई अपने सपनो का ताजमहल
और जैसे मुमताज के जिस्म में हरारत हो गयी हो ..

प्रेम में इतनी ताकत होती है की मुर्दे में जान फूंक दे ... लाजवाब रचना है ...

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

hararat to tabhi hogi jab pyaar me aisee taaseer hogi..bahut hee shandaar rachna..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कोई तो रचता है कहानी हम सबकी..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर ....

तबियत से लिख रहा हो रात की स्याही से
कोई फ़साना खुदाई नूर का
और जैसे खुदा ने हर लफ्ज़ पढ़ लिया हो
यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...

बहुत पसंद आयीं यह पंक्तियाँ

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति...

Rakesh Kumar ने कहा…

क्या बात है.
इतने सुन्दर उर्दू के अल्फाज.
दिल को छूते हुए.