तुम मेरे सपनो के
आखिरी विकल्प थे शायद
जिसे टूटना ही था
हर हाल में
क्योंकि
मुस्कुराहट के क़र्ज़ मुल्तवी नहीं किये जाते
क्योंकि
उधार की सुबहों से रब ख़रीदे नहीं जाते
एक बार फिर
उसी मोड़ पर हूँ
दिशाहीन ...
चलो गुरबानी पढो
कि
यही है वक्त का तक़ाज़ा
कहा उसने
और मैंने
सारे पन्ने कोरे कर लिए
और तोड़ दी कलम
कि
फिर से न कोई मुर्शिद
लिख दे कोई नयी आयत
दिल हूम हूम करे ......'
डिसक्लेमर
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
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