ये जानते हुए
कि
नहीं मिला करतीं खुशियाँ यहाँ
चाँदी के कटोरदान में सहेज कर
जाने क्यों
दौड़ता है मनवा उसी मोड़ पर
ये जानते हुए
कि
सब झूठ है, भरम है
ज़िन्दगी इक हसीं सितम है
जाने क्यों
भरम के पर्दों से ही होती है मोहब्बत
ये जानते हुए
कि
वक्त की करवट से बदलता है मौसम
और ज़िन्दगी क्षणभंगुर ही सही
जाने क्यों
ज़िन्दगी से ही इश्क होता है यहाँ
सिफ़र से शुरू सफ़र सिफ़र पर ही ख़त्म होता है जहाँ
फिर किस पाहुन की पहुनाई करूँ यहाँ ??
डिसक्लेमर
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर रचना आपकी👌👌
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