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सोमवार, 6 जुलाई 2015

डूबोगे तरोगे कौन जाने

आकलनों की चमड़ियों  से 
नहीं उगते शहतूत 
वाकिफ होकर इस तथ्य से रखना पांव 

मुस्कुराहटों की भूमि 
बंजर ही मिलेगी 
भूख भेड़िये सी गुर्राएगी 
हलक में खराश पड़ जायेगी 
शून्य से नीचे होगा तापमान 
शिथिल पड़ जायेंगी शिरायें 
सुन्न हो जाएगा वजूद जब 
तब उतरना भगीरथी में डुबकी लगाने को 

डूबोगे तरोगे 
कौन जाने ............

2 टिप्‍पणियां:

Manoj Kumar ने कहा…

<a href="htttp://www.manojbijnori12.blogspot.in> डायनामिक ब्लॉग </a>पर आपका स्वागत है !

सुन्दर कविता !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-07-2015) को "मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है" (चर्चा अंक-2030) पर भी होगी!
--
सादर...!