आकलनों की चमड़ियों से
नहीं उगते शहतूत
वाकिफ होकर इस तथ्य से रखना पांव
मुस्कुराहटों की भूमि
बंजर ही मिलेगी
भूख भेड़िये सी गुर्राएगी
हलक में खराश पड़ जायेगी
शून्य से नीचे होगा तापमान
शिथिल पड़ जायेंगी शिरायें
सुन्न हो जाएगा वजूद जब
तब उतरना भगीरथी में डुबकी लगाने को
डूबोगे तरोगे
कौन जाने ............
नहीं उगते शहतूत
वाकिफ होकर इस तथ्य से रखना पांव
मुस्कुराहटों की भूमि
बंजर ही मिलेगी
भूख भेड़िये सी गुर्राएगी
हलक में खराश पड़ जायेगी
शून्य से नीचे होगा तापमान
शिथिल पड़ जायेंगी शिरायें
सुन्न हो जाएगा वजूद जब
तब उतरना भगीरथी में डुबकी लगाने को
डूबोगे तरोगे
कौन जाने ............
2 टिप्पणियां:
<a href="htttp://www.manojbijnori12.blogspot.in> डायनामिक ब्लॉग </a>पर आपका स्वागत है !
सुन्दर कविता !
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-07-2015) को "मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है" (चर्चा अंक-2030) पर भी होगी!
--
सादर...!
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