मन की बात
प्रतिरोध नहीं है ये मेरा उसके प्रति
न ही कोई व्यंग्य
बस हो जाता है आम आदमी अचंभित
और सोच के कबूतर कुलबुलाने लगते हैं
आखिर कैसी मन की बात और किसके ?
कहीं उपहास तो नहीं है ये उसका ?
बातों के बतोले खिलाने से नहीं भरा करते पेट
जानते हैं न ...... पेट सबके लगा है
और पेट की आग बुझाने की जद्दोजहद में
क्रिया को प्रतिक्रिया की जरूरत होती है
कि मन की बात को मात्र खिलौना मत बनाओ अपने राजनैतिक खेल का
जिस तरह खाली पेट कोई जंग नहीं जीती जाती
उसी तरह खाली बातों और वादों के आश्वासनों से
नहीं बना करता आसमान में इन्द्रधनुष .......जानते तो होंगे ही न ये सत्य भी
प्रधानमंत्री जी
प्रधानमंत्री जी
करने को मन की बात
हमारे पास नहीं होते हमारे अपने साए भी
देखिये कितने निरीह हैं हम
बस पशुवत होने को हलाल
हमेशा सिर झुकाकर खड़ा रहना भर हो गयी है नियति हमारी
कभी किया होता तुलनात्मक अध्ययन
तब पता चलता तुला के किस पलड़े में खड़े हैं हम
और किस पलड़े में हैं आप
सुनिए
कोई गिला नहीं है इससे हमें
और न ही कोई शिकायत
हम जानते हैं जमीन पर खड़े रहना और चलना भी
और देखिये हम आपको समझाना भी नहीं चाहते
क्योंकि बहुत समझदार हैं आप
बस 'मन की बात' अभियान ने
तकलीफों में इजाफा ही बेशक किया है
और वाकिफ हैं आप भी हमारी तकलीफ से
बस जाने किन मजबूरियों के वशीभूत कर रहे हों आप मन की बात
सोच खुद को तसल्ली दे लेती है जनता
हमारी आस के फूल मुरझाएं
उससे पहले करिए कोशिश
जनता के मन की बात जानने की
शायद ' मन की बात ' अपने सही अर्थों में सार्थक हो जाए
3 टिप्पणियां:
समय देना जरूरी है कुछ पूरा हुआ की नहीं ये पूछने के लिए ... ६० सालों में किसी ने कुछ नहीं किया उसका गिला ले ले कर जो करना चाहता है उसको ताने मारना ठीक नहीं ... मुहे लगता है निराशा से निकलना चाहिए सभी को और मौका देना चाहिए ... अगर इन्होने भी कुछ नहीं किया तो जनता है मिल कर इन्हें भी बदल देना चाहिए ...
नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (25-03-2015) को "ज्ञान हारा प्रेम से " (चर्चा - 1928) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Mann ki baat...
*sigh!* nahi choo pati pata nahi kyu mera mann bhi.
lekin sundarta se prastut ki aapne ise lekar apne mann ki baat.
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